नोबेल पुरस्कार लेकर ही मानेंगे ट्रंप! अब खत्म कराएंगे 37 साल पुरानी जंग, दोनों देशों के नेताओं से मिलेंगे

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तीन दशकों से अधिक समय से चले आ रहे संघर्ष को हमेशा के लिए खत्म करने का बीड़ा उठाया है.

    Trump will end the 37-year-old war between Armenia and Azerbaijan
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    वॉशिंगटन डीसी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच तीन दशकों से अधिक समय से चले आ रहे संघर्ष को हमेशा के लिए खत्म करने का बीड़ा उठाया है. व्हाइट हाउस में शुक्रवार को होने वाली बैठक में दोनों देशों के शीर्ष नेता आमने-सामने होंगे. यह बैठक केवल औपचारिक बातचीत नहीं है यहां एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है.

    ट्रंप इस पहल को केवल दो देशों के बीच विवाद सुलझाने की कोशिश नहीं मानते, बल्कि इसे वैश्विक शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बता रहे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि इस शिखर सम्मेलन के जरिए दक्षिण काकेशस क्षेत्र को एक बार फिर स्थिरता और आर्थिक विकास की ओर बढ़ाया जाएगा.

    क्यों है यह बैठक इतनी अहम?

    आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रहा विवाद कोई हालिया घटना नहीं है. इसकी जड़ें गहरी हैं और इतिहास, धर्म, राजनीति, भूगोल और पहचान से जुड़ी हुई हैं. यह जंग 1988 में शुरू हुई थी, जब सोवियत संघ का शिकंजा कमजोर हो रहा था और नागोर्नो-काराबाख नामक क्षेत्र के भविष्य पर सवाल उठने लगे.

    यह इलाका भले ही अंतरराष्ट्रीय मान्यता के अनुसार अजरबैजान का हिस्सा हो, लेकिन इसमें बहुसंख्यक आबादी आर्मेनियाई लोगों की है. 1988 में नागोर्नो-काराबाख की स्थानीय संसद ने आर्मेनिया में शामिल होने की घोषणा की, जिसने इलाके में अजरबैजानी समुदाय को भड़का दिया और फिर शुरू हुआ एक खूनी संघर्ष.

    1991 में सोवियत संघ के टूटते ही यह संघर्ष पूरी तरह उभर कर सामने आया. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर साम्प्रदायिक हिंसा, सांस्कृतिक विरासत नष्ट करने और युद्ध अपराधों के आरोप लगाए. 1994 में एक संघर्षविराम के बावजूद, यह "जंग बिना शांति" की स्थिति बनी रही, जो समय-समय पर फिर से भड़कती रही.

    ट्रंप का छह जंगों को बंद कराने का दावा

    डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में पहले भी खुद को "शांति का निर्माता" बताते रहे हैं. उनका दावा है कि उन्होंने अब तक दुनियाभर में छह बड़े संघर्षों को खत्म कराने में भूमिका निभाई है. इनमें भारत-पाकिस्तान, इजराइल-ईरान, थाईलैंड-कंबोडिया, रवांडा-कांगो, सर्बिया-कोसोवो और मिस्र-इथियोपिया के बीच जारी तनाव शामिल हैं.

    हालांकि इन सभी दावों पर सवाल भी उठते रहे हैं. भारत जैसे देशों ने तो खुलकर इनकार किया है कि ट्रंप की किसी पहल से कोई संघर्ष रुका हो. लेकिन फिर भी, यह बात भी सच है कि अमेरिका जैसा प्रभावशाली देश जब कूटनीति के रास्ते पर चलता है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ हलचल जरूर होती है.

    क्या इस बार कुछ अलग होगा?

    इस बार का प्रयास पहले से कहीं अधिक संगठित और आधिकारिक नजर आ रहा है. रॉयटर्स के मुताबिक, आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव दोनों ही शुक्रवार को व्हाइट हाउस में ट्रंप से मुलाकात करेंगे. और यह मुलाकात केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि एक औपचारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर की मंशा के साथ हो रही है.

    शांति समझौते की राह अब भी आसान नहीं है. अजरबैजान की यह मांग रही है कि आर्मेनिया अपने संविधान में बदलाव करे और नागोर्नो-काराबाख पर अपने दावों को औपचारिक रूप से हटा दे. यह शर्त अब तक आर्मेनिया के लिए स्वीकार करना मुश्किल रहा है. जुलाई 2025 में अबू धाबी में हुई बातचीत और उससे पहले मई में अल्बानिया में हुई बैठकें भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाईं.

    हालांकि, व्हाइट हाउस में ट्रंप की मौजूदगी और इस पहल को अमेरिका की आधिकारिक पहल बनाना यह संकेत देता है कि शायद इस बार दोनों पक्षों पर वास्तविक दबाव बनाया जाएगा.

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