वॉशिंगटन: बलूच अमेरिकन कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री तारा चंद बलूच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक भावनात्मक लेकिन रणनीतिक दृष्टिकोण वाला पत्र लिखते हुए पाकिस्तान के दमन के खिलाफ जारी बलूच आंदोलन को भारत से नैतिक, कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन देने की अपील की है.
इस पत्र में तारा चंद ने भारत के प्रधानमंत्री से कहा है कि आपकी आवाज़ ने हममें उम्मीद की किरण जलाई है. विशेष रूप से मोदी द्वारा लाल किले से बलूचिस्तान के लोगों का उल्लेख करने को उन्होंने 'बलूच राष्ट्रवाद की अंतरराष्ट्रीय मान्यता की दिशा में ऐतिहासिक क्षण' बताया.
पाकिस्तान बलूचिस्तान पर कब्जा कर चुका है
तारा चंद ने बलूचिस्तान के इतिहास को संक्षेप में रखते हुए लिखा है कि 1948 में, बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान में शामिल किया गया, जबकि बलूच जनता ने कभी इस एकीकरण को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने आरोप लगाया कि तब से अब तक, पाकिस्तान की सेना ने बलूचों की संस्कृति, पहचान और मानवाधिकारों को दबाने के लिए व्यवस्थित दमन अभियान चलाया है.
उन्होंने पत्र में कहा, "यह सिर्फ एक क्षेत्रीय आंदोलन नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई है."
चीन की उपस्थिति भू-राजनीतिक खतरा
तारा चंद ने बलूचिस्तान में चीन की बढ़ती भागीदारी को भूराजनीतिक असंतुलन का बड़ा कारण बताते हुए चेताया कि यह न केवल बलूच लोगों के अधिकारों को कुचलने का जरिया बन रहा है, बल्कि भारत और दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती है.
विशेष रूप से, ग्वादर पोर्ट और CPEC (चीन-पाक आर्थिक गलियारा) के माध्यम से चीन की मौजूदगी को उन्होंने एक "रणनीतिक घेराव" करार दिया.
भारत से मुद्दा उठाने की मांग
बलूच नेता ने अनुरोध किया कि भारत सरकार, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार परिषद और अन्य वैश्विक मंचों पर, बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों को उजागर करे.
उन्होंने कहा, "दुनिया बलूचिस्तान के वास्तविक हालात से अनजान है. पाकिस्तान का प्रचार तंत्र अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भ्रमित करता रहा है. भारत यदि आवाज उठाए, तो हमारी लड़ाई को नैतिक बल मिलेगा."
भारत-बलूच रणनीतिक रिश्ते
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि एक "स्वतंत्र और सहयोगी बलूचिस्तान", भारत के लिए एक रणनीतिक गहराई और क्षेत्रीय स्थिरता का स्रोत बन सकता है. तारा चंद का मानना है कि भारत को बलूचिस्तान को 21वीं सदी के भू-राजनीतिक समीकरण में एक निर्णायक तत्व के रूप में देखना चाहिए.
उन्होंने भारत के सिंधु जल संधि पर कठोर रुख की सराहना करते हुए कहा कि यह पाकिस्तान को उसके “आतंकवाद समर्थक नीति” के लिए स्पष्ट संदेश है.
कौन हैं तारा चंद बलूच?
तारा चंद बलूच, बलूच अमेरिकन कांग्रेस (BAC) के अध्यक्ष हैं — एक अमेरिकी पंजीकृत संस्था जो बलूच राष्ट्र के आत्मनिर्णय के अधिकार की वकालत करती है. उन्होंने पहले बलूचिस्तान की निर्वासित सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया है. BAC बलूच डायस्पोरा के अधिकारों के साथ-साथ पाकिस्तान में बलूचों पर हो रहे दमन की जानकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाने का कार्य करती है.
क्या भारत रुख स्पष्ट करेगा?
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार बलूचिस्तान के प्रश्न पर एक सुनियोजित और दीर्घकालिक नीति अपनाएगी? पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संतुलन, वैश्विक मंचों पर भागीदारी और अपने रणनीतिक हितों की रक्षा — इन तीनों के बीच भारत को संतुलन की रणनीति विकसित करनी होगी.
हाल के वर्षों में, भारत ने बलूच मुद्दे पर कुछ संकेत तो दिए हैं, लेकिन तारा चंद का पत्र उस रुख को नीति में बदलने की सीधी मांग करता है.
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