इस्लामाबाद/वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल के महीनों में पाकिस्तान के साथ अपने रुख में स्पष्ट बदलाव दिखाया है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह परिवर्तन केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. जहां भारत और अमेरिका के संबंधों में हालिया वर्षों में प्रगाढ़ता आई थी, वहीं ट्रंप की नीतियां कुछ नए समीकरण गढ़ सकती हैं. आइए समझते हैं तीन प्रमुख कारण, जिनके चलते पाकिस्तान अमेरिका की नीतियों में फिर से अहम भूमिका निभा रहा है.
1. क्रिप्टोकरेंसी और आर्थिक सहयोग का नया अध्याय
पाकिस्तान लंबे समय से आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, और पारंपरिक वैश्विक निवेश स्रोतों तक उसकी पहुंच सीमित रही है. हाल ही में पाकिस्तान ने डिजिटल एसेट्स और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं. "पाकिस्तान डिजिटल एसेट अथॉरिटी" की स्थापना इसी रणनीति का हिस्सा है.
इस क्षेत्र में अमेरिका की एक निजी संस्था World Liberty Financial (WLF), जो ट्रंप परिवार से जुड़ी बताई जाती है, पाकिस्तान के साथ साझेदारी कर रही है. रिपोर्ट्स के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य क्रिप्टोकरेंसी को नियमित करना और पाकिस्तान में ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट्स को लागू करना है. यह सहयोग ट्रंप परिवार के व्यावसायिक हितों से जुड़ा माना जा रहा है, खासकर जब यह प्लेटफॉर्म ट्रंप-ब्रांडेड टोकन लॉन्च करने की योजना पर काम कर रहा है.
2. खनिज संसाधनों में रणनीतिक निवेश
ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान में मौजूद खनिज संसाधनों को लेकर भी गहरी रुचि दिखा रहा है. पाकिस्तान के पास तांबा, सोना, लिथियम और दुर्लभ खनिज तत्वों का बड़ा भंडार है, जिनकी वैश्विक तकनीकी और स्वच्छ ऊर्जा उद्योगों में भारी मांग है. अनुमान है कि पाकिस्तान की खनिज संपदा का मूल्य ट्रिलियनों डॉलर में हो सकता है.
ट्रंप की इस रुचि के पीछे एक प्रमुख कारण चीन पर खनिज आपूर्ति के क्षेत्र में अमेरिकी निर्भरता को कम करना हो सकता है. विशेष रूप से बलूचिस्तान में स्थित रेको दिक खदान अमेरिका की नजरों में है. अमेरिका चाहता है कि वह इन संसाधनों तक पहुंच बनाए ताकि वह रणनीतिक रूप से चीन से प्रतिस्पर्धा कर सके. इस दिशा में अप्रैल 2025 में वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी एरिक मेयर की पाकिस्तान यात्रा उल्लेखनीय रही.
3. मध्य-पूर्व में भूमिका निभाने की रणनीति
ट्रंप की पाकिस्तान नीति में तीसरा पहलू पश्चिम एशिया से जुड़ा है. अमेरिका और ईरान के बीच वर्षों से राजनयिक संबंध सीमित हैं, जबकि पाकिस्तान दोनों देशों से संवाद बनाए रखने की स्थिति में है. ऐसे में पाकिस्तान एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने, तो वे पाकिस्तान के जरिए ईरान के साथ संभावित बैकचैनल बातचीत शुरू कर सकते हैं. साथ ही, पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति अमेरिका को अफगानिस्तान की परिस्थितियों पर भी नजर बनाए रखने में मदद कर सकती है.
भारत-अमेरिका संबंधों पर संभावित प्रभाव
ट्रंप की यह नीतियां भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव का कारण बन सकती हैं, विशेषकर तब जब ट्रंप ने हाल ही में भारत पर टैरिफ को लेकर नाराज़गी जाहिर की है. हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी नीति बहुस्तरीय होती है और एक पक्षीय निर्णयों की बजाय दीर्घकालिक रणनीति पर आधारित होती है.
भारत और अमेरिका के संबंध वर्षों से केवल सरकारों के बीच नहीं, बल्कि व्यापार, रक्षा, तकनीक और सामरिक साझेदारी के स्तर पर भी विकसित हुए हैं. ऐसे में ट्रंप की पाकिस्तान नीति को भारत के परिप्रेक्ष्य में देखना ज़रूरी तो है, लेकिन इससे भारत-अमेरिका रिश्ते पूरी तरह दांव पर हैं, ऐसा निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी होगी.
ये भी पढ़ें- तीनों सेनाओं के बीच तालमेल, कोई पाबंदी नहीं... एयर चीफ मार्शल ने बताया क्यों सफल हुआ ऑपरेशन सिंदूर?