ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच बीफ को लेकर सालों से चली आ रही तनातनी अब थमती दिख रही है. ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका से आयात होने वाले बीफ पर लगे कुछ प्रतिबंधों को हटा दिया है. ये वही पाबंदियां थीं जो कभी मैड काउ डिजीज जैसी जानलेवा बीमारियों के खतरे को देखते हुए लगाई गई थीं. लेकिन इस बार मामला सिर्फ जैविक सुरक्षा का नहीं, राजनीति और दबाव का भी है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसे अपनी जीत बता रहे हैं, तो ऑस्ट्रेलिया के भीतर कुछ लोग इसे जल्दबाजी और समझौता करार दे रहे हैं. सवाल है कि ये बदलाव क्यों आया, अब इसका असर क्या होगा, और ट्रंप इसमें जीत का सेहरा क्यों बांध रहे हैं?
ट्रंप ने इसे क्यों अपनी ‘बड़ी जीत’ बताया?
जैसे ही ऑस्ट्रेलिया ने आयात में ढील देने का ऐलान किया, ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Truth Social पर लिखा: "अब हम ऑस्ट्रेलिया को इतना बीफ बेचेंगे कि पूरी दुनिया को यकीन हो जाएगा कि अमेरिका का गोमांस सबसे बढ़िया और सबसे सुरक्षित है!"
ट्रंप पहले भी इस मुद्दे को गरमा चुके हैं. उन्होंने कई बार ऑस्ट्रेलिया पर आरोप लगाए कि वो अमेरिका से बीफ खरीद तो रहा है, लेकिन खुद अमेरिकी बीफ को बेमतलब के प्रतिबंधों में जकड़ रखा है. अप्रैल 2024 में ट्रंप ने यह तक धमकी दी थी कि अगर ऑस्ट्रेलिया नहीं झुका, तो उस पर भारी-भरकम टैरिफ ठोंक दिए जाएंगे - 10% से लेकर 50% तक का. अब जब ऑस्ट्रेलिया पीछे हटा है, ट्रंप इसे चुनावी जीत की तरह भुना रहे हैं.
बीफ पर पाबंदी थी क्यों?
ऑस्ट्रेलिया में एक पुराना डर रहा है - मैड काउ डिजीज (BSE) और फुट एंड माउथ जैसी बीमारियां. अमेरिका से आने वाले बीफ में अगर किसी जानवर की जड़ें कनाडा या मैक्सिको से जुड़ी मिलती थीं, तो ऑस्ट्रेलिया उन्हें ब्लॉक कर देता था.
लेकिन, अब अमेरिका ने पशु ट्रैकिंग सिस्टम को अपग्रेड कर दिया है. हर गाय-बैल का डेटा, उसकी पहचान, और वह किस खेत से आया है - सब कुछ डिजिटल रिकॉर्ड में ट्रेस किया जा सकता है. इसी आधार पर ऑस्ट्रेलिया की कृषि मंत्री जूली कॉलिन्स ने भरोसा जताया कि "अब बायो-सिक्योरिटी से कोई समझौता नहीं होगा."
ये फैसला आया कैसे और क्यों?
सीधा कहें तो ट्रंप की धमकियों और लॉबिंग का असर दिखा. ऑस्ट्रेलिया के पास विकल्प सीमित थे. वहां की सरकार यह भी जानती है कि अमेरिका के साथ व्यापारिक टकराव मोल लेना फिलहाल उनके हित में नहीं. लेकिन यहां एक पेंच है - कुछ लोगों को लग रहा है कि सरकार ने 'दबाव' में आकर जल्दबाजी कर दी.
विपक्ष और बीफ कारोबार को क्या डर सता रहा है?
ऑस्ट्रेलिया के विपक्षी नेता डेविड लिटिलप्राउड का कहना है कि सरकार ने "राजनीतिक दबाव में" जैविक सुरक्षा से समझौता कर लिया. ऑस्ट्रेलिया का बीफ उद्योग करीब 50 अरब डॉलर का है. इसमें से 70 प्रतिशत हिस्सा एक्सपोर्ट पर टिका है. यानी अगर गलती से कोई बीमारी फैली, तो पूरा व्यापार तहस-नहस हो सकता है. बीफ एक्सपोर्टर्स को डर है कि अमेरिका से बीमारियों की एंट्री हुई, तो दूसरे देशों के बाजार फौरन ऑस्ट्रेलिया का दरवाजा बंद कर देंगे.
अमेरिकी बीफ की कीमतें आसमान पर, फिर भी मांग क्यों नहीं बढ़ेगी?
अमेरिका में बीफ पहले से ही महंगा है. ग्राउंड बीफ $6.12 प्रति पाउंड और स्टेक $11.49 प्रति पाउंड तक पहुंच गया है. अब इतने महंगे बीफ को जब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की कमजोरी के साथ देखा जाता है, तो साफ हो जाता है कि आम जनता के लिए ये सस्ता सौदा नहीं होगा. ऊपर से ऑस्ट्रेलिया के खुद के बीफ बाजार में पहले से कोई किल्लत नहीं है. इसलिए, फिलहाल तो अमेरिकी बीफ के लिए कोई ‘बूम मार्केट’ बनने वाला नहीं है, लेकिन ट्रंप इसे न सिर्फ घरेलू जीत, बल्कि अंतरराष्ट्रीय दबदबे की तरह पेश कर रहे हैं.
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