What Is Helicopter Parenting: माता-पिता और बच्चों का रिश्ता बहुत ही नाजुक और प्यार भरा होता है. हर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे खुश रहें, सुरक्षित रहें और हर मुश्किल से दूर रहें. लेकिन कभी-कभी यही चिंता और प्यार जरूरत से ज्यादा हो जाती है और माता-पिता बच्चों की हर छोटी-बड़ी चीज में दखल देने लगते हैं. इसी व्यवहार को ‘हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग’ कहा जाता है.
आजकल यह शब्द काफी सुना जाने लगा है, लेकिन बहुत से लोग अब भी इस शब्द का मतलब सही तरीके से नहीं समझते. आइए जानते हैं क्या होती है हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग और क्यों इससे बचना चाहिए.
हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग क्या होती है?
जब माता-पिता अपने बच्चों की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा घुल-मिल जाते हैं, हर वक्त उनके आसपास रहते हैं, उनके हर फैसले में दखल देते हैं, यहां तक कि उनके लिए हर छोटी-छोटी समस्याओं का हल खुद ही निकाल देते हैं, तो इसे हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग कहा जाता है. यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि ऐसे माता-पिता बिल्कुल हेलीकॉप्टर की तरह अपने बच्चों के सिर पर लगातार मंडराते रहते हैं.
हेलीकॉप्टर पेरेंट्स की पहचान कैसे करें?
अगर माता-पिता बच्चों के हर काम में खुद दखल देते हैं. उनके हर फैसले खुद लेते हैं. हर वक्त बच्चों की निगरानी करते हैं. बच्चों को बाहरी दुनिया से बचाकर रखना चाहते हैं. बच्चों को खुद निर्णय लेने का मौका नहीं देते. तो यह सभी संकेत हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग के होते हैं. भले ही माता-पिता का मकसद बच्चों की भलाई ही हो, लेकिन इससे बच्चे की मानसिक और सामाजिक विकास पर बुरा असर पड़ सकता है.
बच्चों पर हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग का असर
आत्मविश्वास में कमी: लगातार माता-पिता की दखलअंदाजी से बच्चों में आत्मनिर्भरता कम हो जाती है. वे खुद निर्णय लेने से डरने लगते हैं. समस्या सुलझाने में अयोग्यता: अगर हर समस्या माता-पिता ही सुलझा दें, तो बच्चा खुद से मुश्किलों का सामना करना नहीं सीख पाता. अधिक तनाव: लगातार निगरानी और फैसलों में दखल बच्चों पर दबाव बना देता है, जिससे वे मानसिक तनाव में आ सकते हैं. सामाजिक कौशल में कमी: जब बच्चे खुद के फैसले नहीं लेते, तो वे अपने दोस्तों और समाज में खुलकर घुलने-मिलने से भी पीछे हट जाते हैं.
कैसे बनें बैलेंस्ड पेरेंट?
माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को थोड़ी आजादी दें, उन्हें अपने अनुभव से सीखने का मौका दें. उनकी परेशानियों में साथ तो रहें, लेकिन हर बार उनका समाधान खुद न दें. बच्चों को निर्णय लेने दें और उन्हें बताएं कि गलतियां करना भी सीखने का हिस्सा है. ऐसा करने से बच्चे आत्मविश्वासी, समझदार और जिम्मेदार बनते हैं.
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