नई दिल्ली: अमेरिका का एक ऐसा राज्य, जो न सिर्फ अपने विशाल भूभाग और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण मोर्चे की तरह काम करता है- यही है अलास्का. लेकिन शायद कम ही लोग जानते हैं कि यह इलाका कभी रूस की सल्तनत का हिस्सा था और 19वीं सदी के अंत में उसे महज 7.2 मिलियन डॉलर (आज के लगभग 45 करोड़ रुपये) में अमेरिका को बेच दिया गया था.
आज, जब अमेरिका और रूस के संबंधों में एक बार फिर ऐतिहासिक मोड़ आ रहा है और दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष एक महत्वपूर्ण बैठक के लिए अलास्का की ज़मीन पर मिलने जा रहे हैं, तब एक बार फिर दुनिया की नजर इस बर्फीले लेकिन बेहद अहम भूभाग पर टिक गई है.
रूस और अमेरिका: ऐतिहासिक मुलाकात की तैयारी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 15 अगस्त को प्रस्तावित बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक मानी जा रही है. माना जा रहा है कि अगर यह बैठक सफल होती है, तो इससे यूक्रेन में तीन वर्षों से जारी युद्ध को समाप्त करने की संभावनाएं भी प्रबल हो सकती हैं. इस मुलाकात के लिए अलास्का को चुना जाना कोई सामान्य निर्णय नहीं है यह क्षेत्र रूस के बेहद करीब है और दोनों देशों के बीच एक भू-राजनीतिक सेतु की तरह कार्य करता है.
अलास्का और रूस के बीच की दूरी केवल 88 किलोमीटर है, जिसे बेरिंग स्ट्रेट अलग करती है. इस पार अमेरिका का अलास्का और उस पार रूस का चुक्चा क्षेत्र स्थित है, जहां रूस के रणनीतिक सैन्य ठिकाने और संभावित परमाणु हथियार मौजूद हैं. ऐसे में यह जगह सिर्फ भौगोलिक नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील है.
अलास्का: रूस से अमेरिका तक का सफर
17 लाख वर्ग किलोमीटर से भी बड़ा भूभाग, यानी भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान से लगभग पाँच गुना बड़ा, अलास्का 18वीं शताब्दी में रूस की साम्राज्यवादी नीतियों का हिस्सा बना. रूस ने यहां फर व्यापार के लिए अपनी बस्तियां बसाईं और इसे अपनी कॉलोनी का रूप दिया.
लेकिन समय के साथ, रूस को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. ब्रिटेन के साथ युद्ध की आशंका, आर्थिक संकट और इतने बड़े तथा दूरस्थ क्षेत्र पर सैन्य नियंत्रण बनाए रखने की जटिलता ने उसे विचार करने पर मजबूर किया.
1867 में, रूस के तत्कालीन विदेश मंत्री अलेक्जेंडर गोर्काकोव ने अमेरिका के राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन से बातचीत की. अमेरिका भी पश्चिम की ओर अपने विस्तार को लेकर उत्सुक था. दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, और 30 मार्च 1867 को रूस ने अलास्का को अमेरिका को बेच दिया.
बर्फीला जंगल या अनजाने खजाने का द्वार?
जब अमेरिकी विदेश मंत्री विलियम सिवार्ड ने इस सौदे की घोषणा की, तो अमेरिका के भीतर खूब मजाक उड़ाया गया. लोग इसे "Seward's Folly" यानी "सिवार्ड की मूर्खता" और "Johnson’s Polar Bear Garden" जैसी उपाधियों से नवाज़ने लगे. जनता को लग रहा था कि यह सौदा व्यर्थ है एक ऐसा इलाका जो केवल बर्फ, बर्फ और बर्फ से ढका है.
लेकिन इतिहास ने कुछ और ही साबित किया. कई दशकों के भीतर ही अलास्का की धरती ने सोना, तेल, हीरे और गैस जैसे खजाने उगलना शुरू कर दिए. 1896 में क्लोंडाइक गोल्ड रश ने अमेरिका को चौंका दिया. 20वीं शताब्दी में यहां तेल की खोज ने अमेरिका की ऊर्जा राजनीति में क्रांति ला दी.
अमेरिका की ऊर्जा और सैन्य नीति का स्तंभ
आज के समय में, अलास्का अमेरिका के लिए केवल प्राकृतिक संसाधनों का स्रोत नहीं है. यह क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी अनमोल है. शीत युद्ध के दौरान, सोवियत संघ और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव ने अलास्का को एक मिलिट्री बफर ज़ोन में बदल दिया.
यहां मौजूद एयरबेस, रडार स्टेशन और अन्य निगरानी तंत्र अमेरिका को रूस और आर्कटिक क्षेत्र में हो रही गतिविधियों पर नजर रखने में मदद करते हैं. भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से, अलास्का आज भी एक रणनीतिक मोर्चा बना हुआ है.
रूस को अब भी है अफसोस?
2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया, तो देश के भीतर एक भावनात्मक लहर देखने को मिली. कुछ गीतों और भाषणों में यहां तक कहा गया कि रूस को अलास्का को वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए. हालांकि ये बातें भावनाओं में कही गई थीं, लेकिन यह जरूर दिखाता है कि अलास्का की बिक्री रूस के लिए एक "ऐतिहासिक गलती" मानी जाती है.
आज जब यह इलाका अमेरिका के सबसे समृद्ध और रणनीतिक राज्यों में शामिल है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है क्या रूस ने इसे बहुत जल्द और बहुत सस्ते में बेच दिया?
प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्धि का संगम
आज का अलास्का न केवल अमेरिका की ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 20% पूरा करता है, बल्कि यह पर्यटन, मछली उद्योग और खनन जैसे क्षेत्रों में भी अरबों डॉलर की कमाई करता है. यहां की बर्फीली चोटियां, ग्लेशियर, अरोरा बोरेलिस (Northern Lights) और दुर्लभ वन्यजीव हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.
यह राज्य अब अमेरिका के लिए एक जियो-इकोनॉमिक और जियो-स्ट्रैटेजिक केंद्र बन चुका है एक ऐसी स्थिति जिसकी रूस ने शायद कभी कल्पना नहीं की थी.
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