'प्रधानमंत्री केवल आम सहमति का उपदेश दे रहे', जानें सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी अखबार में क्या-क्या लिखा

    कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा- प्रधानमंत्री ऐसा कुछ नहीं कर रहे, जिससे यह साबित हो कि वह लोगों के जनादेश से कोई सबक ले रहे हों.

    'प्रधानमंत्री केवल आम सहमति का उपदेश दे रहे', जानें सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी अखबार में क्या-क्या लिखा
    कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर बैठक के दौरान, प्रतीकात्मक तस्वीर | ANI

    नई दिल्ली : सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में लेख लिखकर पीएम मोदी पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि वह संसद में केवल आम सहमति का केवल उपदेश दे रहे हैं और टकराव को बढ़ा रहे हैं. गांधी 2024 के चुनाव में चुनाव बीजेपी को जनादेश न मिलने की बात कही है. 

    सोनिय गांधी ने अपने लेख में लिखा है, "4 जून, 2024 को हमारे देश के मतदाताओं ने स्पष्ट और जोरदार ढंग से अपना फैसला सुनाया है. यह एक ऐसे प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत, राजनीतिक और नैतिक हार का संकेत था, जिसने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को दैवीय (देवता होने) का दर्जा दे दिया था. इस फैसले ने न केवल ऐसे दिखावों को नकार दिया, बल्कि यह बांटने वाली, कलह और घृणा की राजनीति को भी स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया, यह श्री नरेंद्र मोदी के शासन के मतलब और शैली दोनों को नकारने वाला है.

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    संसद में आम सहमति नहीं, पीएम केवल दे रहे हैं उपदेश

    फिर भी, प्रधानमंत्री ऐसे ही बने हुए हैं जैसे कुछ भी नहीं बदला है. वे आम सहमति के महत्व का बस उपदेश दे रहे हैं, जबकि टकराव को महत्व देते हैं. इस बात का ज़रा भी सबूत नहीं है कि वे चुनावी नतीजों से स्वीकार कर रहे हों, या फैसले को समझ पाए हों और लाखों मतदाताओं द्वारा उन्हें भेजे गए संदेश पर विचार कर रहे हों. दुख की बात है 18वीं लोकसभा के पहले कुछ दिन, उत्साहजनक नहीं रहे. ऐसी कोई भी उम्मीद कि हम कोई इनका (मौजूदा सरकार) बदला हुआ रवैया देख पाएंगे, धराशायी हो गया है.

    आपसी सहमित की बात पूरी धाराशयी हो गई है: सोनिया गांधी

    आपसी सम्मान और सामंजस्य की नई भावना को बढ़ावा मिलने की कोई उम्मीद, दोस्ती की बात तो दूर, पूरी तरह से यह झूठ साबित हो गई है.

    उन्होंने लिखा है, मैं पाठकों को याद दिलाना चाहूंगा कि जब प्रधानमंत्री के रहनुमाओं ने अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति मांगी थी, तो इंडिया ब्लॉक की पार्टियों ने प्रधानमंत्री से क्या कहा था. जवाब सरल और सीधा था: हमने कहा कि हम सरकार का समर्थन करेंगे, लेकिन परंपरा को ध्यान में रखते हुए, यह उचित और अपेक्षित ही था कि उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के किसी सदस्य को दिया जाएगा.

    यह पूरी तरह से उचित अनुरोध की बात उस सरकार ने अस्वीकार्य कर दिया है, जिसने, जैसा कि याद हो, 17वीं लोकसभा में उपाध्यक्ष के संवैधानिक पद को नहीं भरा गया था. और फिर, प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने आश्चर्यजनक रूप से 'आपातकाल' के मुद्दे को उठाया, यहां तक ​​कि अध्यक्ष द्वारा भी, जिनका रुख सख्त निष्पक्षता के अलावा किसी भी सार्वजनिक राजनीतिक रुख के साथ मेल नहीं खाता है. संविधान, उसके आधारभूत सिद्धांतों और मूल्यों, व उसके द्वारा निर्मित और सशक्त संस्थाओं पर हो रहे हमलों से ध्यान हटाने का यह प्रयास संसद के सुचारू संचालन के लिए अच्छा नहीं है.

