केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा जताया है कि विपक्ष की कड़ी आलोचनाओं के बावजूद संविधान के 130वें संशोधन से जुड़ा विधेयक संसद में पारित हो जाएगा. इस संशोधन के तहत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को ऐसे मामलों में पद से हटाने का प्रावधान रखा गया है, जहां उन्हें पांच साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराध के तहत लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार और हिरासत में रखा जाता है.
अमित शाह ने कहा कि इस बिल में कोई असुरक्षा नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि गिरफ्तार होने के बाद जमानत मिलने तक संबंधित व्यक्ति अपने पद पर बने नहीं रह पाएंगे. यदि अदालत से जमानत मिल जाती है तो वह फिर से पद की शपथ ले सकते हैं. इसके अलावा, यदि आरोप साबित नहीं होते हैं और वह निर्दोष साबित होते हैं, तो उनका पद पुनः बहाल कर दिया जाएगा.विधेयक को अब विस्तृत समीक्षा के लिए संसद के दोनों सदनों की 31 सदस्यों वाली संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को सौंप दिया गया है, जो इसकी जांच-पड़ताल कर अपनी सिफारिशें मतदान से पहले प्रस्तुत करेगी.
अमित शाह का विधेयक पर तर्क
एक इंटरव्यू में अमित शाह ने इस विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि इसका मकसद देश में ‘संवैधानिक नैतिकता’ को बनाए रखना और जनता के विश्वास को मजबूत करना है. उन्होंने यह भी कहा कि यह संशोधन सभी नेताओं पर समान रूप से लागू होगा, चाहे वे किसी भी पार्टी से हों. शाह ने कहा,मुझे पूरा भरोसा है कि यह विधेयक पारित होगा. कांग्रेस समेत विपक्ष में कई ऐसे लोग हैं जो नैतिकता के पक्ष में खड़े होंगे.
प्रधानमंत्री ने खुद किया शामिल
अमित शाह ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इस विधेयक में अपने पद को शामिल किया है. उन्होंने 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लाए गए 39वें संशोधन का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए प्रावधान किए गए थे. इसके विपरीत, इस बार मोदी सरकार ने ऐसा संशोधन प्रस्तुत किया है जो प्रधानमंत्री को भी जेल जाने की स्थिति में इस्तीफा देने के लिए बाध्य करेगा.
विधेयक पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
130वें संशोधन विधेयक को लेकर संसद में कड़ी बहस हुई है. विपक्ष ने इस विधेयक को राजनीतिक उपकरण बताते हुए आरोप लगाया है कि इसका मकसद गैर-बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करना है. अमित शाह ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया और कहा कि सरकार अदालतों पर दबाव डालकर जमानत की प्रक्रिया में देरी नहीं कर रही है.
अदालतों की भूमिका और उदाहरण
अमित शाह ने अदालतों की भूमिका पर भरोसा जताते हुए कहा कि अदालतें कानून की गंभीरता को समझती हैं और निर्णय उसी के अनुसार लेती हैं. उन्होंने अरविंद केजरीवाल के मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि जब उनका नाम आया कि जेल में होने के कारण उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए, तो हाईकोर्ट ने कहा कि नैतिक आधार पर ऐसा होना चाहिए, लेकिन वर्तमान कानून में इसकी कोई बाध्यता नहीं है.
इस विधेयक के माध्यम से सरकार का प्रयास है कि सार्वजनिक पदों पर ऐसे लोग न बने रहें जिन पर गंभीर आपराधिक आरोप हों और जिनकी गिरफ्तारी से राजनीतिक व्यवस्था पर असर पड़े. संसद के अनुमोदन के बाद यह संशोधन देश की राजनीतिक व्यवस्था में एक नया बदलाव लेकर आएगा.
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