इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जो उन युवाओं से जुड़ा है जो अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर अपनी पसंद से शादी करते हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे कपल्स को सीधे-सीधे पुलिस सुरक्षा देने का हक नहीं है, जब तक उनकी जान या आज़ादी को असली खतरा न हो.
कोर्ट ने ये फैसला क्यों सुनाया?
यह फैसला एक कपल की याचिका पर आया, जिन्होंने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी. कोर्ट ने उनकी बातों को सुनने के बाद कहा कि अगर किसी कपल की जान या आज़ादी को वास्तविक खतरा हो, तभी सुरक्षा देने पर विचार किया जा सकता है. लेकिन अगर सिर्फ इस वजह से सुरक्षा मांगी जा रही है कि शादी माता-पिता की मर्जी के खिलाफ हुई है, तो वह कारण काफी नहीं है.
कोर्ट ने क्या कहा?
“ऐसे कपल्स को समाज का सामना करना और एक-दूसरे का साथ निभाना सीखना चाहिए.” कोर्ट ने कहा कि अगर किसी तरह का खतरा नहीं है, तो सुरक्षा देने की जरूरत नहीं. कोर्ट ने 'लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश' केस का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि कोर्ट का काम हर उस कपल को सुरक्षा देना नहीं है जो भागकर शादी करता है.
क्यों नहीं मिली सुरक्षा?
कपल की तरफ से कोई ठोस सबूत नहीं दिया गया कि उन्हें जान का खतरा है. उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके परिवार वाले उन्हें शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसलिए कोर्ट ने उनकी रिट याचिका खारिज कर दी. अगर कोई लड़का-लड़की अपनी मर्जी से शादी करते हैं और उन्हें असल में कोई खतरा नहीं है, तो वे पुलिस से सीधे सुरक्षा की मांग नहीं कर सकते. उन्हें समाज का सामना करना और अपने रिश्ते को खुद संभालना सीखना होगा.