ट्रंप का प्लान बगराम आया सामने! पाक-कतर के सहारे कब्जे की तैयारी, हवाई क्षेत्र की रक्षा में तालिबान फेल

    Bagram Air Base: अफगानिस्तान एक बार फिर वैश्विक राजनीति और सैन्य रणनीतियों के केंद्र में आ गया है. अफगानिस्तान में स्थित बगराम एयरबेस को लेकर अमेरिका और तालिबान के बीच टकराव की स्थिति बनती जा रही है. अमेरिकी प्रशासन, खासतौर पर ट्रंप के नेतृत्व में, इस रणनीतिक रूप से अहम ठिकाने को दोबारा अपने नियंत्रण में लेने की योजना पर काम कर रहा है.

    Trump Bagram plan Pakistan and Qatar the Taliban fail to defend the airfield
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    Bagram Air Base: अफगानिस्तान एक बार फिर वैश्विक राजनीति और सैन्य रणनीतियों के केंद्र में आ गया है. अफगानिस्तान में स्थित बगराम एयरबेस को लेकर अमेरिका और तालिबान के बीच टकराव की स्थिति बनती जा रही है. अमेरिकी प्रशासन, खासतौर पर ट्रंप के नेतृत्व में, इस रणनीतिक रूप से अहम ठिकाने को दोबारा अपने नियंत्रण में लेने की योजना पर काम कर रहा है.

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत करते हुए इशारा दिया कि बगराम एयरबेस को लेकर उनकी सरकार के पास “बहुत कुछ है कहने को.” उन्होंने पत्रकारों से यह भी कहा कि “थोड़ा इंतजार कीजिए,” जिससे साफ हो गया कि अमेरिका इस मसले पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी में है.

    तालिबान में खलबली, बुलाई गई आपात बैठक

    इन अमेरिकी संकेतों के बाद अफगानिस्तान की तालिबान सरकार में हलचल तेज हो गई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्ला अखुंदज़ादा ने इस मुद्दे पर आपात कैबिनेट बैठक बुलाई है. इस बैठक में यह तय किया जाएगा कि बगराम एयरबेस को बचाने के लिए तालिबान को आगे क्या कदम उठाने होंगे.

    रूस, चीन और ईरान का समर्थन

    बगराम विवाद में क्षेत्रीय महाशक्तियों की भी दखल बढ़ती जा रही है. रूस, चीन और ईरान, तीनों देश किसी भी हालत में अमेरिका को बगराम एयरबेस पर दोबारा कब्जा नहीं करने देना चाहते. इन देशों को आशंका है कि अगर अमेरिका इस एयरबेस पर फिर से कब्जा जमाता है, तो इससे मध्य एशिया में उनकी सामरिक स्थिति कमजोर हो सकती है. इसीलिए, ये देश तालिबान को परोक्ष रूप से समर्थन दे रहे हैं.

    पाकिस्तान, चीन और रूस ने हाल ही में अफगानिस्तान के साथ एक संयुक्त बैठक की, जिसमें इस मुद्दे पर रणनीति बनाई गई. वहीं ईरान ने सार्वजनिक रूप से यह ऐलान कर दिया है कि अगर अमेरिका ने जबरदस्ती बगराम लेने की कोशिश की, तो वो इसका खुला विरोध करेगा.

    बातचीत और ज़रूरत पड़ी तो कार्रवाई

    अमेरिका की योजना पहले कूटनीतिक तरीके से बगराम को हासिल करने की है. अमेरिकी राजनयिक लगातार तालिबान से बातचीत में लगे हैं. लेकिन अगर ये कोशिशें नाकाम होती हैं, तो अमेरिका सैन्य कार्रवाई से पीछे नहीं हटेगा. इसके संकेत खुद ट्रंप प्रशासन के बयानों से मिल रहे हैं.

    1. अमेरिका का हवाई नियंत्रण अब भी कायम

    हालांकि जमीनी हकीकत में तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर रखा है, लेकिन देश के हवाई क्षेत्र पर अब भी अमेरिका का वर्चस्व है. अफगानिस्तान के शिक्षा मंत्री ने हाल ही में एक बयान में खुलासा किया कि अमेरिकी ड्रोन लगातार अफगान क्षेत्र में उड़ान भरते रहते हैं और उन्हें निशाना बनाना आसान नहीं है. इससे ये साफ है कि तालिबान के लिए हवा में अमेरिका को चुनौती देना मुश्किल है.

    2. दोहा समझौता बना अड़चन

    तालिबान का तर्क है कि अमेरिका के साथ 2020 में दोहा में जो समझौता हुआ था, उसके तहत अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने की शर्तों पर सहमति बनी थी. हालांकि यह समझौता उस समय की अफगान सरकार के साथ हुआ था, जिसे तालिबान ने 2021 में उखाड़ फेंका. अब अमेरिका इस तर्क को नहीं मानता, क्योंकि वह तालिबान की सरकार को वैध नहीं मानता है.

    3. पाकिस्तान की भूमिका और अमेरिका की बातचीत

    बगराम एयरबेस की भौगोलिक स्थिति पाकिस्तान के नजदीक है, इसलिए इस मामले में पाकिस्तान की भूमिका भी अहम बन गई है. बताया जा रहा है कि तालिबान, पाकिस्तान को इस मुद्दे में अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख से मुलाकात की थी, जिससे यह साफ होता है कि अमेरिका भी पाकिस्तान के जरिए दबाव बनाना चाहता है.

    4. कतर की मध्यस्थता

    इस पूरे विवाद में कतर एक बार फिर अमेरिका और तालिबान के बीच पुल बनने की भूमिका निभा रहा है. कतर में तालिबान का राजनीतिक कार्यालय मौजूद है और कतर अमेरिका का रणनीतिक साझेदार भी है. पहले भी कई मौकों पर कतर ने दोनों पक्षों के बीच बातचीत सफलतापूर्वक करवाई है. अब भी कतर की कोशिश है कि मसला सैन्य कार्रवाई की नौबत तक न पहुंचे और समाधान बातचीत से निकले.

    बगराम की अहमियत क्यों है इतनी ज्यादा?

    बगराम एयरबेस अफगानिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे रणनीतिक सैन्य अड्डा है. यह एयरबेस अमेरिकी फौजों के लिए लंबे समय तक आतंकवाद के खिलाफ अभियान चलाने का केंद्र रहा है. यहां से न केवल ड्रोन ऑपरेशन और हवाई निगरानी होती है, बल्कि यह एयरबेस अमेरिका के लिए पूरे सेंट्रल और साउथ एशिया पर नजर रखने का एक अहम माध्यम रहा है. इसलिए अमेरिका इसे खोना नहीं चाहता और तालिबान इसे किसी भी कीमत पर दोबारा अमेरिका को देना नहीं चाहता.

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