Varuthini Ekadashi 2025: क्यों मनाई जाती है वरुथिनी एकादशी? क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा

    Varuthini Ekadashi 2025: आज 24 अप्रैल को वैशाख मास की कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि है, जिसे वरुथिनी एकादशी कहा जाता है. यह व्रत धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायी माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की आराधना की जाती है. 

    Varuthini Ekadashi 2025 Vrat Katha and importance in hindi
    Image Source: Social Media

    Varuthini Ekadashi 2025: आज 24 अप्रैल को वैशाख मास की कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि है, जिसे वरुथिनी एकादशी कहा जाता है. यह व्रत धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायी माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की आराधना की जाती है. 

    माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत न केवल पापों का नाश करता है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक होता है. अगर आप आज वरुथिनी एकादशी का व्रत कर रहे हैं, तो इस दिन की व्रत कथा को जरूर पढ़ें, क्योंकि इसके पीछे छिपी है एक प्रेरणादायक और गहराई से जुड़ी हुई पौराणिक कथा.

    वरुथिनी एकादशी की कथा

    यह कथा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई गई थी. कथा का केंद्र हैं एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा  राजा मान्धाता. राजा मान्धाता नर्मदा नदी के किनारे स्थित अपने राज्य में न सिर्फ न्यायप्रिय और तपस्वी थे, बल्कि वे दान और धर्म के मार्ग पर अडिग रहते थे. एक बार वे गहन वन में तपस्या में लीन थे, तभी एक जंगली भालू ने उनके पैर पर आक्रमण कर दिया और चबाने लगा. आश्चर्य की बात यह थी कि राजा तनिक भी विचलित नहीं हुए और अपनी तपस्या में लीन रहे.

    भालू ने उन्हें घसीटकर जंगल में ले जाने की कोशिश की, लेकिन राजा ने न हिंसा की, न क्रोध किया—बल्कि करुणा से भगवान विष्णु को पुकारा. उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र से भालू का अंत कर दिया.

    राजा का एक पैर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. इस पर भगवान विष्णु ने उन्हें सांत्वना देते हुए मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी और वराह अवतार की पूजा का निर्देश दिया. राजा ने ऐसा ही किया और इस व्रत के प्रभाव से उनका शरीर पुनः संपूर्ण और सुंदर हो गया. अंततः वे परम गति को प्राप्त हुए.

    वरुथिनी एकादशी का महत्व

    शास्त्रों में वर्णित है कि यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ होता है जो जीवन में किसी भी प्रकार की पीड़ा, भय या पापों से घिरे होते हैं. इस दिन भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा कर, श्रद्धा और नियम से उपवास करने से मनुष्य के समस्त पाप कटते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही, लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है.

    यह भी पढ़े: कैसे होती है माता वैष्णो देवी मंदिर की सुरक्षा, क्या पहलगाम हमले के बाद कम होगी श्रद्धालुओं की भीड़?