नेपाल में युवा वर्ग द्वारा शुरू किया गया जन आन्दोलन अब धीरे-धीरे थम रहा है. पिछले दिनों देश के विभिन्न इलाकों से उपद्रव की कुछ घटनाएं सामने आईं, लेकिन अब पूरा ध्यान सरकार गठन और राजनीतिक व्यवस्था सुधार की दिशा में केन्द्रित हो गया है. आंदोलन के प्रमुख प्रतिनिधि और Gen-Z समूह ने हाल ही में देश में आम चुनाव कराए जाने से जुड़ी अपनी मांगों का एक विस्तृत मसौदा सार्वजनिक किया है, जिसमें संसद भंग करने, एक नागरिक-सैन्य समन्वित सरकार बनाने और सेना की भूमिका को सीमित करने की प्रमुख बात कही गई है. साथ ही, अगले एक वर्ष के भीतर चुनाव कराने तथा भ्रष्ट नेताओं की संपत्ति की जांच के लिए स्वतंत्र न्यायिक आयोग के गठन की भी मांग उठाई गई है.
युवा आंदोलनकारियों ने अपने जारी किए गए प्रस्ताव में स्पष्ट किया है कि उनका आंदोलन किसी विनाश या अराजकता फैलाने के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ जवाबदेही की स्थापना के लिए है. उनका कहना है कि भ्रष्ट शासन के खिलाफ यह लड़ाई देश के भविष्य और न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जरूरी है. साथ ही उन्होंने आंदोलन के दौरान हुई हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ की कड़े शब्दों में निंदा की है और कहा है कि इस तरह की घटनाओं में शामिल लोग उनके आंदोलन का हिस्सा नहीं हैं. उन्होंने इन दोषियों की पहचान कर उन्हें कड़ी सजा देने की भी मांग की है ताकि आंदोलन की गरिमा कायम रह सके.
अंतरिम सरकार में सुशीला कार्की के नेतृत्व की मांग
आंदोलनकारियों ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि देश की वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता को संभालने के लिए एक अंतरिम सरकार बनाई जाए, जिसका नेतृत्व पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की करें. इस सरकार को ‘संयुक्त नागरिक-सैन्य संकट प्रबंधन परिषद’ के नाम से जाना जाएगा, जिसमें न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई जैसे अनुभवी व्यक्तियों को भी शामिल किया जाएगा. इस व्यवस्था में नेपाली सेना का दायरा सुरक्षा और निगरानी तक सीमित होगा, ताकि लोकतांत्रिक शासन पुनः स्थापित किया जा सके. अंतरिम सरकार का उद्देश्य केवल नए चुनाव कराना होगा, न कि सत्ता में लंबे समय तक बने रहना.
लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वापसी और सेना की भूमिका सीमित
युवा प्रतिनिधियों का मानना है कि 6 से 12 महीने के भीतर देश में लोकतांत्रिक चुनाव आयोजित किए जाने चाहिए, जिसमें नागरिक शासन की पूर्ण बहाली हो. वे सेना के स्थायी नियंत्रण के खिलाफ हैं और चाहते हैं कि नीति निर्धारण और प्रशासन में सेना की भूमिका सीमित हो. इसके साथ ही, उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि संक्रमण काल में सत्ता संघर्ष से बचने के लिए एक संयुक्त परिषद बनाई जाए, जो नागरिक सरकार और सेना दोनों के वरिष्ठ अधिकारियों को मिलाकर चले, ताकि निर्णय संतुलित और पारदर्शी हों.
हिंसा के लिए जिम्मेदारों की जांच और दमन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई
युवा नेताओं ने भ्रष्टाचार, सत्ता दुरुपयोग, हिंसा और प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आदेश देने वाले पुलिस अधिकारियों सहित सभी दोषियों के खिलाफ स्वतंत्र जांच की मांग की है. साथ ही प्रदर्शन के दौरान हुई तोड़फोड़, लूटपाट, और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली घटनाओं की भी जांच आवश्यक बताई गई है. उन्होंने ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें न्याय के समक्ष लाने पर जोर दिया है, जिनमें भड़काऊ तत्व या संभवतः घुसपैठिए भी शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा, अस्पतालों, स्कूलों और अन्य बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को तत्काल प्रभाव से सुनिश्चित करने की भी बात कही गई है.
पीड़ितों को राहत और भ्रष्ट नेताओं को जवाबदेही से बचने न दें
आंदोलनकारियों ने सरकार से आग्रह किया है कि हिंसा और दमन के दौरान प्रभावित हुए परिवारों को मुआवजा दिया जाए और मदद के लिए चलाए जा रहे राहत अभियान में सहयोग दिया जाए. यदि नागरिक समाज मदद के लिए फंड जुटाए, तो उसका वितरण सेना के सहयोग से सुरक्षित तरीके से किया जाना चाहिए. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि वर्तमान में जो राजनेता सुरक्षा के कारण देश में रह रहे हैं, उन्हें बिना जांच और मुकदमे के देश छोड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच कर, गठित ट्रिब्यूनल के माध्यम से उनका मुकदमा चलाना आवश्यक है.
फरार दोषियों को कानूनी कार्रवाई के दायरे में लाएं
युवा नेताओं ने यह भी कहा है कि जेल, पुलिस या न्यायिक हिरासत से भागे हुए व्यक्तियों को कानूनी प्रक्रियाओं द्वारा वापस बुलाया जाए. जो स्वेच्छा से वापस नहीं आते, उन्हें गिरफ्तार कर क़ानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए. उन्होंने चेतावनी दी है कि ऐसे लोग नागरिक समाज में घुलने-मिलने से रोके जाएं ताकि वे समाज में अपराध फैलाने का माध्यम न बनें.
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