चीन और तुर्की के बीच एशिया में वर्चस्व की लड़ाई, जिनपिंग ने किया ऐसा काम; एर्दोगन भी देखते रह गए!

21 फरवरी को जारी इस रिपोर्ट में तुर्की सरकार को सलाह दी गई है कि वह मध्य एशिया, अफ्रीका और मध्य-पूर्व में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मजबूत करे.

battle for supremacy in Asia between China and Turkiye Jinping Erdogan
एर्दोगन और जिनपिंग | Photo: ANI

चीन और तुर्की के बीच एशिया में वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है, जिसमें तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच खतरों की टकराहट नजर आ रही है. तुर्की, जो चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है, अब अपनी विदेश नीति में बदलाव की दिशा में कदम उठा सकता है, और इसके लिए उसे कड़ी रणनीतिक योजना की आवश्यकता होगी.

तुर्की की नेशनल इंटेलिजेंस ऑर्गनाइजेशन (MIT) द्वारा हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की गई है, जिसमें तुर्की सरकार को सलाह दी गई है कि वह चीन के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए अपने कदमों को और सधी रणनीति के साथ उठाए. यह रिपोर्ट विशेष रूप से चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर केंद्रित है, जिसे तुर्की के लिए एक बड़े खतरे के रूप में पेश किया गया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन की विदेश नीति, खासकर सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता और फिलीस्तीन के मुद्दे पर उसकी भूमिका, क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नहीं, बल्कि चीन के अपने हित साधने के लिए है.

तुर्की के लिए संभावित खतरे का कारण

21 फरवरी को जारी इस रिपोर्ट में तुर्की सरकार को सलाह दी गई है कि वह मध्य एशिया, अफ्रीका और मध्य-पूर्व में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मजबूत करे, ताकि चीन के विस्तार को काउंटर किया जा सके. चीन अपनी आर्थिक आक्रामकता के माध्यम से इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ बना रहा है, जो तुर्की के लिए संभावित खतरे का कारण बन सकता है.

इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तुर्की को उइगर मुसलमानों पर चीन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहिए. यह तुर्की के लिए न केवल एक मानवीय मुद्दा है, बल्कि इसके जियो-पॉलिटिकल दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.

तुर्की को 42 अरब डॉलर का व्यापार घाटा

तुर्की, जो नाटो का सदस्य होने के बावजूद हमेशा चीन के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को बढ़ाने में व्यस्त रहा है, अब एक कठिन स्थिति में फंसता नजर आ रहा है. 2023 में, तुर्की ने चीन से 45 अरब डॉलर का आयात किया, जबकि उसने केवल 3 अरब डॉलर के सामान चीन को निर्यात किए, जिससे तुर्की को 42 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ. यही नहीं, चीन ने तुर्की में जो निवेश किया है, उसे भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस निवेश से तुर्की को उतना फायदा नहीं होने वाला है जितना कि चीन को होगा.

ये भी पढ़ेंः Champions Trophy: फाइनल से पहले बड़ी खबर, न्यूजीलैंड टीम को हो सकता है ये नुकसान; टीम इंडिया को मिलेगा फायदा?