अमेरिका ने युद्धों पर 480 लाख करोड़ रुपये उड़ा दिए, 9.4 लाख लोगों की हुई मौत; हैरान कर देगी ये रिपोर्ट

    पिछले बीस वर्षों में अमेरिका ने जिस आक्रामक सैन्य नीति को अपनाया है, उसने दुनिया की शक्ल बदल दी है—न सिर्फ राजनीतिक स्तर पर, बल्कि मानवीय और आर्थिक स्तर पर भी.

    America spent 480 lakh crore rupees on wars 9 lakh people died
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    पिछले बीस वर्षों में अमेरिका ने जिस आक्रामक सैन्य नीति को अपनाया है, उसने दुनिया की शक्ल बदल दी है—न सिर्फ राजनीतिक स्तर पर, बल्कि मानवीय और आर्थिक स्तर पर भी. अफगानिस्तान और इराक से लेकर अब ईरान तक, अमेरिकी हस्तक्षेप ने लाखों ज़िंदगियों को खत्म कर दिया और खरबों डॉलर का धन युद्धों की भट्टी में झोंक दिया. जिस धन का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास कार्यों में किया जा सकता था, वह बारूद, मिसाइल और टैंकों की दौड़ में तब्दील हो गया.

    अमेरिका ने अपने रक्षा बजट में 997 बिलियन डॉलर खर्च किए

    हाल ही में अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमला किया, जिसमें सात B-2 स्टील्थ बॉम्बर्स ने बम गिराए. इस ऑपरेशन में 125 से अधिक विमान शामिल थे, जिनमें लड़ाकू जहाजों के साथ टैंकर, निगरानी विमान और सहयोगी उपकरण भी थे. इस सैन्य कार्रवाई की लागत सैकड़ों मिलियन डॉलर में आंकी जा रही है. यह ताज़ा हमला उस लकीर को और गहरा करता है, जो पिछले दो दशकों से अमेरिकी विदेश नीति के केंद्र में है—आक्रामक सैन्य मौजूदगी और वैश्विक वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश.

    वर्ष 2024 में अमेरिका ने अपने रक्षा बजट में लगभग 997 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं. यह आंकड़ा पूरी दुनिया के कुल सैन्य खर्च का लगभग 37 प्रतिशत बैठता है. अमेरिका का यह खर्च चीन के मुकाबले तीन गुना और रूस से सात गुना ज्यादा है. बावजूद इसके, सुरक्षा की कोई ठोस गारंटी नहीं मिल सकी—न अमेरिका को, न दुनिया को.

    अकेले अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमावर्ती लड़ाइयों में 2.43 लाख लोग मारे गए

    ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि 2001 के बाद से अमेरिकी नेतृत्व में हुए युद्धों ने अफगानिस्तान, इराक, पाकिस्तान, सीरिया, यमन और अन्य क्षेत्रों में लगभग 9.4 लाख लोगों की जान ली है. यह आंकड़ा सिर्फ सीधे युद्ध से मारे गए लोगों का है. युद्ध के कारण उत्पन्न हुई भुखमरी, बीमारियों, विस्थापन और जीवन संकट को मिलाकर मरने वालों की संख्या 36 से 38 लाख तक पहुंच जाती है. अकेले अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमावर्ती लड़ाइयों में 2.43 लाख लोग मारे गए, जबकि इराक युद्ध में करीब 3.15 लाख लोगों की जान चली गई. इन संघर्षों में अमेरिका के 7,052 सैनिक और 8,189 सैन्य ठेकेदार भी मारे जा चुके हैं, जबकि अमेरिका के सहयोगी देशों के 14,874 सैनिक भी इन लड़ाइयों का हिस्सा बनकर अपनी जान गंवा चुके हैं.

    अमेरिका ने इन युद्धों पर कुल 5.8 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए हैं. इस रकम में रक्षा विभाग द्वारा सीधे युद्ध पर किए गए खर्च, होमलैंड सिक्योरिटी, सैनिकों के इलाज, युद्ध ऋण पर ब्याज और रक्षा बजट में की गई अतिरिक्त बढ़ोतरी शामिल हैं. भविष्य में भी यह खर्च रुकने वाला नहीं है. अनुमान है कि अगले 30 वर्षों में अमेरिका को पूर्व सैनिकों की देखभाल पर लगभग 2.2 ट्रिलियन डॉलर और खर्च करने होंगे. इस तरह कुल लागत 8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है, जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर असहनीय बोझ की तरह है.

    इतना ही नहीं, अमेरिका दशकों से इज़राइल को सैन्य सहायता देता आ रहा है. 1959 से अब तक अमेरिका इज़राइल को 251.2 बिलियन डॉलर की मदद दे चुका है. 2016 में किए गए समझौते के तहत अमेरिका हर साल इज़राइल को 3.8 बिलियन डॉलर देता है और यह सहायता 2028 तक जारी रहने वाली है. ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या अमेरिका की रक्षा नीति सिर्फ अपनी सुरक्षा तक सीमित है, या यह वैश्विक सत्ता संतुलन को प्रभावित करने की एक लंबी योजना का हिस्सा है?

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