    'यह सच्चाई है कि 1977 के आपातकाल पर जनता ने स्पष्ट फैसला दिया था'

    यह इतिहास का सच तथ्य है कि मार्च 1977 में हमारे देश की जनता ने आपातकाल पर एक स्पष्ट फैसला दिया था, जिसे सोनिया गांधी संसद सदस्य (राज्यसभा) और कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष ने बिना किसी हिचकिचाहट और स्पष्ट रूप से स्वीकार किया. यह भी इतिहास का हिस्सा है कि मार्च 1977 में पराजित हुई पार्टी 3 साल से भी कम समय बाद सत्ता में वापस आई, वहीं श्री मोदी और उनकी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है.

    146 सांसदों का निलंबन अभूतपूर्व घटना : गांधी

    सोनिया ने इस अपने लेख में संसद में 146 सांसदों के निलंबन को भी मुद्दा बनाया है, जिसे उन्होंने विचित्र और अभूतपूर्व करारा दिया है.

    सोनिया लिखती हैं, "ऐसे मुद्दे जिन पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है, हमें आगे देखने की जरूरत है. संसद की सुरक्षा के एक निंदनीय उल्लंघन पर चर्चा की वैध मांग कर रहे 146 सांसदों का विचित्र और अभूतपूर्व था, जिस मांग से यह सुनिश्चित होता कि बिना किसी चर्चा के तीन दूरगामी आपराधिक न्याय कानून पारित किए जा सकें. हालांकि कई कानूनी विशेषज्ञों और कई अन्य लोगों ने इन कानूनों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है.

    क्या इन कानूनों को तब तक टाला नहीं रखा जाना चाहिए जब तक कि वे मान्य संसदीय परंपरा के अनुसार और विशेष रूप से 2024 के चुनावी फैसले के बाद से पूरी संसदीय जांच से ना गुजर जाएं? इसी तरह, वन संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण वन कानूनों में संशोधन पिछले साल संसद में हंगामा और अराजकता के बीच किए गए थे.

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    ग्रेट निकोबार परियोजना पर गांधी ने जताई चिंता

    सोनिया गांधी अपने इस लेख में मोदी सरकार की ग्रेट निकोबार परियोजना पर चिंता जताती हैं. वह कहती हैं कि ग्रेट निकोबार परियोजना को आगे बढ़ाने के साथ ही एक पारिस्थितिक और मानवीय आपदा हमारा इंतजार कर रही है. क्या इन पर भी पुनर्विचार नहीं किया जाना चाहिए ताकि प्रधानमंत्री की सर्वसम्मति और पूर्ण बहस और चर्चा के बाद कानून पारित करने की उनकी इच्छा को सार्थक बनाया जा सके?

    नीट पेपर लीक पर चर्चा ना करने को सोनिया बताया गंभीर

    सोनिया गांधी ने अपने लेख में नीट के मुद्दे को उठाते हुए कहती हैं कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) घोटाले पर जिसने हमारे लाखों युवाओं के जीवन पर कहर बरपाया है, शिक्षा मंत्री की तत्काल प्रतिक्रिया यह थी कि जो कुछ हुआ है उसकी गंभीरता को नजरंदाज कर जाए. प्रधानमंत्री जो अपनी 'परीक्षा पे चर्चा' करते हैं, वे देशभर में इतने सारे परिवारों को तबाह करने वाली लीक पर स्पष्ट रूप से चुप हैं.

    जरूरी 'उच्च शक्ति समितियां' गठित की गई हैं, लेकिन वास्तविक मुद्दा यह है कि पिछले 10 वर्षों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और स्वयं विश्वविद्यालयों जैसे शैक्षणिक संस्थानों की व्यावसायिकता को इतना गहरा नुकसान कैसे पहुंचाया गया है. इस बीच, भारत के अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और धमकी का अभियान एक बार फिर तेज हो गया है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों में, बुलडोजर फिर से महज आरोपों के आधार पर अल्पसंख्यकों के घरों को ध्वस्त कर रहे हैं, उचित प्रक्रिया का उल्लंघन कर रहे हैं और सामूहिक सजा दे रहे हैं.

