दुनिया की निगाहें इस समय 15 अगस्त पर टिकी हैं, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आमने-सामने बैठने वाले हैं. यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है और जमीनी हालात बेहद तनावपूर्ण हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि इस मुलाकात का केंद्र बिंदु युद्धविराम की संभावनाएं होंगी, लेकिन इसके साथ ही सख्त चेतावनियों और रणनीतिक दबाव का दौर भी जारी है.
ट्रंप ने बैठक से पहले ही पुतिन को स्पष्ट संदेश दिया है. अगर रूस युद्धविराम पर सहमति नहीं दिखाता, तो उसे “गंभीर परिणाम” भुगतने पड़ सकते हैं. उन्होंने यह भी इशारा किया कि भविष्य में एक दूसरी बैठक की संभावना है, जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की भी मौजूद हो सकते हैं.
यूरोप और अमेरिका एक मंच पर
पुतिन से बातचीत से पहले राष्ट्रपति जेलेंस्की ने ट्रंप और यूरोपीय नेताओं से चर्चा की. जेलेंस्की का दावा है कि अमेरिका पूरी तरह उनके साथ खड़ा है, जबकि पुतिन प्रतिबंधों के असर को लेकर झूठा narrative पेश कर रहे हैं. इसी बीच, जर्मनी के चांसलर ओलाफ मर्ज़ ने स्पष्ट किया कि प्राथमिकता युद्धविराम है और अगर रूस सहमत नहीं होता तो उस पर दबाव और बढ़ाना होगा. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने भी यूक्रेन को निरंतर समर्थन देने का वादा किया और पुतिन को वार्ता के लिए तैयार करने में ट्रंप की भूमिका की सराहना की.
युद्धविराम की पेचीदगियां
हालांकि बातचीत से पहले उम्मीदें ऊंची हैं, लेकिन शर्तें अब भी धुंधली हैं. विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन युद्धविराम के बदले कुछ कब्जाए गए इलाकों पर रूस की संप्रभुता की मांग कर सकते हैं. दूसरी ओर, जेलेंस्की ने यूक्रेन की “एक इंच भी जमीन” छोड़ने से साफ इनकार कर दिया है. जमीनी हकीकत यह है कि रूस वर्तमान में यूक्रेन के लगभग 20% हिस्से पर नियंत्रण बनाए हुए है. शांति प्रयास पहले भी हो चुके हैं. तुर्की के अंकारा और सऊदी अरब के जेद्दा में युद्धविराम पर बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन नतीजा शून्य रहा. अब देखना यह है कि ट्रंप की मध्यस्थता से क्या कोई ठोस बदलाव आता है या यह भी एक और नाकाम कोशिश बनकर रह जाएगी.
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