Most Rich Beggars: जब आप किसी चौराहे या मंदिर के बाहर फटेहाल कपड़ों में बैठे किसी भिखारी को देखते हैं, तो आपके मन में सहानुभूति के साथ यह भी आता है कि ये लोग कितनी कठिन ज़िंदगी जी रहे होंगे. लेकिन हाल ही में सामने आए एक सर्वेक्षण ने इस सोच को पूरी तरह बदलकर रख दिया है.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में किया गया एक व्यापक सर्वे यह साबित करता है कि यहां के कई भिखारी आम नौकरीपेशा लोगों से कहीं ज्यादा कमा रहे हैं. यह सर्वे ‘डूडा’ (DUDA), नगर निगम और समाज कल्याण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिसमें शहर के पाँच हजार से अधिक भिखारियों की जाँच की गई.
इस सर्वे का उद्देश्य था इन लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना, लेकिन जो आंकड़े सामने आए, उन्होंने सभी को चौंका दिया. कई भिखारियों के पास स्मार्टफोन, बैंक अकाउंट और यहां तक कि पैन कार्ड भी पाए गए.
महिलाओं की सबसे ज्यादा कमाई
सर्वे के अनुसार, सबसे अधिक आय उन महिला भिखारियों की है जो गर्भवती हैं या जिनकी गोद में छोटा बच्चा होता है. ये महिलाएं प्रतिदिन औसतन 2,500 से 3,000 रुपये तक की कमाई कर रही हैं. बुज़ुर्गों और बच्चों की भी आमदनी कोई कम नहीं है, वे भी 900 से 1,500 रुपये रोजाना तक कमा लेते हैं.
भिखारियों की "कमाई" बन रही है आय का स्थायी साधन
रिपोर्ट्स के अनुसार, कई ऐसे भिखारी हैं जो वर्षों से यही "पेशा" कर रहे हैं और उन्होंने इसे अपने जीवन का स्थायी माध्यम बना लिया है. कुछ तो ऐसे हैं जो महीने के अंत में 40 से 60 हजार रुपये तक की कमाई कर लेते हैं, जो कि किसी प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारी की औसत सैलरी से भी कहीं अधिक है.
भिखारियों पर पुनर्विचार की ज़रूरत
यह रिपोर्ट इस ओर भी इशारा करती है कि भीख मांगना अब केवल गरीबी की मजबूरी नहीं रहा, बल्कि कुछ के लिए यह एक संगठित और लाभदायक "धंधा" बन चुका है. ऐसे में सरकार को न सिर्फ इन्हें पुनर्वास की दिशा में कदम उठाने होंगे, बल्कि इस पेशे के पीछे छिपे माफिया और नेटवर्क पर भी सख्त कार्रवाई करनी होगी.
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