चीन के तियानजिन शहर में 31 अगस्त से शुरू होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में विश्व राजनीति के तीन बड़े चेहरे—भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन—एक मंच पर नजर आएंगे. इस बहुप्रतीक्षित मुलाकात के कई भू-राजनीतिक संकेत हो सकते हैं, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनातनी ने नया मोड़ ले लिया है.
27 अगस्त से अमेरिकी सरकार ने भारत के कुछ प्रमुख निर्यात उत्पादों जैसे झींगा, वस्त्र, चमड़ा और रत्न-जड़ित आभूषण—पर आयात शुल्क दोगुना कर दिया है. ये सभी श्रम-प्रधान क्षेत्र भारत के अमेरिका को लगभग 86 अरब डॉलर के वार्षिक निर्यात में अहम योगदान करते हैं. हालांकि फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स और पेट्रोलियम उत्पाद इस सूची से बाहर हैं, लेकिन फिर भी नए टैरिफ भारत के कुल निर्यात का आधे से अधिक हिस्सा प्रभावित कर सकते हैं.
अमेरिका की टैरिफ तलवार और भारत पर असर
अब तक भारतीय वस्तुओं पर 25% का शुल्क लगाया जाता रहा है, लेकिन दोगुनी दर से लागत और प्रतिस्पर्धा दोनों पर असर पड़ना तय है. जानकारों का मानना है कि यह फैसला भारत द्वारा रूस से तेल और हथियारों की खरीद को लेकर अमेरिका की नाराज़गी का नतीजा हो सकता है.
मोदी की चीन यात्रा: कूटनीति में नया अध्याय
यह दौरा खास इसलिए भी है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी लगभग सात साल बाद चीन की यात्रा कर रहे हैं. भारत-चीन के बीच लंबे समय से सीमा तनाव की स्थिति रही है, ऐसे में यह दौरा दोनों देशों के रिश्तों में एक नई शुरुआत का संकेत भी दे सकता है.एससीओ सम्मेलन, जिसकी मेज़बानी इस बार चीन कर रहा है, अपने आप में एक बड़ा मंच बन चुका है जहां 20 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों के शामिल होने की संभावना है. जिनपिंग की नजर इस संगठन को पश्चिमी दबदबे वाले मंचों का विकल्प बनाने पर है, जबकि रूस के लिए यह एक राजनयिक पुनर्स्थापना का अवसर है.
रूस-भारत संबंधों का संदेश
रूसी राष्ट्रपति पुतिन की उपस्थिति भी कम अहम नहीं है. यूक्रेन युद्ध के बाद से वैश्विक मंचों पर पुतिन की भूमिका सीमित हो गई थी. एससीओ जैसे मंच उन्हें अंतरराष्ट्रीय संवाद में लौटने का अवसर देते हैं. भारत की ओर से यह साफ संकेत है कि रूस के साथ ऐतिहासिक रिश्ते अभी भी कायम हैं, चाहे पश्चिम कितना ही दबाव बनाए.बता दें, इससे पहले भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉस्को की यात्रा कर पुतिन से मुलाकात की थी और व्यापार, अफगानिस्तान व यूक्रेन जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की थी.
जापान में बैठक के बाद चीन रवाना होंगे पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले 28 से 30 अगस्त के बीच जापान यात्रा पर होंगे, जहां उनकी जापानी समकक्ष शिगेरु इशिबा से वार्षिक द्विपक्षीय वार्ता होगी. इसके तुरंत बाद वे एससीओ समिट में हिस्सा लेने तियानजिन पहुंचेंगे. यह यात्रा दर्शाती है कि भारत एशिया के भीतर रणनीतिक संतुलन बनाने को लेकर पूरी तरह सक्रिय है.
क्या होंगे SCO 2025 के प्रमुख एजेंडे?
एससीओ के इस साल के सम्मेलन में भारत किन रुखों के साथ आगे बढ़ेगा, इस पर सबकी निगाहें हैं. सीमा विवाद पर चीन से कुछ सकारात्मक पहल की उम्मीद जताई जा रही है. व्यापार और वीज़ा सहयोग के नए रास्ते खुल सकते हैं. मोदी के भाषण में भारत के "संप्रभुता, संपर्क और सहयोग" के सिद्धांतों को प्रमुखता मिलने की संभावना है. इस बैठक के माध्यम से भारत यह संकेत देना चाहता है कि वह किसी भी ध्रुवीय खेमे में शामिल हुए बिना, एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का हिस्सा बनने के पक्ष में है.
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