बांग्लादेश इन दिनों एक गंभीर और अस्थिर दौर से गुजर रहा है. अगस्त 2024 में जब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर भारत चली गईं, तब से ही वहां की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति तेजी से बिगड़ती चली गई है. उनके देश छोड़ते ही अंतरिम सरकार की कमान नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के हाथों में आई, लेकिन उनके नेतृत्व में देश में चरमपंथी ताकतें पहले से कहीं अधिक मुखर हो गई हैं.
ढाका में ISIS का झंडा और 'जोंगी' का नारा
हाल ही में ढाका स्थित बैतुल मुकर्रम राष्ट्रीय मस्जिद के बाहर एक चिंताजनक घटना सामने आई. जुमे की नमाज़ के बाद सैकड़ों की संख्या में इस्लामी कट्टरपंथी जुटे और उन्होंने खुलेआम आईएसआईएस के झंडे लहराए. “तुम कौन? मैं कौन? जोंगी, जोंगी!” जैसे नारे गूंजते रहे, जो बांग्ला भाषा में 'जिहादी' के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश की छवि को धक्का पहुंचाया है.
यूनुस सरकार पर नरमी के आरोप
यूनुस सरकार पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि वह जमात-ए-इस्लामी और हिजब-उत-तहरीर जैसे कट्टरपंथी संगठनों के प्रति नरमी बरत रही है. मार्च 2025 में हिजब-उत-तहरीर द्वारा आयोजित 'खिलाफत मार्च' को रोकने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया, लेकिन कट्टरपंथी गतिविधियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं. यूनुस प्रशासन ने जमात-ए-इस्लामी से प्रतिबंध हटा दिया है, जिससे कट्टर विचारधारा को खुला मंच मिल गया है. इसके अलावा, आतंकवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के कुख्यात नेता जसीमुद्दीन रहमानी की रिहाई ने भी सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया है.
अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले
इन सबके बीच, बांग्लादेश के हिंदू समुदाय पर हमले और उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. मंदिरों में तोड़फोड़, धार्मिक स्थलों पर हमले और धमकियों की खबरें अब आम हो गई हैं. सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिनमें लोग आईएसआईएस के समर्थन में नारे लगाते दिख रहे हैं. भारत सरकार ने भी इस बढ़ते कट्टरपंथ को लेकर चिंता जताई है.
सरकार की दोहरी बातें
दिसंबर 2024 में दिए एक इंटरव्यू में मोहम्मद यूनुस ने दावा किया था कि बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरता का कोई खतरा नहीं है और युवा वर्ग एक प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष देश चाहता है. लेकिन देश की सड़कों पर आईएसआईएस का झंडा और अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले उनके दावों की पोल खोल रहे हैं.
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