कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में भारी खटास आ गई है. तनाव इतना गहरा हो चुका है कि अब यह टकराव की कगार तक पहुंच गया है. इस घटनाक्रम पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं—कुछ देश भारत के साथ मजबूती से खड़े हैं, तो कुछ अब भी 'शांति' की दुहाई देते नजर आ रहे हैं. लेकिन, इस बार भारत ने भी कूटनीतिक मंचों पर जिस स्पष्टता और आत्मविश्वास से अपनी बात रखी है, उसका असर अब दिखने लगा है.
जयशंकर का सख्त संदेश, उपदेश नहीं सहयोग चाहिए
हाल ही में आयोजित आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम में विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने वैश्विक मंच से उन देशों को साफ संदेश दिया, जो भारत को संयम बरतने की सलाह दे रहे थे. जयशंकर ने कहा, "हमें उपदेश देने वाले नहीं, भागीदार चाहिए. खासतौर पर ऐसे देश, जो खुद अपने मानकों का पालन नहीं करते लेकिन दूसरों को ज्ञान देते हैं." उनका यह बयान सीधे तौर पर यूरोप के उन देशों के लिए था जो भारत को सैन्य विकल्प से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन खुद संकट की स्थिति में कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटते.
जयशंकर के इस तीखे लेकिन सधे हुए बयान ने वैश्विक राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है. अब तक जो देश 'संतुलन' की भाषा बोलते थे, उनमें भी बदलाव नजर आने लगा है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का नया रुख
विदेश मंत्री के बयान के कुछ ही दिनों बाद, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी अपनी भाषा में बदलाव किया है. 5 मई को दिए गए अपने ताज़ा बयान में गुटेरेस ने न केवल पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की, बल्कि पहली बार स्पष्ट रूप से कहा, "दोषियों को सजा मिलनी चाहिए."
गुटेरेस ने कहा, “22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला भयावह था. इसमें निर्दोष नागरिकों की जान गई, जो पूरी तरह अस्वीकार्य है. पीड़ित परिवारों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं और मैं इस हमले की निंदा करता हूं.”
हालांकि, उन्होंने दोनों देशों से संयम बरतने की भी अपील की और कहा कि सैन्य टकराव किसी समाधान की ओर नहीं ले जाता. उन्होंने यह भी पेशकश की कि संयुक्त राष्ट्र भारत-पाक के बीच बातचीत और शांति प्रयासों में सहयोग देने को तैयार है.
वैश्विक रुख में बंटवारा
इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी साफ तौर पर दो खेमों में बंटा नजर आता है. अमेरिका, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देश भारत के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, जबकि चीन और तुर्की जैसे देशों ने अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया है. वहीं, कुछ यूरोपीय देश अब भी तटस्थ मुद्रा अपनाए हुए हैं और टकराव से बचने की सलाह दे रहे हैं.
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