चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन ने न केवल क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में एक मजबूत संदेश दिया, बल्कि वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों में भी हलचल मचा दी. इस बार का सम्मेलन कई वजहों से चर्चा में रहा, लेकिन सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया ईरान और अफगानिस्तान का लगातार ज़िक्र और उनसे जुड़ी रणनीतिक भाषा.
40 पन्नों वाले तियानजिन डिक्लरेशन में ईरान और अफगानिस्तान का जिस आवृत्ति और स्पष्टता के साथ उल्लेख हुआ, उसने एक बात तो साफ कर दी- अब एशिया की रणनीतिक दिशा अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबदबे से नहीं, बल्कि रूस-चीन-भारत-ईरान जैसे देशों के साझा हितों से तय होगी.
ईरान पर विशेष ध्यान: क्यों बार-बार हुआ उल्लेख?
1. ऊर्जा सुरक्षा का भरोसेमंद स्रोत
ईरान दुनिया के सबसे बड़े तेल और प्राकृतिक गैस भंडारों में से एक है. जहां पश्चिमी देश प्रतिबंध लगाकर ईरान की आर्थिक गतिविधियों को सीमित करना चाहते हैं, वहीं SCO के सदस्य देश ईरान को एक भरोसेमंद ऊर्जा भागीदार के रूप में देख रहे हैं. रूस और मध्य एशियाई देशों की तरह, ईरान भी क्षेत्रीय ऊर्जा संतुलन का अहम स्तंभ बन सकता है.
2. रणनीतिक गलियारा: चाबहार पोर्ट की भूमिका
भारत और ईरान के बीच विकसित हुआ चाबहार पोर्ट इस क्षेत्रीय रणनीति का केंद्रबिंदु बन चुका है. भारत ने हाल ही में ईरान के साथ 10 साल का दीर्घकालिक समझौता किया है, जिससे उसे अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक सीधी पहुंच मिलती है वह भी पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए.
यह पोर्ट INSTC (इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर) का एक अहम हिस्सा है, जो भारत को यूरोप तक व्यापारिक मार्ग प्रदान करता है.
3. पश्चिमी दबाव को चुनौती
तियानजिन डिक्लरेशन में जिस भाषा का प्रयोग किया गया, वह केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं थी. इसमें साफ कहा गया कि ईरान पर अमेरिका और इजरायल की सैन्य कार्रवाइयां अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन हैं. यह एक सीधा संकेत था कि SCO अब पश्चिमी दादागिरी को खुली चुनौती देने को तैयार है.
अफगानिस्तान का ज़िक्र क्यों अहम है?
1. सुरक्षा के लिहाज़ से संवेदनशील
SCO के अधिकांश सदस्य देश इस बात पर सहमत हैं कि आतंकवाद और नशीले पदार्थों की तस्करी का सबसे बड़ा खतरा अफगानिस्तान से आता है. तियानजिन डिक्लरेशन में दो टूक कहा गया कि आतंक को किसी भी प्रकार से भौगोलिक या राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. जब तक अफगानिस्तान में एक स्थिर और सर्वमान्य सरकार नहीं बनती, तब तक मध्य एशिया और दक्षिण एशिया की स्थिरता अधूरी रहेगी.
2. भविष्य के भागीदार के रूप में अफगानिस्तान
भले ही अफगानिस्तान SCO का पूर्ण सदस्य नहीं है, लेकिन डिक्लरेशन में बार-बार उसका उल्लेख यह संकेत देता है कि SCO उसे दीर्घकालिक रणनीति में एक अहम कड़ी मानता है. भारत, रूस, चीन और ईरान सभी देश अफगानिस्तान की स्थिरता को अपने राष्ट्रीय हितों से जोड़कर देख रहे हैं.
3. भारत की भूमिका और दृष्टिकोण
भारत ने हमेशा अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई है- सड़कें, बांध, अस्पताल और संसद भवन जैसे कई बड़े प्रोजेक्ट भारत द्वारा पूरे किए गए हैं. हालांकि तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह संपर्क कुछ समय के लिए कमज़ोर हुआ, अब भारत तालिबान प्रशासन से वास्तविक राजनीतिक संवाद की ओर बढ़ रहा है.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान अफगान सरकार ने भारत को महत्वपूर्ण सहयोग दिया था, जिससे दोनों देशों के बीच एक नए भरोसे की शुरुआत मानी जा रही है.
भारत की स्थिति: चुपचाप लेकिन निर्णायक बढ़त
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तियानजिन समिट में अपने संबोधन में यह स्पष्ट किया कि भारत की रणनीति अब केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि बहुपक्षीय और क्षेत्रीय स्तर पर विकसित हो रही है. उन्होंने चाबहार पोर्ट, INSTC, और SCO जैसे मंचों को एशिया के भविष्य का इंजन करार दिया.
भारत की यह नीति तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित है:
तियानजिन डिक्लरेशन: नया एशियाई मॉडल
इस बार का डिक्लरेशन सिर्फ एक औपचारिक दस्तावेज नहीं था, बल्कि यह था एशियाई देशों की एकजुटता का ऐलान. इसमें निम्नलिखित प्रमुख संकेत दिए गए:
इस डिक्लरेशन को एक प्रकार से "एशियाई रणनीतिक आत्मनिर्भरता का घोषणापत्र" भी कहा जा सकता है.
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