बलूचों ने फहरा दिया अपनी आजादी का झंडा, बलूचिस्तान छोड़कर भाग रही पाकिस्तानी सेना, देखें वीडियो

    पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में जारी उथल-पुथल अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है.

    Balochs hoisted their independence flag in Balochistan
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ Sociel Media

    इस्लामाबाद/क्वेटा: पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में जारी उथल-पुथल अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है. जहां एक ओर पाकिस्तानी सेना की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है, वहीं दूसरी तरफ बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने कई क्षेत्रों में नियंत्रण स्थापित कर लिया है. हाल ही में सामने आए वीडियो और ग्राउंड रिपोर्ट्स इस बात की पुष्टि करते हैं कि पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को कई इलाकों से पीछे हटना पड़ा है.

    बलूचिस्तान: एक सुलगता हुआ मोर्चा

    बलूचिस्तान कई वर्षों से विद्रोह, सैन्य कार्रवाई और राजनीतिक अस्थिरता का केंद्र बना हुआ है. लेकिन अब जो घटनाएं हो रही हैं, वे पहले की तुलना में कहीं अधिक गंभीर और निर्णायक मानी जा रही हैं. विभिन्न रिपोर्ट्स और स्थानीय पत्रकारों द्वारा साझा किए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि बलूच विद्रोही समूहों ने पाकिस्तानी सेना की कई चौकियों पर अपने झंडे फहरा दिए हैं.

    जहरी कस्बे में लहराया बलूचों का झंडा

    बलूचिस्तान के जहरी नामक कस्बे में रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर अब बलूच स्वतंत्रता का झंडा फहरा रहा है. यह क्षेत्र पाक सेना के लिए लंबे समय से चुनौती बना हुआ था, लेकिन अब स्थिति बदलती नजर आ रही है. इसी प्रकार कई मोबाइल टावरों और रणनीतिक स्थानों पर भी बलूच झंडे फहराने की तस्वीरें सामने आई हैं.

    पाक सेना की वापसी की पुष्टि

    बलूच पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता मीर यार बलूच ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर ऐसे कई वीडियो साझा किए हैं, जिनमें पाकिस्तानी सैनिक अपने शिविरों को छोड़कर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने पोस्ट में कटाक्ष करते हुए लिखा कि, "पाकिस्तान की सेना बलूचिस्तान में अपनी पतलून छोड़ कर भाग रही है." उनका कहना है कि यह केवल एक क्षेत्रीय घटना नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान के सैन्य तंत्र की विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है.

    बलूचिस्तान: सैन्य दमन से आजादी की लड़ाई तक

    बलूचिस्तान का इतिहास गवाह है कि इस क्षेत्र में दशकों से सैन्य दमन, जबरन अपहरण, मानवाधिकार उल्लंघन और राजनीतिक उपेक्षा चलती आई है. स्थानीय लोग लंबे समय से पाकिस्तान सरकार और सेना पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने बलूच नागरिकों को बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के गायब किया, यातनाएं दीं और कई मामलों में मौत के घाट उतार दिया.

    इस्लामाबाद ने बलूच आंदोलन को हमेशा “आंतरिक सुरक्षा का मामला” कह कर दबाने की कोशिश की, लेकिन अब यह विरोध इतना व्यापक हो गया है कि उसे पूरी तरह दबाना मुश्किल होता जा रहा है.

    बलूच संगठनों की बढ़ती ताकत

    बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA), और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठनों की गतिविधियां पिछले कुछ वर्षों में काफी तेज हुई हैं. वे अब न केवल गुरिल्ला हमले कर रहे हैं, बल्कि कब्जे वाले इलाकों में अपनी प्रशासनिक और सैन्य मौजूदगी भी दर्शा रहे हैं. बलूच संगठनों का दावा है कि वे पाकिस्तान के सैन्य कब्जे से आजादी चाहते हैं और उनका आंदोलन स्वाभाविक रूप से आत्मनिर्णय के अधिकार पर आधारित है.

    बलूचिस्तान क्यों है पाकिस्तान के लिए इतना अहम?

    बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, क्षेत्रफल की दृष्टि से लगभग 44% भूभाग पर फैला हुआ. यहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, जिनमें गैस, तेल, सोना, कोयला, तांबा और अन्य खनिज शामिल हैं. लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि उन्हें इन संसाधनों से कोई लाभ नहीं मिलता. इसका अधिकांश हिस्सा इस्लामाबाद और विदेशी कंपनियों के हिस्से में चला जाता है.

    रणनीतिक महत्व:

    ग्वादर बंदरगाह: चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का मुख्य केंद्र यही है. चीन ने यहां अरबों डॉलर का निवेश किया है.

    ईरान से सटी सीमा: बलूचिस्तान, पाकिस्तान और ईरान के बीच एक कड़ी है, जो मध्य एशिया और यूरोप तक के स्थलीय व्यापार मार्ग को खोल सकता है.

    सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील: यहां का भौगोलिक और सामरिक महत्व इस क्षेत्र को पाकिस्तान के लिए एक “जियोपॉलिटिकल हॉटस्पॉट” बना देता है.

    चीन की चिंता: CPEC पर खतरा

    बलूच विद्रोहियों द्वारा चीनी परियोजनाओं को भी बार-बार निशाना बनाया गया है. ग्वादर पोर्ट, चीनी इंजीनियरों के काफिले और निर्माणाधीन परियोजनाएं बलूच संगठनों के हमलों की चपेट में आ चुकी हैं. इससे चीन की सुरक्षा एजेंसियां भी सतर्क हो गई हैं और अब पाकिस्तान पर दबाव बना रही हैं कि वह बलूचिस्तान में स्थिरता कायम करे.

    लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि सेना की मौजूदगी जितनी बढ़ रही है, विरोध भी उतना ही तीव्र होता जा रहा है.

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