वैश्विक राजनीति के सबसे अहम पलों में से एक बनने जा रही 15 अगस्त की तारीख पर अब दुनिया की निगाहें टिक गई हैं. इस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अलास्का में आमने-सामने बैठेंगे. माना जा रहा है कि यह बैठक यूक्रेन में पिछले चार साल से जारी युद्ध को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकती है. भारत ने इस मुलाकात का स्वागत करते हुए साफ कहा है—“कैसे भी हो, जंग रुकनी चाहिए.”
विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि भारत इस शिखर वार्ता का समर्थन करता है और किसी भी ऐसे प्रयास का साथ देगा जो हिंसा को रोककर बातचीत से समाधान निकालने की दिशा में हो. मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह प्रसिद्ध संदेश भी दोहराया, जिसे उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रखा है. “यह युद्ध का युग नहीं है.” भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि आवश्यकता पड़ने पर वह शांति बहाली में सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है.
ट्रंप-पुतिन मुलाकात पर बढ़ी उत्सुकता
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर इस मुलाकात की पुष्टि की. पहले कयास लगाए जा रहे थे कि बैठक संयुक्त अरब अमीरात में हो सकती है, लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने सुरक्षा और कूटनीतिक कारणों से घरेलू स्थान, यानी अलास्का, को चुना. यह ट्रंप और पुतिन की जनवरी 2025 में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद पहली औपचारिक बैठक होगी. पिछली बार जून 2021 में पुतिन ने जेनेवा में तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की थी.
युद्ध की पृष्ठभूमि और दुनिया की उम्मीदें
यूक्रेन में 2021 से जारी संघर्ष ने लाखों लोगों को बेघर और हजारों को मौत के घाट उतार दिया है. अब, चार साल पुराने इस युद्ध में पहली बार अमेरिकी और रूसी शीर्ष नेतृत्व सीधे वार्ता टेबल पर बैठने जा रहा है. हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने एजेंडा सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन यह लगभग तय है कि चर्चा का केंद्र यूक्रेन संघर्ष ही रहेगा.
भारत की संभावित भूमिका
भारत ने खुद को प्रत्यक्ष मध्यस्थ के रूप में पेश नहीं किया है, लेकिन उसके बयान से यह संकेत जरूर मिलता है कि वह आवश्यकता पड़ने पर सक्रिय शांति पहल में हिस्सा लेने से पीछे नहीं हटेगा. भारत का अंतरराष्ट्रीय रुख हमेशा संतुलित रहा है—किसी एक पक्ष का पक्षधर बने बिना, केवल समाधान और स्थिरता पर जोर देना.
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