इस्लामाबाद: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य गतिरोधों और ऑपरेशन "सिंदूर" के बाद क्षेत्र में अस्थिरता का माहौल बना हुआ है. इस पृष्ठभूमि में एक नई रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें दावा किया गया है कि पाकिस्तानी वायुसेना ने कतर और तुर्की के सहयोग से भारत के प्रमुख रक्षा उपकरणों- राफेल फाइटर जेट और एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम—की तकनीकी क्षमताओं को समझने की कोशिश की.
इस प्रयास का उद्देश्य, रिपोर्ट के अनुसार, इन हथियारों के संचालन के पैटर्न और कमजोरियों का विश्लेषण करना था ताकि संभावित संघर्ष की स्थिति में प्रभावी जवाबी रणनीति विकसित की जा सके.
राफेल की समझ में कतर की भूमिका
भारत ने 2016 में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता किया था, जो 2020 से भारतीय वायुसेना का हिस्सा बनना शुरू हुए. इन विमानों में अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम (मेटियोर, स्कैल्प और हैमर), रडार (RBE-2) और स्पेक्ट्रा इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम जैसी क्षमताएं हैं.
रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तानी वायुसेना को राफेल विमानों की तकनीकी समझ कतर के सहयोग से मिली. कतर, जिसने भारत से पहले फ्रांस से राफेल विमान खरीदे थे, ने अपने सैन्य सहयोग के तहत पाकिस्तानी पायलटों को सीमित रूप से राफेल उड़ाने की अनुमति दी थी. हालांकि इस दावे का फ्रांसीसी अधिकारियों ने खंडन किया था, लेकिन क्षेत्रीय विशेषज्ञ मानते हैं कि सैद्धांतिक और तकनीकी जानकारी साझा की गई हो सकती है. इस जानकारी का लाभ पाकिस्तान को संभावित हवाई संघर्ष की स्थिति में राफेल की रणनीति और रेंज समझने में मिल सकता है.
S-400 डिफेंस सिस्टम की रणनीतिक समझ
रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान को भारत के रूसी S-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम की कार्यप्रणाली को समझने में तुर्की से सहायता मिली. तुर्की ने भी रूस से S-400 सिस्टम खरीदा है, और उसके पास इस प्रणाली का संचालन अनुभव है.
सूत्रों के अनुसार, तुर्की ने पाकिस्तान को तकनीकी परामर्श दिया, जिसके आधार पर चीन निर्मित मिसाइलों के जरिए S-400 पर हमले का परीक्षण किया गया. हालांकि, इन प्रयासों को भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने सफलतापूर्वक निष्क्रिय कर दिया, और पाकिस्तान का दावा किया गया हमला विफल रहा.
ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तानी प्रतिक्रिया
"ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान भारत की सैन्य कार्रवाइयों ने पाकिस्तान को एक सशक्त संकेत दिया. जवाबी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान ने अपने JF-17 और J-10C लड़ाकू विमानों के जरिए रणनीतिक मिसाइल हमलों का अभ्यास किया, जिनमें चीनी PL-15 मिसाइलें शामिल थीं. हालांकि, भारतीय वायुसेना ने इस खतरे का सफलतापूर्वक मुकाबला किया, और कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ.
भारत की पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर राफेल की तैनाती और S-400 की प्रणाली की मौजूदगी ने देश की हवाई सुरक्षा को व्यापक मजबूती दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया आदमपुर एयरबेस दौरा इस सुरक्षा विश्वास को और मजबूत करता है.
क्षेत्रीय रणनीतिक संदेश और भविष्य की दिशा
यह प्रकरण यह दर्शाता है कि क्षेत्रीय सामरिक प्रतिस्पर्धा अब पारंपरिक युद्धक्षेत्र से आगे बढ़कर तकनीकी और सामरिक समझदारी के क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है. पाकिस्तान की कतर और तुर्की से मिली संभावित सहायता ने यह स्पष्ट किया है कि अप्रत्यक्ष सैन्य सहयोग और जानकारी का आदान-प्रदान आज की सुरक्षा रणनीतियों का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है.
हालांकि, भारत ने अपने रक्षा प्रणालियों की मजबूती और तकनीकी श्रेष्ठता के दम पर इन चुनौतियों का सामना किया है. भविष्य में, साइबर सुरक्षा, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और ग्लोबल सैन्य गठजोड़ क्षेत्रीय स्थिरता में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
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