आधुनिक युद्धों में अब ताकत का मतलब केवल टैंक और तोप नहीं, बल्कि तकनीक भी है. भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ज़रिए यह दुनिया को दिखा दिया है. पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में की गई इस सटीक और समन्वित कार्रवाई में भारतीय सेनाओं ने पहली बार बड़े पैमाने पर लोइटरिंग म्यूनिशन (Loitering Munition) यानी ‘मंडराते हथियारों’ का इस्तेमाल किया. यह एक ऐसी तकनीक जिसने युद्ध की पारंपरिक परिभाषा ही बदल दी.
क्या है Loitering Munition?
लोइटरिंग म्यूनिशन एक तरह का आत्मघाती ड्रोन होता है, जो किसी चील या बाज की तरह आसमान में मंडराता रहता है. यह दुश्मन की गतिविधियों की पहचान करता है और जब निशाना तय हो जाता है, तो उसी पर सीधा हमला करता है. यह ड्रोन जैसे दिखने वाले हथियार पारंपरिक मिसाइलों से कई मामलों में बेहतर माने जाते हैं. कम लागत, अधिक लचीलापन, सटीकता और कम collateral damage इनमें प्रमुख हैं.
ऑपरेशन सिंदूर में कैसे हुआ उपयोग?
भारतीय खुफिया एजेंसियों ने आतंकी ठिकानों की सटीक जानकारी मुहैया कराई, जिसके बाद सेना ने ‘मेसोर सेफेलोट्स’ प्रजाति की तरह घात लगाकर हमला किया. इस ऑपरेशन में जैश-ए-मोहम्मद के 4, लश्कर-ए-तैयबा के 3 और हिज्बुल मुजाहिद्दीन के 2 बड़े अड्डे नष्ट किए गए.
Loitering Munition की प्रमुख खूबियां
सटीकता: टारगेट के बिल्कुल ऊपर जाकर हमला करता है.
कम collateral damage: नागरिक क्षेत्रों को नुकसान नहीं.
रियल-टाइम कंट्रोल: ऑपरेटर द्वारा लाइव कंट्रोल.
कोई सैनिक खतरे में नहीं: बिना मानव जोखिम के ऑपरेशन.
कम लागत में असरदार हथियार: पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में ज्यादा कुशल.
कहां-कहां हुआ है पहले उपयोग?
लोइटरिंग म्यूनिशन का पहला इस्तेमाल 1980 के दशक में हुआ था, लेकिन इराक, सीरिया, यमन और यूक्रेन जैसे युद्धक्षेत्रों में इनकी अहम भूमिका अब स्थापित हो चुकी है. भारत ने इस तकनीक को अब आत्मरक्षा और प्रतिकार की रणनीति में प्रमुख स्थान दे दिया है.
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