अमित शाह ने स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस का किया उद्घाटन, बोले- भारत में खून बहाए बिना सत्ता परिवर्तन होता है

    दिल्ली विधानसभा में रविवार को दो दिवसीय ऑल इंडिया स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस की शुरुआत हुई. इस महत्वपूर्ण आयोजन का उद्घाटन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया.

    Amit Shah inaugurated the Speakers Conference
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा में रविवार को दो दिवसीय ऑल इंडिया स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस की शुरुआत हुई. इस महत्वपूर्ण आयोजन का उद्घाटन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किया. इस कार्यक्रम में देश भर की 29 विधानसभाओं के स्पीकर, 6 राज्यों की विधान परिषदों के सभापति और उपसभापति उपस्थित रहे. इसके अतिरिक्त, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार और कई अन्य वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री भी इस सम्मेलन का हिस्सा बने.

    लोकतंत्र की जड़ों को और गहराई मिली: अमित शाह

    अपने उद्घाटन भाषण में अमित शाह ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और विशिष्टता को रेखांकित करते हुए कहा कि जब भारत ने आजादी प्राप्त की थी, तब दुनियाभर में यह चर्चा थी कि क्या भारत लोकतंत्र को संभाल पाएगा. लेकिन आज, स्वतंत्रता के 80 वर्षों बाद, भारत ने यह साबित कर दिया है कि यहां की जनता के स्वभाव में लोकतंत्र रचा-बसा है.

    उन्होंने जोर देते हुए कहा कि विश्व के कई देशों में सत्ता परिवर्तन खून-खराबे, विद्रोह और गृहयुद्धों के माध्यम से हुआ है. लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जहां सत्ता में बदलाव शांति और संवैधानिक मर्यादाओं के तहत होता रहा है और वह भी बिना खून की एक बूंद बहाए.

    संसद और विधानसभाओं की गरिमा पर दिया ज़ोर

    गृह मंत्री ने यह भी कहा कि संसद और राज्य विधानसभाएं सिर्फ कानून बनाने की जगह नहीं हैं, बल्कि वे जनता की आवाज़ हैं. उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि कभी-कभी राजनीतिक हितों के कारण संसद की कार्यवाही बाधित की जाती है, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.

    अमित शाह ने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा, "जब किसी सभा में नारी का सम्मान नहीं हुआ, तब महाभारत जैसी त्रासदी हुई. यह सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि जब सभाओं की गरिमा नष्ट होती है, तो समाज को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं."

    सभापति की भूमिका: सबसे कठिन, सबसे महत्वपूर्ण

    अपने भाषण में गृह मंत्री ने स्पीकर या सभापति की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील बताया. उन्होंने कहा कि भले ही कोई स्पीकर किसी राजनीतिक दल से आता हो, लेकिन शपथ लेते ही वह एक अंपायर की तरह निष्पक्ष भूमिका निभाने के लिए बाध्य होता है.

    उन्होंने कहा, "सभापति का कर्तव्य सबसे कठिन होता है क्योंकि उन्हें सभी दलों को समान दृष्टिकोण से देखना होता है. उनकी निष्पक्षता ही लोकतंत्र की रीढ़ है."

    100 साल पहले चुने गए पहले भारतीय स्पीकर

    इस स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस का आयोजन एक ऐतिहासिक अवसर पर हो रहा है. ठीक 100 साल पहले, 24 अगस्त 1925 को, विट्ठलभाई पटेल को भारत की केंद्रीय असेंबली का पहला भारतीय स्पीकर चुना गया था. इस ऐतिहासिक उपलब्धि की स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया जाएगा.

    सम्मेलन स्थल का ऐतिहासिक महत्व

    दिल्ली विधानसभा का भवन, जहां यह सम्मेलन हो रहा है, अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है. ब्रिटिश काल में यही इमारत सेंट्रल असेंबली के नाम से जानी जाती थी. यहीं पर 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश हुकूमत की नीतियों के विरोध में बम फेंके थे. यह बम जानलेवा नहीं था, बल्कि उसमें सिर्फ आवाज़ और धुआं पैदा करने वाला पदार्थ था ताकि अंग्रेजी सरकार तक क्रांतिकारियों की आवाज़ पहुंचाई जा सके.

    बम फेंकने के बाद दोनों क्रांतिकारियों ने मौके से भागने की बजाय ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए और आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई. बटुकेश्वर दत्त को कुख्यात सेल्यूलर जेल (काला पानी) भेजा गया, जबकि भगत सिंह को बाद में सांडर्स हत्याकांड में फांसी दी गई.

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