    'चुनाव प्रचार के दौरान पीएम ने साम्प्रदायिक बायनों ने से तोड़ी मर्यादा'

    कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिय गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी के सम्प्रदायिक बयानों गरिमा और मर्यादा के खिलाफ बताया है.

    उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा सांप्रदायिक अपशब्दों का इस्तेमाल और बोले गए सरासर झूठ को देखते हुए इनमें से कुछ भी आश्चर्यजनक की बात नहीं है. उन्होंने इस डर से भड़काऊ बयानबाजी को बढ़ा दिया कि चुनाव उनके हाथ से निकल रहा है, अपने पद की गरिमा और मर्यादा के प्रति पूरी तरह से उन्होंने नकार दिया. 

    हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर को बनाया मुद्दा

    सोनिया गांधी लेख में मणिपुर हिंसा को भी मुद्दा बनाती हैं. उन्होंने लिखा है कि फरवरी 2022 में मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों को पूर्ण बहुमत मिला. फिर भी, 15 महीने के भीतर मणिपुर जलने लगा या यूं कहें कि जलने दिया गया. सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग बेघर हो गए. इस सबसे संवेदनशील राज्य में सामाजिक सद्भाव बिखर गया है. फिर भी, प्रधानमंत्री को ना तो राज्य का दौरा करने और ना ही इसके राजनीतिक नेताओं से मिलने का समय मिला और ना ही इच्छा की.

    उन्होंने लिखा है कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि उनकी पार्टी ने वहां दोनों लोकसभा सीटें खो दी हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि मणिपुर को घेरने वाले संकट से निपटने के उनके सबसे असंवेदनशील तरीके पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. प्रधानमंत्री द्वारा इसको लेकर 40 दिनों से अधिक समय तक चलाए अभियान से खुद को छोटा कर लिया. उनके शब्दों ने हमारे सामाजिक ताने-बाने और उस पद की गरिमा को अथाह नुकसान पहुंचाया, जिस पर उन्हें गर्व है.

    कहा- 400 सीटों के उनके दावे को जनता ने नकारा, सबके विकास का संदेश दिया

    चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए के 400 पार नारे पर भी सोनिया गांधी टिप्पणी करती हैं और मोदी को आत्मचिंतन करने व सबके विकास की बात करने की सलाह देती हैं. 

    वह लिखती हैं, "उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि 400 से अधिक संसदीय सीटों के लिए उनके आह्वान को नकार कर, हमारे करोड़ों लोगों - जिनसे उन्होंने सबका साथ, सबका विकास का वादा किया - उन्होंने एक सशक्त संदेश दिया है कि अब बहुत हो चुका. विपक्ष भारत की आवाज को प्रतिबिम्बित करेगा इंडिया ब्लॉक के दलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे टकराववादी रवैया नहीं चाहते हैं. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सहयोग की पेशकश की है. गठबंधन के घटक दलों के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे संसद में प्रोडक्टिव होने और इसकी कार्यवाही के संचालन में निष्पक्षता चाहते हैं.

    हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार इस पर सकारात्मक कदम उठाएगी. शुरुआत कदम या सबूत अच्छे नहीं हैं, लेकिन हम विपक्ष के लोग संसद में संतुलन और यह प्रोडक्टिव हो इसे बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन लाखों लोगों की आवाज सुनी जाए, जिन्होंने हमें अपने प्रतिनिधियों के रूप में यहां भेजा है और उनकी चिंताओं को उठाएं और उस पर ध्यान दिया जाए. हम उम्मीद करते हैं कि सत्ता पक्ष आगे आएगा ताकि हम अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों को पूरा कर सकें.

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