टैरिफ पर ऐलान कर 28 बार पीछे हटे, 194 दिनों में 34 फैसले पलटे, यू-टर्न मारने रिकॉर्ड बना रहे ट्रंप

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले छह महीने सत्ता में भले ही लंबे न लगे हों, लेकिन इस अल्प अवधि में उन्होंने फैसलों की जो रफ्तार और फिर पलटने की जो प्रवृत्ति दिखाई, उसने न केवल अमेरिकी प्रशासन में अस्थिरता पैदा की, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अनिश्चितता का माहौल बना दिया.

    Trump is making a record by taking a U-turn
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    वॉशिंगटन डीसी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले छह महीने सत्ता में भले ही लंबे न लगे हों, लेकिन इस अल्प अवधि में उन्होंने फैसलों की जो रफ्तार और फिर पलटने की जो प्रवृत्ति दिखाई, उसने न केवल अमेरिकी प्रशासन में अस्थिरता पैदा की, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अनिश्चितता का माहौल बना दिया. ट्रंप प्रशासन ने 194 दिनों में 178 कार्यकारी आदेश जारी किए यानि औसतन हर दिन लगभग एक आदेश. लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से 34 नीतिगत फैसले ऐसे थे, जिन्हें ट्रंप ने स्वयं पलट दिया.

    इनमें से सबसे अधिक यू-टर्न टैरिफ नीति से जुड़े मामलों में देखे गए, जहां ट्रंप ने 28 बार अपने फैसलों को वापस लिया या बदल दिया. अमेरिका के व्यापारिक साझेदार, घरेलू उद्योग जगत, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय, सभी को इन निर्णयों ने बार-बार असमंजस में डाला.

    यू-टर्न की राजनीति: जब फैसले टिकते नहीं

    राष्ट्रपति ट्रंप के अब तक के कार्यकाल की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि वे निर्णय लेने में जितनी तेजी दिखाते हैं, उतनी ही जल्दी उन निर्णयों से पीछे भी हट जाते हैं. एक उदाहरण रिसर्च फंडिंग का है, जहां वैज्ञानिक अनुसंधान में लगाई गई रोक को सिर्फ तीन दिन में पलट दिया गया. इसी तरह, तेल और गैस कंपनियों को दी गई रियायतें भी कुछ ही हफ्तों में वापस ले ली गईं.

    अवैध प्रवासियों पर कठोर कार्रवाई, LGBTQ अधिकारों में संशोधन, विदेश नीति में तीव्र बयानबाज़ी इन सब मुद्दों पर ट्रंप के बयान और आदेश अक्सर परस्पर विरोधाभासी साबित हुए. उनकी नीतियों के इस विरोधाभास से न केवल जनता, बल्कि सरकारी एजेंसियों और अमेरिकी अदालतों में भी भ्रम की स्थिति बन गई है.

    न्यायपालिका का हस्तक्षेप: अदालतें बनीं स्टेबलाइज़र

    ट्रंप प्रशासन के कई फैसले इतने असंगत और जल्दबाज़ी में लिए गए थे कि अदालतों को बीच में आकर रोक लगानी पड़ी. अमेरिकी संघीय अदालतों ने अब तक ट्रंप के 200 से अधिक आदेशों पर स्टे लगा दिया है. इनमें से अधिकांश मामलों में जजों ने स्पष्ट किया कि नीतियाँ या तो संविधान का उल्लंघन करती हैं या उन्हें लागू करने में कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है.

    बर्थ-राइट सिटिजनशिप को खत्म करने का प्रयास इसका प्रमुख उदाहरण है. इस पर अदालतों ने यह कहते हुए रोक लगाई कि यह अमेरिका के 14वें संशोधन के खिलाफ है. इतना ही नहीं, इक्विटी कॉन्ट्रैक्ट्स को रद्द करने पर भी कोर्ट का दखल देखने को मिला, जहां ट्रंप द्वारा नियुक्त कई न्यायाधीशों ने भी उनके आदेशों पर आपत्ति जताई.

    व्यापार और कूटनीति में भ्रम की स्थिति

    टैरिफ की उलझन:

    व्यापारिक मोर्चे पर ट्रंप की घोषणाएं और पलटवार दोनों ने विश्व बाजारों को प्रभावित किया. कनाडा और चीन जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर लगाए गए टैरिफ और फिर अचानक उन्हें बदलने के फैसले से न केवल अमेरिकी बाजारों में अस्थिरता फैली, बल्कि वैश्विक व्यापारिक रिश्तों में भी तनाव पैदा हुआ.

    टैरिफ डेडलाइनों को ट्रंप तीन बार बदल चुके हैं पहले 9 जुलाई, फिर 1 अगस्त, और अंततः उसे एक हफ्ते के लिए और टाल दिया गया. फार्मास्युटिकल्स और कॉपर पर दी गई छूट को कई बार रद्द और फिर से बहाल किया गया, जिससे निवेशकों और कंपनियों में गहरी असमंजस की स्थिति बन गई.

    यूक्रेन और गाजा मुद्दा:

    • विदेश नीति के स्तर पर भी ट्रंप प्रशासन ने बार-बार यू-टर्न लिया.
    • यूक्रेन को सैन्य सहायता पहले रोक दी गई थी (9 जुलाई), लेकिन फिर कुछ ही हफ्तों में अमेरिका ने 10 पैट्रियट मिसाइलों समेत अन्य सैन्य सामग्री भेज दी.

    गाजा युद्ध पर ट्रंप ने चुनाव के दौरान वादा किया था कि “24 घंटे में युद्ध खत्म करेंगे,” लेकिन राष्ट्रपति बनने के 6 महीने बाद भी युद्ध पर कोई ठोस नियंत्रण नहीं दिखा. उन्होंने एक बार 4 फरवरी को पुनर्वास की बात कही, फिर 21 फरवरी को बयान से मुकर गए, और 12 मार्च को फिर पलटे.

    आव्रजन नीति: सख्ती से नरमी तक

    • आव्रजन नीति में भी ट्रंप ने कई बार अपने ही आदेशों को बदला.
    • 22 जनवरी को उन्होंने अवैध प्रवासियों के डिपोर्टेशन का आदेश दिया.
    • कोर्ट की आपत्ति के चलते आदेश रद्द हुआ.
    • इसके बाद फिर संशोधित आदेश जारी हुए, जिनमें भी कानूनी अड़चनें आईं.

    यह सिलसिला इतना पेचीदा बन गया कि प्रवासी समुदायों के बीच अनिश्चितता और भय का माहौल बना रहा.

    मेक अमेरिका कन्फ्यूज्ड अगेन?

    विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप का 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' अभियान अब धीरे-धीरे ‘मेक अमेरिका कन्फ्यूज्ड अगेन’ में बदलता जा रहा है. जब एक प्रशासन खुद अपने ही फैसलों को पलटता है, तो नीति-निर्माण की प्रक्रिया विश्वसनीयता खो बैठती है.

    ट्रंप समर्थकों का दावा है कि राष्ट्रपति की यह ‘फ्लेक्सिबिलिटी’ उनकी नेतृत्व क्षमता का उदाहरण है, जहां वे परिस्थितियों के अनुसार निर्णय बदल सकते हैं. पर आलोचक इसे अस्थिरता और संस्थागत अविश्वसनीयता के तौर पर देखते हैं.

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