ईरान और इजराइल के बीच हालिया युद्ध विराम के बाद, अमेरिका ने ईरान पर एक नई परमाणु डील के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया है. हालांकि ईरान ने इस डील के प्रति अपनी इच्छा जताई है, लेकिन वह इसमें जल्दबाजी नहीं चाहता. अब, अमेरिका और यूरोपीय संघ के तीन प्रमुख देशों ने ईरान को इस समझौते तक पहुंचने के लिए 45 दिनों का समय दिया है. यदि इस समय सीमा तक कोई ठोस समझौता नहीं होता, तो उन देशों के पास ‘स्नैपबैक’ तंत्र को लागू करने की योजना है, जिसका मतलब है कि 2015 के परमाणु समझौते के तहत हटाए गए सभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध फिर से ईरान पर लागू कर दिए जाएंगे. इससे पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे ईरान की स्थिति और भी विकट हो सकती है.
ट्रंप का कहना: "बातचीत की कोई जल्दबाजी नहीं"
वाशिंगटन लौटने के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ईरान अमेरिकी बातचीत के लिए इच्छुक है, लेकिन उन्होंने इस पर कोई खास जल्दी नहीं दिखाई. ट्रंप ने विशेष रूप से ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका द्वारा किए गए हमले का हवाला देते हुए कहा, "वे बातचीत करना चाहेंगे, लेकिन मुझे बातचीत करने की कोई जल्दबाजी नहीं है, क्योंकि हमने उनके परमाणु ठिकानों को नष्ट कर दिया है." यह संकेत है कि अमेरिका अपनी स्थिति में कोई बदलाव करने के लिए तैयार नहीं है, कम से कम तब तक जब तक ईरान अपनी आक्रामक गतिविधियों को रोकने की गारंटी नहीं देता.
2015 का समझौता: एक इतिहास और वर्तमान का सवाल
ईरान और पश्चिमी देशों के बीच 2015 में हुआ परमाणु समझौता एक ऐतिहासिक घटना था. उस समय, ईरान पर परमाणु कार्यक्रम को लेकर कड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए थे. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ समझौता कर इन प्रतिबंधों को हटा दिया था, जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था में सुधार आया था. लेकिन ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में इस डील को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि समझौता ईरान को अधिक फायदा पहुंचा रहा था और यह उनके सुरक्षा हितों के खिलाफ था.
बातचीत का ठहराव और इजराइल का हस्तक्षेप
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में एक बार फिर अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील पर बातचीत शुरू हुई थी. हालांकि, इस बार कुछ अप्रत्याशित घटनाओं ने इन वार्ताओं को प्रभावित किया. 13 जून को, इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और अन्य सैन्य सुविधाओं पर हमला किया. इस हमले के बाद, ईरान ने वार्ता से पीछे हटते हुए कहा कि वह फिर से बातचीत शुरू करने से पहले एक स्थायी सीजफायर और हमले न होने की गारंटी चाहता है.
क्या ईरान को 2015 जैसा परिणाम मिलेगा?
अब सवाल यह है कि क्या ईरान को 2015 जैसा समझौता फिर से मिलेगा? या क्या यह संकट और तनाव की ओर बढ़ेगा? समय सीमा की समाप्ति और ‘स्नैपबैक’ तंत्र की धमकी ईरान के लिए एक नई चुनौती पेश करती है. अगर दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनती है, तो ईरान पर फिर से संयुक्त राष्ट्र द्वारा आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़ेगा.
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