अक्टूबर 2026 से शुरू होगी जातीय जनगणना, पहले फेज में ये चार राज्य शामिल, जानें इस बार क्या नया होगा?

    भारत सरकार ने पहली बार स्वतंत्रता के बाद पूर्ण जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया है.

    Caste census will start from October 2026
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    नई दिल्ली: भारत सरकार ने पहली बार स्वतंत्रता के बाद पूर्ण जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया है. इस प्रक्रिया को दो चरणों में संपन्न किया जाएगा. गृह मंत्रालय द्वारा बुधवार को जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से हिमालयी राज्यों- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में शुरू किया जाएगा.

    शेष राज्यों को दूसरे चरण में कवर किया जाएगा, जिसकी शुरुआत 1 मार्च 2027 से होगी.

    जातीय जनगणना को जनसंख्या गणना के साथ जोड़ा गया

    गृह मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि इस जातीय जनगणना को पारंपरिक जनसंख्या गणना प्रक्रिया के साथ समन्वय में लागू किया जाएगा. इसके लिए जनगणना अधिनियम 1948 में संशोधन की आवश्यकता होगी, क्योंकि वर्तमान कानून केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए डेटा संग्रह की अनुमति देता है. ओबीसी (OBC) श्रेणी की गणना के लिए अतिरिक्त कानूनी प्रक्रियाएं आवश्यक होंगी.

    इस संबंध में अंतिम अधिसूचना 16 जून 2025 तक राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी.

    जातीय जनगणना पर वर्षों पुराना राजनीतिक विमर्श

    जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से विपक्षी दलों और क्षेत्रीय दलों द्वारा की जाती रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2023 में पहली बार संसद और सार्वजनिक मंचों पर इसकी आवश्यकता को मुखरता से उठाया. इसके पश्चात यह विषय देशव्यापी बहस का हिस्सा बन गया.

    केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जातीय जनगणना के औचित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि यह कदम सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल होगा.

    2011 की SECC: अधूरी प्रक्रिया, अप्रकाशित आंकड़े

    2011 में मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) करवाई गई थी. हालांकि इसमें एकत्र किए गए जातिगत आंकड़े आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किए गए. केवल SC और ST वर्ग से जुड़े हाउसहोल्ड डेटा ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.

    उस जनगणना के तहत 1,270 अनुसूचित जातियाँ और 748 अनुसूचित जनजातियाँ दर्ज की गई थीं. तब SC की जनसंख्या 16.6% और ST की 8.6% थी.

    नए कॉलम्स और तकनीकी बदलाव संभव

    अब तक जनगणना फॉर्म में 29 कॉलम होते थे, जिनमें नाम, व्यवसाय, शिक्षा, प्रवासन और केवल SC/ST से संबंधित सूचनाएं एकत्र की जाती थीं. जातीय जनगणना को समाहित करने के लिए नए कॉलम्स और डिजिटाइजेशन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है.

    साथ ही सरकार को 2,650 से अधिक OBC जातियों का आंकड़ा इकट्ठा करने के लिए पर्याप्त प्रणाली और डेटा वर्गीकरण ढांचा तैयार करना होगा.

    राजनीतिक विवाद और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

    जातीय जनगणना को लेकर देश में राजनीतिक मतभेद कोई नई बात नहीं हैं. केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस सरकारों ने अतीत में इस प्रक्रिया को कभी पूरी तरह समर्थन नहीं दिया. उन्होंने 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के उस बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे पर कैबिनेट स्तर पर विचार आवश्यक है.

    इसके बाद लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और अन्य OBC नेताओं ने जाति आधारित डेटा की मांग को मजबूती दी थी. उस समय SECC के लिए 4,389 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन डेटा आज तक सार्वजनिक नहीं हुआ.

    मंडल आयोग और OBC आरक्षण की मांग

    जाति आधारित आरक्षण की शुरुआत 1979 में गठित मंडल आयोग की सिफारिशों के साथ हुई थी. 1990 में प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने इन सिफारिशों को लागू कर OBC वर्ग के लिए आरक्षण की शुरुआत की थी. इस फैसले के बाद देशभर में तीव्र सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया देखी गई थी.

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