भारत को मिला नया मुख्य न्यायाधीश, बीआर गवई ने ली देश के चीफ जस्टिस पद की शपथ

    भारत की न्यायपालिका ने एक नया इतिहास रचते हुए जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को अपना 52वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें इस प्रतिष्ठित पद की शपथ दिलाई.

    BR Gavai took oath as Chief Justice of India
    बीआर गवई ने ली देश के चीफ जस्टिस पद की शपथ

    नई दिल्लीः भारत की न्यायपालिका ने एक नया इतिहास रचते हुए जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को अपना 52वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें इस प्रतिष्ठित पद की शपथ दिलाई. जस्टिस गवई देश के पहले बौद्ध समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं और अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले दूसरे व्यक्ति हैं जिन्हें यह सर्वोच्च न्यायिक जिम्मेदारी मिली है. उनसे पहले के. जी. बालाकृष्णन को यह गौरव प्राप्त हुआ था.

    राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए हैं जस्टिस गवई

    24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे जस्टिस गवई एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता रामकृष्ण गवई एक अनुभवी नेता रहे हैं, जो एमएलसी, लोकसभा सांसद और तीन राज्यों के राज्यपाल रह चुके हैं. जस्टिस गवई ने 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायिक सेवा की शुरुआत की थी और 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. बतौर CJI उनका कार्यकाल लगभग 6 महीने का होगा, क्योंकि वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे.

    कुछ अहम फैसले, जिन्होंने जस्टिस गवई को अलग पहचान दिलाई

    बुलडोजर कार्रवाई पर दिशानिर्देश

    जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी अतिक्रमण या संपत्ति हटाने की कार्रवाई से पहले नोटिस देना अनिवार्य है, और नोटिस मिलने के 15 दिन बाद ही कार्रवाई की जा सकती है.

    पर्यावरण संरक्षण पर सख्ती

    हैदराबाद के कंचा गचीबाउली इलाके में 100 एकड़ में फैले जंगल के विनाश पर उन्होंने कड़ा रुख अपनाया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उस क्षेत्र को फिर से हरियाली में बदलने की योजना बनाए. उन्होंने यहां तक कहा कि यदि अधिकारी सहयोग नहीं करें तो अस्थायी जेल बनाकर उन्हें वहीं बंद किया जा सकता है.

    SC आरक्षण में उप-वर्गीकरण

    उन्होंने उस ऐतिहासिक बेंच का हिस्सा बनकर अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी और व्यक्तिगत तौर पर कहा कि जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हो चुके हैं, उन्हें आरक्षण छोड़ देना चाहिए ताकि ज़रूरतमंदों को न्याय मिल सके.

    अनुच्छेद 370 और नोटबंदी के फैसले

    जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को वैध ठहराने वाली और 2016 की नोटबंदी को संवैधानिक ठहराने वाली बेंचों में वे अहम भूमिका में रहे.

    इलेक्टोरल बॉन्ड रद्द करने का फैसला

    चुनावी चंदे की पारदर्शिता को लेकर आए इलेक्टोरल बांड स्कीम को खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में भी उनका नाम शामिल रहा.

    न्यायपालिका में समावेश और प्रगतिशील सोच का प्रतीक

    जस्टिस बी. आर. गवई की नियुक्ति न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था में विविधता और समावेश की दिशा में एक बड़ा कदम भी है. उनके अनुभव, संतुलित दृष्टिकोण और संवेदनशील न्यायिक सोच से देश को उम्मीद है कि आने वाले छह महीने में सुप्रीम कोर्ट कुछ अहम और जनहितकारी फैसलों को अंजाम देगा.

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