वाशिंगटनः अब तक दुनिया की सबसे ताकतवर वायुसेना माने जाने वाली अमेरिकी एयरफोर्स के लिए एक नया सिरदर्द खड़ा हो गया है—और वो है यमन के हूती विद्रोही. तकनीकी रूप से कमज़ोर और संसाधनों में सीमित होने के बावजूद हूतियों ने हाल ही में अमेरिकी वायुसेना के अत्याधुनिक फाइटर जेट्स F-35 जॉइंट स्ट्राइक फाइटर और F-16 वाइपर को मार गिराने की सीधी कोशिशें कीं. ये घटनाएं उस समय सामने आईं जब अमेरिका ने यमन में हवाई हमले तेज़ किए थे.
दिलचस्प बात यह है कि जिन हूतियों के पास किसी राष्ट्र के बराबर संसाधन नहीं हैं, उन्होंने अपने पारंपरिक हथियारों को एडवांस तकनीकों में तब्दील कर दिया है. अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या हथियार है जो अमेरिका जैसे सुपरपावर की नींदें उड़ाने में कामयाब हो गया?
क्या है हूतियों का "ब्रह्मास्त्र"?
The War Zone की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हूती विद्रोहियों ने सोवियत युग की R-73 और R-27 हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को सतह से हवा में मार करने वाले हथियारों में बदल दिया है. इन हथियारों को हूतियों ने अपने हिसाब से मॉडिफाई करके "थकीब-1" और "थकीब-2" नाम दिया है.
यही नहीं, हूतियों के पास Saqr-सीरीज की इन्फ्रारेड-होमिंग मिसाइलें भी हैं. हालांकि इन मिसाइलों की ऊंची उड़ान और तेज़ रफ्तार वाले विमानों को टारगेट करने की क्षमता सीमित है, लेकिन थकीब-1 और 2 ने कई बार यह दिखाया है कि ये आधुनिक फाइटर जेट्स के लिए खतरा बन सकते हैं.
फुटेज और मिसाइल ट्रैकिंग का खुलासा
हूतियों द्वारा अमेरिकी और अन्य देशों के ड्रोन को निशाना बनाने के वीडियो भी जारी किए गए हैं, जिसमें साफ देखा गया कि उन्होंने इन्फ्रारेड सेंसर और गाइडेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया. इसका मतलब यह है कि अब हूती सिर्फ रॉकेट या पारंपरिक हथियारों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मॉडर्न वॉरफेयर टूल्स को भी अच्छी तरह समझ और इस्तेमाल कर रहे हैं.
क्यों खतरनाक हैं हूतियों के इन्फ्रारेड सेंसर?
यह समझना ज़रूरी है कि हूतियों की सबसे बड़ी ताकत तकनीकी शक्ति नहीं, बल्कि "टैक्टिकल स्मार्टनेस" है. उनके पास जो इन्फ्रारेड सेंसर हैं, वो निष्क्रिय (passive) होते हैं, यानी ये खुद कोई रेडिएशन या सिग्नल नहीं छोड़ते. इससे ये सेंसर दुश्मन के रडार में नहीं आते.
इसके उलट, जब किसी एयरक्राफ्ट के खिलाफ रेडार-गाइडेड मिसाइल इस्तेमाल की जाती है, तो पायलट को संकेत मिल जाता है कि खतरा मंडरा रहा है. लेकिन इन्फ्रारेड सेंसर वाले सिस्टम को ट्रैक करना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि वे बिना किसी चेतावनी के हमला कर सकते हैं. नतीजा यह होता है कि फाइटर जेट्स के पास प्रतिक्रिया देने का समय ही नहीं बचता.
रणनीति में माहिर ईरान और हूती
CBS News की एक रिपोर्ट में वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी के वरिष्ठ विश्लेषक माइकल नाइट्स ने बताया कि हूती विद्रोही और उनके समर्थक ईरानी सेना अब इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह प्रणाली पूरी तरह से निष्क्रिय रहती है, यानी जब तक मिसाइल लॉन्च नहीं होती, तब तक किसी को इसका पता नहीं चलता. यह तकनीक युद्धक्षेत्र में बेहद खतरनाक साबित होती है, खासकर उन सेनाओं के लिए जो दुश्मन की किसी भी गतिविधि को पहले ही पकड़ लेने की रणनीति पर काम करती हैं.
अमेरिकी एयरफोर्स की चुनौती
F-35 और F-16 जैसे फाइटर जेट्स आधुनिकतम तकनीक से लैस हैं. फिर भी, जब ये ऐसे दुश्मन से दो-चार होते हैं जो छुपकर वार करता है और पारंपरिक हथियारों को इनोवेटिव तरीके से इस्तेमाल करता है, तो मुश्किलें बढ़ जाती हैं. यह स्थिति दर्शाती है कि युद्ध केवल अत्याधुनिक हथियारों से नहीं जीता जा सकता, बल्कि रणनीति, चतुराई और अनपेक्षित तकनीकी उपयोग भी उतने ही अहम हैं.
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