पाकिस्‍तान के 'ऑपरेशन बद्र' में फंसी थी भारतीय सेना, तब BSF ने पलटी बाजी... कारगिल जंग की अनकही कहानी

    कारगिल युद्ध की जब भी बात होती है, तो भारतीय सेना की वीरता, अनुशासन और सामरिक कुशलता को गर्व के साथ याद किया जाता है.

    BSF turned the tables the untold story of the Kargil war
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: कारगिल युद्ध की जब भी बात होती है, तो भारतीय सेना की वीरता, अनुशासन और सामरिक कुशलता को गर्व के साथ याद किया जाता है. लेकिन इस युद्ध के कुछ ऐसे भी पहलू हैं, जो अब तक कम ही लोगों की जानकारी में आए हैं. एक ऐसी ही अनसुनी लेकिन बेहद अहम कहानी है भारत की सीमा सुरक्षा बल (BSF) की — जिसने युद्ध के दौरान न केवल खुफिया लड़ाई का नेतृत्व किया, बल्कि दुश्मन की सबसे कठिन योजना को ध्वस्त कर भारतीय सेना को निर्णायक बढ़त दिलाई.

    इस पूरे अभियान में बीएसएफ ने सचमुच ‘अभिमन्यु’ की भूमिका निभाई — वह योद्धा जो दुश्मन के गहरे चक्रव्यूह में न केवल घुसा, बल्कि उसकी संरचना, इरादों और रणनीति को समझकर उसे भीतर से तोड़ने का काम किया.

    पाकिस्तानी साजिश: 'ऑपरेशन बद्र'

    1999 की गर्मियों में पाकिस्तान ने एक बेहद सोची-समझी रणनीति के तहत भारत के कश्मीर क्षेत्र में सैन्य घुसपैठ की योजना बनाई थी. इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था ‘ऑपरेशन बद्र’. इस योजना के तहत पाकिस्तानी सेना के विशेष बल, आतंकवादियों के वेश में कारगिल सेक्टर के भीतर तक घुस आए थे. उन्होंने पहले से ही ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाकर बंकर और मजबूत सैन्य चौकियाँ बना ली थीं, जिनमें महीनों तक युद्ध लड़ने के लिए जरूरी हर प्रकार की रसद, हथियार और गोलाबारूद पहले से मौजूद था.

    यह ऑपरेशन इतने गोपनीय तरीके से अंजाम दिया गया था कि शुरुआती दिनों में भारतीय खुफिया एजेंसियों और सेना को इसकी भनक तक नहीं लगी. इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि पाकिस्तानी सेना ने अपनी संचार प्रणाली को इतना जटिल बना रखा था कि उसकी बातचीत को इंटरसेप्ट करना मुश्किल हो गया था. दुश्मन बलूच, दर्दी, बल्टी, पश्तो, फारसी और अरबी जैसी कम समझी जाने वाली भाषाओं में संवाद कर रहा था — जिससे भारतीय संचार निगरानी तंत्र इन संदेशों को समझने में विफल हो रहा था.

    रणनीतिक मोर्चे पर उतरी BSF, खुफिया युद्ध की शुरुआत

    कारगिल युद्ध में भारत की सामरिक प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब BSF की इंटेलिजेंस विंग, जिसे ‘G ब्रांच’ के नाम से जाना जाता है, को इस ऑपरेशन में शामिल किया गया. बीएसएफ के पास जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से तैनाती का अनुभव था, जिसके चलते उनके पास ऐसे जवान और अफसर मौजूद थे जो स्थानीय और सीमावर्ती भाषाओं में पारंगत थे.

    बीएसएफ के तत्कालीन डिप्टी कमांडेंट ओ. एस. झा की निगरानी में एक विशेष ट्रांसलेशन सेल स्थापित किया गया. इस सेल को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के चन्नीगुंड (या काजीगुंड) इलाके में बनाया गया, जो उस समय सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था. इस ट्रांसलेशन यूनिट में बीएसएफ की आठवीं बटालियन और श्रीनगर में तैनात मल्टी-लिंगुअल अफसरों को शामिल किया गया.

    युद्ध का रुख पलटने वाला ‘रियल टाइम’ इंटेलिजेंस

    बीएसएफ की इस यूनिट की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने पाकिस्तानी सेना की वायरलेस कम्युनिकेशन को रियल टाइम में इंटरसेप्ट और ट्रांसलेट करना शुरू कर दिया. इस काम के लिए कुछ विशेषज्ञ दुभाषियों को सीधे द्रास सेक्टर में तैनात किया गया, जो दुश्मन के संवादों को सुनते ही तुरंत अनुवाद करके भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों तक पहुंचा देते थे.

    यह ‘रियल टाइम इंटेलिजेंस’ भारत के लिए गेम चेंजर साबित हुआ. बीएसएफ के एक प्रमुख विशेषज्ञ, इंस्पेक्टर हबीबुल्लाह, जो खुद द्रास के स्थानीय निवासी थे, इस मिशन के सबसे मूल्यवान योद्धाओं में से एक बनकर सामने आए. वे न केवल दर्दी और बल्टी भाषा में माहिर थे, बल्कि उनका स्थानीय भूगोल और संस्कृति का गहरा ज्ञान भी भारतीय सेना के काम आया.

    हबीबुल्लाह ब्रिगेड हेडक्वार्टर में नियमित रूप से तैनात रहते थे और पाकिस्तानी सेना की संचार बातचीत को मौके पर ही हिंदी और अंग्रेजी में ट्रांसलेट कर फील्ड कमांडरों को जानकारी देते थे.

    कैसे मिली भारतीय सेना को सामरिक बढ़त?

    बीएसएफ की खुफिया मदद के बाद युद्ध के मैदान की तस्वीर पूरी तरह बदल गई. अब सेना को स्पष्ट रूप से पता चलने लगा कि:

    • पाकिस्तानी सेना के ठिकाने कहाँ हैं,
    • उनकी रसद और आपूर्ति की स्थिति क्या है,
    • कब और कहां से रिइन्फोर्समेंट आने वाली है,
    • उनके कमांडर किस स्थान पर सक्रिय हैं,
    • दुश्मन के हताहतों की संख्या कितनी है,
    • भारतीय आर्टिलरी और हवाई हमलों से उन्हें कितना नुकसान हो रहा है,
    • और सबसे महत्वपूर्ण — उनकी अगली योजना क्या हो सकती है.

    इतना ही नहीं, बीएसएफ का जी विंग दुश्मन की रिकॉर्ड की गई बातचीत के कैसेट्स को ट्रांसलेट कर लिखित रिपोर्ट के रूप में भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों को भेजता था. इससे रणनीति बनाना, हमले की दिशा तय करना और जवाबी कार्रवाई के लिए समय पर निर्णय लेना आसान हो गया.

    जब गुप्त संवाद भाषा बनी ताकत

    यह तथ्य बेहद महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान ने जिन भाषाओं का उपयोग भारतीय एजेंसियों को भ्रमित करने के लिए किया था, वही भाषाएं बीएसएफ के लिए ताकत बन गईं. भारतीय सुरक्षाबलों ने इन जटिल भाषाओं में प्रशिक्षित जवानों की सहायता से दुश्मन की हर चाल को पहले से जानना शुरू कर दिया — जो किसी भी युद्ध की सबसे बड़ी जीत मानी जाती है.

    ये भी पढ़ें- न ब्रह्मोस, न राफेल, वॉरशिप... फिर भी 57000 की करोड़ डील करेगा भारत, इन दो खतरनाक हथियारों पर है नजर