हम इंसानों ने भले ही चांद पर झंडा गाड़ दिया हो, लेकिन उससे पहले कुछ ऐसे मासूम और बहादुर जानवर थे जो बिना कुछ कहे, बिना किसी तैयारी के, रॉकेट में बिठा दिए गए. उन्होंने न सिर्फ हमारी तरफ से स्पेस का रास्ता टटोला, बल्कि ये भी साबित कर दिया कि ज़िंदा रहकर स्पेस से लौटना मुमकिन है. अगर ये जानवर ना होते, तो शायद इंसान को स्पेस में भेजना इतना जल्दी मुमकिन नहीं हो पाता.
लाइका: पहला स्ट्रीट डॉग जो धरती की कक्षा में पहुंचा
1957 में रूस ने एक स्ट्रीट डॉग को चुना और उसे स्पूतनिक-2 में बिठाकर धरती की कक्षा में भेज दिया. नाम था उसका लाइका. वो पहली जीवित चीज़ थी जिसने धरती का चक्कर लगाया. दुख की बात ये है कि लाइका जिंदा नहीं लौटी — स्पेसक्राफ्ट में ज़्यादा गर्मी हो गई और उसका दम घुट गया. लेकिन उसकी कुर्बानी बेकार नहीं गई. दुनिया को पहली बार यकीन हुआ कि कोई जीव स्पेस ट्रैवल झेल सकता है.
अल्बर्ट II: पहला बंदर जो धरती के बाहर गया
लाइका से भी पहले, 1949 में अमेरिका ने एक बंदर भेजा था — अल्बर्ट II. ये रीसस मंकी धरती के वातावरण से बाहर निकल गया था, लगभग 134 किलोमीटर की ऊंचाई तक. लेकिन लौटते वक्त पैराशूट फेल हो गया और उसकी जान चली गई. फिर भी उसकी फ्लाइट ने ये दिखा दिया कि जानवरों पर स्पेस के असर को समझना कितना ज़रूरी है.
फेलिसेट: अंतरिक्ष में जाने वाली पहली बिल्ली
1963 में फ्रांस ने एक बिल्ली को स्पेस भेजा, नाम था फेलिसेट. ये आज तक की इकलौती "स्पेस कैट" है. उसकी नसों में इलेक्ट्रोड लगाए गए थे ताकि उसकी ब्रेन एक्टिविटी को ट्रैक किया जा सके. अच्छी बात ये रही कि वो सही सलामत वापस लौट आई और आज भी उसे लोग प्यार से “एस्ट्रो-कैट” कहते हैं.
वो कछुए जो चांद के चारों ओर घूमे
1968 में सोवियत यूनियन ने जोंड 5 मिशन के ज़रिए कुछ कछुओं को चांद के चारों ओर घुमा कर वापस धरती पर उतारा. सोचिए, इंसानों से पहले कछुए चांद का चक्कर काट आए! और हां, ये सब सुरक्षित लौटे. इस मिशन ने साबित कर दिया कि स्पेस का राउंड-ट्रिप एक जीव के लिए मुमकिन है.
नेमाटोड: छोटे कीड़े लेकिन काम बड़े
ये छोटे-छोटे कीड़े, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में नेमाटोड कहते हैं, स्पेस में भेजे गए ताकि देखा जा सके कि बिना गुरुत्वाकर्षण के शरीर कैसे रिएक्ट करता है. इन कीड़ों ने दिखाया कि माइक्रोग्रैविटी में मूवमेंट और बॉडी फ़ंक्शन कैसे बदलते हैं. इनसे जो डेटा मिला, उसने स्पेस मिशन की तैयारी को और बेहतर बना दिया.
अना और एबीगेल: जो स्पेस में जाले बुनने गईं
1973 में दो मकड़ियां, अना और एबीगेल, को स्पेस भेजा गया ताकि देखा जा सके कि वो ज़ीरो ग्रैविटी में कैसे जाले बुनती हैं. पहली बार में थोड़ा गड़बड़ हुआ, लेकिन कुछ ही घंटों में दोनों ने ज़बरदस्त बैलेंस्ड जाले बना दिए. इससे पता चला कि माइक्रोग्रैविटी में भी जानवर जल्दी एडजस्ट कर लेते हैं.
चूहे: स्पेस के साइलेंट हीरो
अब तक सबसे ज़्यादा बार स्पेस में भेजे गए जानवर हैं चूहे. क्यों? क्योंकि इंसानों के डीएनए से ये काफी मिलते-जुलते हैं. इनसे ये समझा गया कि स्पेस में हड्डियों, मांसपेशियों, इम्यून सिस्टम पर क्या असर पड़ता है. चूहों की हेल्प से लंबी स्पेस ट्रिप्स — जैसे मंगल मिशन — की तैयारी हो सकी.
जानवर क्यों भेजे गए? और आज भी क्यों ज़रूरी हैं?
सच्चाई ये है कि बिना जानवरों को भेजे, इंसानों को सीधे स्पेस में भेजना बहुत रिस्की होता. जानवरों ने हमें बताया कि स्पेस में क्या खतरे हैं — रेडिएशन, जीरो ग्रैविटी, हार्ट-बीट और दिमाग पर असर वगैरह. आज भी वैज्ञानिक रिसर्च के लिए कुछ जानवरों की मदद लेते हैं ताकि हम स्पेस में और बेहतर ज़िंदगी जी सकें.
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