Bangladesh Jamaat-E-Islami: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों में डांस और म्यूजिक टीचरों की नियुक्ति की योजना को लेकर देश में नया विवाद खड़ा हो गया है. इस प्रस्ताव के खिलाफ जमात-ए-इस्लामी ने कड़ा रुख अपनाया है और इसे "इस्लामी मूल्यों के खिलाफ" बताया है. 7 सितंबर को जारी एक आधिकारिक बयान में जमात ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि यह योजना रद्द नहीं की गई, तो संगठन कड़ा विरोध दर्ज कराएगा.
बांग्ला संस्कृति सदियों से कला, संगीत, नृत्य और साहित्य के लिए पहचानी जाती रही है. लेकिन वर्तमान विवाद से साफ है कि देश में अब शिक्षा के स्वरूप और सांस्कृतिक मूल्यों को लेकर दो विचारधाराएं टकरा रही हैं, एक ओर आधुनिक और समावेशी शिक्षा प्रणाली की वकालत, और दूसरी ओर पारंपरिक धार्मिक मूल्यों पर आधारित पाठ्यक्रम की मांग.
जमात-ए-इस्लामी की आपत्तियाँ
जमात के महासचिव मिया गुलाम परवार ने बयान जारी कर कहा कि स्कूलों में डांस और म्यूजिक को बढ़ावा देना "अनैतिक" है और यह देश के इस्लामी समाज ढांचे को नुकसान पहुंचा सकता है. उनका कहना है कि यदि किसी परिवार को डांस या संगीत में बच्चों की रुचि विकसित करनी है, तो वे निजी तौर पर शिक्षक रख सकते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में इसकी कोई जरूरत नहीं है. उनके मुताबिक, "इस्लामी शिक्षा अधिक आवश्यक है, जिससे बच्चों में नैतिकता, ईमानदारी और जिम्मेदारी जैसे गुण विकसित हो सकें."
संस्कृति बनाम कट्टरता: एक व्यापक मुद्दा
विश्लेषकों का मानना है कि यह बहस केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश की सांस्कृतिक पहचान, धर्मनिरपेक्षता और आधुनिकता के बीच संतुलन की चुनौती को दर्शाती है. बंगाली समाज, जिसने कभी भाषा आंदोलन से लेकर सांस्कृतिक स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी है, आज फिर एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ उसे यह तय करना है कि आने वाली पीढ़ियों को किस दिशा में ले जाना है.
यूनुस सरकार पर बढ़ता दबाव
मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार के कार्यभार संभालने के बाद, जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों की सक्रियता और दबाव की राजनीति में इजाफा हुआ है. नैतिक संकट और सांस्कृतिक असहिष्णुता के हवाले से जमात अब सरकार पर मजहबी शिक्षा को अनिवार्य करने की पुरज़ोर मांग कर रहा है.
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