Taiwan China Conflict: अमेरिका ने ताइवान को अब तक का सबसे बड़ा हथियार पैकेज देने की मंजूरी दे दी है. इस सौदे की कुल कीमत 11.1 अरब डॉलर है, जो भारतीय मुद्रा में लगभग 93,500 करोड़ रुपए के बराबर है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब चीन और ताइवान के बीच सैन्य तनाव लगातार बढ़ रहा है.
अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह सौदा ताइवान की सुरक्षा और आत्मरक्षा क्षमता को मजबूत करने के उद्देश्य से किया गया है. रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह हथियार पैकेज किसी भी संभावित चीनी सैन्य कार्रवाई को रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है.
चीन के बढ़ते दबाव के बीच ताइवान की तैयारी
ताइवान को आशंका है कि चीन आने वाले कुछ वर्षों में उस पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है. सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि 2027 तक चीन किसी हमले की योजना बना सकता है. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और पिछले कुछ वर्षों में उसने ताइवान के आसपास बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास किए हैं. ऐसे में अमेरिका द्वारा यह हथियार सौदा रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
हथियार पैकेज की विशेषताएं
इस डील को आठ अलग-अलग पैकेजों में बांटा गया है. इसमें HIMARS रॉकेट सिस्टम, ATACMS लंबी दूरी की मिसाइलें, स्वचालित हॉवित्जर, ड्रोन सिस्टम, जैवलिन और TOW एंटी-टैंक मिसाइलें, सैन्य सॉफ्टवेयर और हेलीकॉप्टर के पुर्जे शामिल हैं. ये हथियार ताइवान की असममित युद्ध रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें कम संख्या में लेकिन अत्यधिक प्रभावी हथियारों से बड़ी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया जा सकता है.
ताइवान का स्पेशल डिफेंस बजट
ताइवान की सरकार इस सौदे के पांच बड़े पैकेज, HIMARS, हॉवित्जर, TOW 2B मिसाइलें, जैवलिन मिसाइलें और एंटी-आर्मर ड्रोन को अपने प्रस्तावित 40 अरब डॉलर के स्पेशल डिफेंस बजट से खरीदेगी. यह बजट फिलहाल ताइवान की संसद में मंजूरी के लिए लंबित है. सरकार का कहना है कि यह निवेश ताइवान की सुरक्षा और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है.
अमेरिका-ताइवान संबंध और कानूनी आधार
यह हथियार सौदा अमेरिका और ताइवान के रक्षा सहयोग की निरंतरता को दर्शाता है. अमेरिका Taiwan Relations Act के तहत ताइवान की सुरक्षा और आत्मरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. ट्रंप प्रशासन के इस कार्यकाल में यह ताइवान के लिए दूसरी बड़ी हथियार बिक्री है. इससे पहले नवंबर में लगभग 330 मिलियन डॉलर का एक छोटा सौदा किया गया था, जिसमें सैन्य विमान के पुर्जे शामिल थे.
चीन की संभावित प्रतिक्रिया और क्षेत्रीय तनाव
ताइवान को हथियार देने पर चीन की नाराजगी कोई नई बात नहीं है. बीजिंग पहले भी इस तरह के सौदों का विरोध करता रहा है और इसे अपनी संप्रभुता में हस्तक्षेप मानता है. हालांकि इस ताजा डील पर चीन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन माना जा रहा है कि इससे अमेरिका-चीन संबंधों में और तनाव बढ़ सकता है.
ताइवान की रक्षा नीति में बदलाव
ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने देश के रक्षा खर्च को GDP के 3% से बढ़ाकर 5% करने की योजना बनाई है. यह हथियार सौदा उसी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य चीन के खिलाफ मजबूत deterrence तैयार करना है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम ताइवान की सेना को आधुनिक बनाने के साथ-साथ क्षेत्रीय सुरक्षा संतुलन में भी बदलाव ला सकता है.
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