नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना अपनी रणनीतिक और आक्रामक क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रही है. इजरायल से अत्याधुनिक रैम्पेज एयर-टू-ग्राउंड मिसाइलों की एक बड़ी खेप खरीदने की योजना पर काम शुरू हो चुका है. यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब भारत अपनी पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर चुनौतियों का सामना कर रहा है और उसे एक बहुआयामी सैन्य प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना पड़ रहा है.
रैम्पेज मिसाइल: वायुसेना का नया घातक हथियार
रैम्पेज एक उच्च गति और सटीक निशाने वाली एयर-टू-ग्राउंड मिसाइल है, जिसे खास तौर पर दुश्मन की गहराई में मौजूद रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाने के लिए तैयार किया गया है. यह मिसाइल इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (IAI) और इजरायल मिलिट्री इंडस्ट्रीज़ (IMI) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई है. भारतीय वायुसेना में इसे ‘हाई स्पीड लो ड्रैग मार्क 2’ के नाम से भी जाना जाता है.
इस मिसाइल को पहले ही भारतीय वायुसेना के अग्रिम पंक्ति के लड़ाकू विमानों- Su-30 MKI, मिग-29 और जगुआर में एकीकृत किया जा चुका है. अब इसके और अधिक यूनिट्स की खरीद के लिए मंजूरी की प्रक्रिया चल रही है. रक्षा मंत्रालय और वायुसेना के उच्च अधिकारी इस सौदे को जल्दी अंतिम रूप देने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं.
ऑपरेशन सिंदूर में दिखी थी रैम्पेज की ताकत
हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने यह साफ कर दिया कि भारतीय वायुसेना अब सिर्फ रक्षात्मक नहीं, बल्कि एक निर्णायक और आक्रामक मोर्चे पर भी अपनी क्षमताएं दिखाने में पूरी तरह सक्षम है. इस ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को लक्षित करने के लिए रैम्पेज, ब्रह्मोस, SCALP और क्रिस्टल मेज जैसी स्टैंड-ऑफ हथियारों का व्यापक उपयोग किया गया.
रैम्पेज ने अपनी उच्च गति, सटीकता और लंबी दूरी की क्षमता के जरिए उन ठिकानों को ध्वस्त किया जो एयर डिफेंस के कवच में सुरक्षित माने जाते थे. भारतीय लड़ाकू विमान दुश्मन की सीमा में दाखिल हुए बिना 250 से 450 किलोमीटर दूर से ही हमला करने में सक्षम रहे. इससे यह साबित हो गया कि यह मिसाइल मौजूदा परिदृश्य में बेहद प्रभावी हथियार है.
एयर डिफेंस रेंज से बाहर रहकर हमला
रैम्पेज मिसाइल की सबसे बड़ी विशेषता इसकी लंबी दूरी की मारक क्षमता और उच्च गतिशीलता है. यह मिसाइल दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम जैसे चीन का HQ-9 या पाकिस्तान का LY-80 की रेंज से बाहर रहते हुए भी टारगेट को सटीकता से भेद सकती है. इसकी गति 1,000 से 1,200 किमी/घंटा तक होती है, और इसे GPS/INS आधारित मार्गदर्शन प्रणाली से लैस किया गया है.
इसकी वजह से भारतीय वायुसेना के पास अब ऐसी क्षमता है कि वह सीमाओं से सटे क्षेत्रों में नहीं, बल्कि दुश्मन की रणनीतिक गहराई में मौजूद ठिकानों पर भी प्रभावशाली प्रहार कर सके.
'मेक इन इंडिया' के तहत निर्माण की संभावना
सूत्रों के अनुसार, सरकार इस मिसाइल को भारत में निर्माण करने की संभावनाओं पर भी विचार कर रही है. रक्षा मंत्रालय की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत यह कोशिश की जा रही है कि विदेशी हथियारों को देश में असेंबल या पूरी तरह से निर्मित किया जाए. अगर यह संभव होता है, तो वायुसेना को रैम्पेज मिसाइलों की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी, साथ ही भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी.
वायुसेना के हथियार शस्त्रागार में और भी बड़े बदलाव
भारतीय वायुसेना सिर्फ इजरायल से रैम्पेज मिसाइलें ही नहीं, बल्कि अन्य उन्नत हथियार प्रणालियों को भी शामिल करने की योजना बना रही है. इनमें रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के और स्क्वाड्रन शामिल करना, स्वदेशी अस्त्र एयर-टू-एयर मिसाइल के लंबी दूरी वाले संस्करण को विकसित करना, और DRDO के प्रोजेक्ट ‘कुश’ को तेजी से आगे बढ़ाना प्रमुख हैं.
S-400 सिस्टम ने हाल ही में हुए ऑपरेशनों में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से यह सिद्ध कर दिया है कि वह दुश्मन के फाइटर जेट्स और मिसाइलों को समय रहते रोक सकता है.
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