आखिर 10 दिनों तक ही क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी? जानिए इसके पीछे के ऐतिहासिक तथ्य

    Ganesh Chaturthi: हर साल जब भाद्रपद मास की चतुर्थी आती है, तो ऐसा लगता है जैसे पूरे भारत का माहौल बदल जाता है. हर गली, हर मोहल्ले, हर घर में एक ही स्वर गूंजता है, “गणपति बप्पा मोरया!”

    Why is Ganesh Chaturthi celebrated for only 10 days Know the historical facts behind it
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    Ganesh Chaturthi: हर साल जब भाद्रपद मास की चतुर्थी आती है, तो ऐसा लगता है जैसे पूरे भारत का माहौल बदल जाता है. हर गली, हर मोहल्ले, हर घर में एक ही स्वर गूंजता है, “गणपति बप्पा मोरया!”

    बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इस उत्सव में डूब जाते हैं. कहीं ढोल बज रहे होते हैं, कहीं भक्ति गीत, कहीं आरती, तो कहीं प्रसाद की खुशबू. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गणेश चतुर्थी का यह उत्सव ठीक 10 दिन क्यों चलता है? न इससे कम, न ज्यादा? आइए जानें इस अद्भुत परंपरा की पृष्ठभूमि, जिसकी जड़ें धर्म, इतिहास और सामाजिक एकता में गहराई से जुड़ी हैं.

    10 दिन क्यों रहते हैं गणपति बप्पा?

    धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति कहा गया है. यह माना जाता है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन उनका जन्म हुआ था. जब उनकी स्थापना की जाती है, तो वे भक्तों के घर 10 दिनों तक अतिथि बनकर रहते हैं और अपने साथ सुख, समृद्धि और सौभाग्य लेकर आते हैं.

    अनंत चतुर्दशी के दिन उन्हें भावभीनी विदाई दी जाती है, यह केवल विसर्जन नहीं, एक सांस्कृतिक भाव है, जो हमें सिखाता है कि हर आगमन का एक प्रस्थान भी होता है.

    इतिहास की परतों में छिपा उत्सव का रहस्य

    अगर आप सोचते हैं कि यह परंपरा सदियों से वैसी ही चली आ रही है, तो थोड़ा रुकिए. पेशवा काल में गणेश चतुर्थी घरों में ही मनाई जाती थी. लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे एक सामाजिक आंदोलन का रूप दिया.

    उन्होंने इस उत्सव को सार्वजनिक पंडालों और सामूहिक आरतियों का माध्यम बनाया ताकि अंग्रेज़ी हुकूमत के दौर में भी भारतीय एकजुट हो सकें. तभी से गणपति उत्सव एक 10-दिवसीय सामाजिक त्योहार के रूप में स्थापित हुआ.

    विसर्जन: विदाई में छिपा जीवन का दर्शन

    गणपति बप्पा को अतिथि रूप में माना जाता है, और जैसा कि हमारी संस्कृति सिखाती है, "अतिथि देवो भव", अतिथि का सत्कार जितना ज़रूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण है सम्मानजनक विदाई. मिट्टी की मूर्ति का जल में विसर्जन यह भी दर्शाता है कि जीवन और मृत्यु, निर्माण और विघटन, सब प्रकृति के चक्र का हिस्सा हैं. यह प्रक्रिया हमें आध्यात्मिक संतुलन और विनम्रता सिखाती है.

    हर परिवार की अपनी परंपरा

    हालांकि पूरे 10 दिन बप्पा को घर में विराजमान करना आदर्श माना गया है, लेकिन कुछ परिवार 1, 3, 5 या 7 दिन में भी विसर्जन करते हैं. यह निर्णय अक्सर पारिवारिक परंपरा, समय, संसाधन और सुविधा पर निर्भर करता है. इसका मुख्य उद्देश्य श्रद्धा है. समय की लंबाई नहीं, भावना की गहराई मायने रखती है.

    सिर्फ पूजा नहीं, समाज को जोड़ने वाला पर्व

    गणेश चतुर्थी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह समाज में एकता, भाईचारे और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बन चुका है. इन 10 दिनों में देश भर में पंडाल सजते हैं, भजन, नृत्य, नाटक और लोक कला का प्रदर्शन होता है. लोग अपने मतभेद भुलाकर एक साथ आते हैं, यही बप्पा की सबसे बड़ी कृपा है.

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