MY Voters In Bihar: बिहार की राजनीति में दशकों तक एक ही फार्मूला विजयी मंत्र रहा, मुस्लिम और यादव वोटर का मजबूत गठजोड़, यानी ‘एम-वाई समीकरण’. लालू यादव ने 90 के दशक में इसे एक अजेय चुनावी हथियार बना दिया था. लेकिन 2025 के विधानसभा चुनावों ने पहली बार इस समीकरण को ऐसी चुनौती दी है कि इसकी नींव ही हिलती नजर आ रही है. न सिर्फ ओवैसी की एआईएमआईएम ने सीमांचल में पंजा जमाया है, बल्कि मुस्लिम बहुल इलाकों में एनडीए की पकड़ भी अप्रत्याशित रूप से मजबूत हुई है. यह तस्वीर साफ संकेत दे रही है, बिहार के मुसलमान अब वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव ला रहे हैं.
सीमांचल की वे सीटें, जहां मुस्लिम आबादी 40% से अधिक है, इस बार ओवैसी की पार्टी ने रिकॉर्ड प्रदर्शन करते हुए जीत लीं. बैसी, जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और अमौर, इन सभी सीटों पर एआईएमआईएम उम्मीदवार भारी अंतर से विजयी रहे. हारने वालों में महागठबंधन और जेडीयू के मुस्लिम प्रत्याशी शामिल हैं, जबकि एक सीट पर बीजेपी का हिंदू उम्मीदवार भी पिछड़ गया. यह नतीजा बताता है कि मुस्लिम मतदाता अब महागठबंधन या पारंपरिक ‘सेक्युलर’ दलों पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर रहे.
सीमांचल में एनडीए की चुपचाप बढ़त
एआईएमआईएम ने उन सात सीटों पर भी उम्मीदवार उतारे थे, जहां मुस्लिम जनसंख्या 25% से 40% के बीच है. इन सभी सीटों पर एनडीए को जीत मिली. यदि किशनगंज में कांग्रेस की एक सीट को छोड़ दें, तो सीमांचल की बाकी मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर आरजेडी और सीपीआई-एमएल पूरी तरह साफ हो गईं. यह संकेत है कि मुस्लिम वोट अब किसी एक गठबंधन या दल की बंधक संपत्ति नहीं रह गया है. वह अब अपने हितों के आधार पर नए विकल्प तलाश रहा है.
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में एनडीए की सीटें दोगुनी
इस बदलाव का बड़ा असर पूरे बिहार में देखने को मिला. 2020 में मुस्लिम बहुल 52 सीटों में से एनडीए के पास सिर्फ 20 सीटें थीं और उसका वोट शेयर 34.8% था. 2025 में यह आंकड़ा बढ़कर 39 सीटें और 42.2% वोट शेयर तक पहुंच गया. यानी मुस्लिम बहुल इलाकों में एनडीए की पैठ दोगुनी हो चुकी है, यह बिहार की राजनीति में एक ऐतिहासिक बदलाव है.
ओवैसी की दस्तक ने बदल दिया खेल
2020 में ओवैसी की एंट्री ने ही मुस्लिम वोट बैंक की दिशा बदलने की शुरुआत कर दी थी. तब आरजेडी और कांग्रेस उन्हें बीजेपी की ‘बी-टीम’ बताकर वोटर को रोकने की कोशिश कर रहे थे. इसके बावजूद एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीतकर संदेश दे दिया था. हालांकि बाद में इन 5 में से 4 विधायक आरजेडी में चले गए, लेकिन एक नया दरवाजा जरूर खुल गया था और 2025 में वही दरवाजा पूरी तरह चौड़ा हो गया.
क्यों घट रहा है “बीजेपी का डर”
इस बार एआईएमआईएम को मिली बढ़त साफ बताती है कि मुस्लिम मतदाताओं में पारंपरिक सेक्युलर दलों के प्रति भरोसा कम हुआ है. उन्हें लगता है कि इन दलों ने उनका वोट तो लिया, लेकिन वास्तविक प्रतिनिधित्व कभी नहीं दिया. यही कारण है कि उनके मन से “बीजेपी के आने का डर” धीरे-धीरे कम हो रहा है. वह अब जोखिम लेकर नए राजनीतिक प्लेटफॉर्म को मौका देने के लिए तैयार हैं, भले वह एआईएमआईएम हो या एनडीए.
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