कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष क्यों लेता है तुर्किए? जानिए खलीफा एर्दोगन की मंशा क्या है

    जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यही स्थिति देखने को मिली, जहां एक बार फिर तुर्किए का झुकाव पाकिस्तान की ओर साफ दिखाई दिया.

    Why does Turkey take Pakistan side on Kashmir issue Khalifa Erdogan
    एर्दोगन | Photo: ANI

    कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कोई नया नहीं है, लेकिन हर बार जब घाटी में कोई बड़ा आतंकी हमला होता है, तो यह विवाद फिर से वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बन जाता है. हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यही स्थिति देखने को मिली, जहां एक बार फिर तुर्किए का झुकाव पाकिस्तान की ओर साफ दिखाई दिया.

    22 अप्रैल को जब पहलगाम में आतंकियों ने निर्दोष लोगों की जान ली, उस वक्त तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन ने एक सप्ताह बाद बयान दिया. लेकिन, इस बयान में न तो पीड़ितों के प्रति संवेदना दिखी, न ही आतंकवाद की खुलकर निंदा की गई. इसके बजाय एर्दोआन ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने की अपील की और पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़े रहने की बात कही.

    इस बीच यह भी सामने आया कि तुर्किए के इंटेलिजेंस प्रमुख पाकिस्तान में मौजूद हैं और उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना के मुख्यालय का दौरा भी किया, जिसका वीडियो खुद पाकिस्तान ने जारी किया. ऐसे में तुर्किए के इरादों पर सवाल उठना स्वाभाविक है.

    कश्मीर पर तुर्किए का दोहराया गया पक्षपातपूर्ण रवैया

    यह पहला मौका नहीं है जब तुर्किए ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है. चाहे संयुक्त राष्ट्र हो या कोई अन्य अंतरराष्ट्रीय मंच, एर्दोआन ने हमेशा भारत के खिलाफ बयान देने से परहेज नहीं किया. जब 2019 में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया, तब भी तुर्किए ने इस कदम की आलोचना की और कश्मीर के हालात को चुनौतीपूर्ण बताया.

    फरवरी 2025 में एर्दोआन जब पाकिस्तान दौरे पर थे, तब भी उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन दोहराया और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत समाधान की बात कही. भारत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और तुर्किए के राजदूत को तलब कर अपना विरोध दर्ज कराया.

    भारत-तुर्किए संबंधों का इतिहास और वर्तमान स्थिति

    भारत और तुर्किए के बीच 1948 से राजनयिक संबंध स्थापित हैं. हालांकि, समय-समय पर तुर्किए के बयानों से इन रिश्तों में तनाव आता रहा है. 2015 में दोनों देशों के नेताओं के बीच उच्चस्तरीय मुलाकातें हुईं, लेकिन इसके बाद से द्विपक्षीय वार्ता के मौके सीमित रहे हैं.

    2023 के G20 शिखर सम्मेलन में एर्दोआन की भारत यात्रा जरूर हुई, लेकिन वह भी सिर्फ सम्मेलन की साइडलाइन्स तक सीमित रही. दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग की बात करें तो 1973 में एक आर्थिक समझौता हुआ था और 1983 में द्विपक्षीय जॉइंट कमिशन की स्थापना हुई. हालांकि 2014 के बाद इस फोरम की कोई बैठक नहीं हुई. इसके बावजूद भारत और तुर्किए के बीच व्यापारिक गतिविधियां चलती रहीं. 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार में लगभग 29% की वृद्धि दर्ज की गई. भारत ने तुर्किए में 2023 के भूकंप के दौरान भी मानवीय सहायता भेजी थी.

    तुर्किए का इस्लामी दुनिया में रोल और OIC का प्रभाव

    विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्किए का भारत-विरोधी रुख खासकर कश्मीर मामले में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के प्रभाव से जुड़ा है. यह संगठन अक्सर भारत के खिलाफ बयान देता है, और तुर्किए इसमें सक्रिय भूमिका निभाता है. वहीं, सऊदी अरब, UAE जैसे अन्य मुस्लिम देशों के साथ भारत के बेहतर रिश्तों के चलते ये देश तुर्किए की लाइन नहीं पकड़ते. पाकिस्तान हालांकि तुर्किए के साथ पूरी तरह कदम मिलाकर चलता है.

    ये भी पढ़ेंः 1 मई से बदल गए ये नियम, जानें LPG से लेकर बैंकिंग के बड़े बदलाव