Shahid Afridi On WCL: इंग्लैंड में चल रही वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स (WCL) में भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला बहुचर्चित मुकाबला रद्द हो गया है, लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा. इस बार आग में घी डालने का काम किया है पाकिस्तान के पूर्व कप्तान शाहिद अफरीदी ने, जिन्होंने भारतीय खिलाड़ियों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से इनकार करने पर तीखी प्रतिक्रिया दी है.
अफरीदी ने भड़कते हुए कहा, "अगर भारत को पाकिस्तान के खिलाफ खेलना ही नहीं था, तो टूर्नामेंट में आना ही नहीं चाहिए था." उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भारत में पहलगाम आतंकी हमले के बाद देशभर में पाकिस्तान के खिलाफ भारी आक्रोश है. ऐसे में अफरीदी का यह बयान भारतीय खेलप्रेमियों को नागवार गुज़रा है.
आतंकी हमला और ‘ऑपरेशन सिंदूर’
अप्रैल महीने में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. भारत ने आतंक के खिलाफ 'ऑपरेशन सिंदूर' के ज़रिए जवाब दिया और कई पाकिस्तानी आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया. इस पृष्ठभूमि में जब भारतीय खिलाड़ियों ने पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से इनकार किया, तो उन्होंने न सिर्फ अपने देश के जज़्बात को प्राथमिकता दी, बल्कि देशभक्ति की मिसाल भी पेश की.
कौन सी 'खेल भावना'?
शाहिद अफरीदी का यह कहना कि भारत को टूर्नामेंट में नहीं आना चाहिए था, खेल भावना से ज़्यादा राजनीतिक बयान जैसा प्रतीत होता है. यह वही अफरीदी हैं, जो पाकिस्तान में "विक्ट्री परेड" निकाल रहे थे, जब भारत आतंकवाद से जूझ रहा था. ऐसे में उनका एक भारतीय-प्रवर्तित टूर्नामेंट में हिस्सा लेना और फिर भारतीय खिलाड़ियों की नीयत पर सवाल उठाना, उनकी दोगली सोच को उजागर करता है.
गौरतलब है कि WCL के सहमालिक हैं बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन, और इसके सीईओ हर्षित तोमर, जो भारतीय हैं. ऐसे में अफरीदी जैसे खिलाड़ी का इस मंच का उपयोग कर राजनीतिक या भड़काऊ बयान देना बेहद निंदनीय है.
खिलाड़ियों का फैसला, देश की आवाज़
भारतीय खिलाड़ियों, हरभजन सिंह, यूसुफ पठान, इरफान पठान, सुरेश रैना, शिखर धवन सहित कई अन्य ने पाकिस्तान के खिलाफ मैच से खुद को अलग कर लिया. उनका यह फैसला सिर्फ एक व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि देश की सामूहिक संवेदना और सुरक्षा भावना का सम्मान था. आयोजकों के पास मैच रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.
नज़रें फेरने की नहीं, आत्ममंथन की ज़रूरत
अफरीदी को यह समझना चाहिए कि हर विवाद का जवाब बयानबाज़ी नहीं होता. किसी भी देश या खिलाड़ी पर सवाल उठाने से पहले उन्हें अपने गिरेबान में झांकने की ज़रूरत है. क्या कुछ रुपयों के लिए 'ईमानदारी' बेचना और फिर उसी मंच पर देश की गरिमा पर सवाल उठाना जायज़ है?
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