नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना (IAF) अपने अंतिम मिग-21 स्क्वाड्रन को सितंबर 2025 तक रिटायर करने जा रही है. यह एक प्रतीकात्मक क्षण है, क्योंकि मिग-21, जिसने दशकों तक देश की वायु सीमाओं की रक्षा की, अब इतिहास बन जाएगा. हालांकि यह निर्णय सैन्य संतुलन और स्क्वाड्रन संख्या को लेकर कुछ चिंता जरूर उत्पन्न करता है, लेकिन एक व्यापक परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो यह भारत की रक्षा नीति में चल रहे संरचनात्मक बदलाव और आधुनिकीकरण का स्पष्ट संकेत है.
IAF की फ्लीट: संख्या बनाम गुणवत्ता
मिग-21 की विदाई के बाद भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन की संख्या घटकर 29 रह जाएगी — जो आदर्श रूप से आवश्यक 42 स्क्वाड्रनों से कम है. फिर भी, वायुसेना की मौजूदा फ्लीट (522 फाइटर जेट्स) में तकनीकी गुणवत्ता और संचालन क्षमता में व्यापक उन्नयन हुआ है.
Su-30MKI, राफेल, मिराज-2000 और तेजस जैसे प्लेटफॉर्म्स ने पुराने विमानों की जगह लेनी शुरू कर दी है. इन विमानों की मल्टी-रोल क्षमताएं, आधुनिक एवियोनिक्स और उच्च मिशन सफलता दर भारतीय वायु शक्ति को नई ऊंचाई पर ले जा रही हैं.
आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस प्रगति
HAL और DRDO के नेतृत्व में भारत स्वदेशी फाइटर जेट्स की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा चुका है. तेजस LCA Mark-1A, जिसकी डिलीवरी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, आने वाले वर्षों में मिग-21 के स्थान की भरपाई करेगा.
साथ ही, अमेरिका की GE Aerospace के साथ मिलकर F-414 इंजन का भारत में निर्माण तेजस मार्क-2 और भविष्य के AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) प्रोजेक्ट के लिए आधार तैयार कर रहा है. यह केवल सैन्य स्वावलंबन नहीं, बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक पहल है.
मिग-21 का अंत: जोखिम में कमी, सुरक्षा में सुधार
मिग-21, एक समय का भरोसेमंद फाइटर जेट, वर्षों से लगातार तकनीकी पुरातनता और उड़ान दुर्घटनाओं के कारण आलोचना का विषय बना रहा. ‘फ्लाइंग कॉफिन’ जैसी उपाधियां इसके खतरनाक ट्रैक रिकॉर्ड को दर्शाती हैं.
इसका चरणबद्ध फेजआउट भारतीय वायुसेना की सुरक्षा संस्कृति में एक महत्वपूर्ण सुधार माना जा रहा है. यह बदलाव केवल हार्डवेयर का नहीं, बल्कि पूरे वायु संचालन ढांचे के एक अधिक सुरक्षित, पेशेवर और तकनीकी रूप से परिष्कृत स्वरूप की ओर संकेत करता है.
पाकिस्तान के संदर्भ में तुलनात्मक दृष्टिकोण
संख्या के मामले में पाकिस्तान के पास लगभग 450 फाइटर जेट्स और 25 स्क्वाड्रन हैं, जो भारतीय वायुसेना के 29 स्क्वाड्रनों से बहुत पीछे नहीं लगते. लेकिन अगर तकनीकी क्षमताओं, पायलट दक्षता, लॉजिस्टिक सपोर्ट और नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर को देखा जाए, तो IAF स्पष्ट रूप से आगे है.
पाकिस्तान के JF-17 और J-10C जैसे जेट्स की संरचना और युद्ध प्रदर्शन क्षमता भारतीय राफेल, मिराज, और तेजस के सामने सीमित मानी जाती है. इसके अलावा, भारत का AEW&C नेटवर्क, रियल-टाइम डाटा फ्यूज़न और इंटरसेप्शन क्षमताओं में निर्णायक बढ़त देता है.
चीन की चुनौती और भारत की तैयारी
चीनी वायुसेना (PLAAF) के पास लगभग 1,200 फाइटर जेट्स और 66 स्क्वाड्रन हैं, जिनमें J-20 और J-31 जैसे स्टेल्थ-capable फाइटर्स शामिल हैं. भारत इन चुनौतियों के प्रति अचूक सजग है.
गलवान संघर्ष के बाद भारत ने राफेल और Su-30MKI की अग्रिम पंक्तियों में तैनाती की है. साथ ही, S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने भारत की रक्षा परिधि को एक नई गहराई दी है. चीन की वायु श्रेष्ठता को संतुलित करने के लिए यह एक प्रभावी रणनीतिक उपाय है.
ड्रोन बनाम फाइटर जेट्स: क्या बदलेगा युद्ध का परिदृश्य?
यूक्रेन संघर्ष में ड्रोन की भूमिका के बावजूद, भारत के सामरिक संदर्भ में फाइटर जेट्स की प्रासंगिकता बनी हुई है. भारत दो-फ्रंट वॉर की संभावना से जूझता है, जहां लंबे समय तक उड़ान भरने वाले, भारी पेलोड ले जाने में सक्षम और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर समर्थित फाइटर जेट्स की जरूरत कभी खत्म नहीं हो सकती.
ड्रोन तकनीक निश्चित रूप से उभर रही है, लेकिन अभी तक यह सहायक भूमिका में ही है — मुख्य युद्धक शक्ति नहीं.
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