नई दिल्ली: भारत ने अब अपनी रक्षा रणनीति को केवल रक्षात्मक ढांचे तक सीमित न रखते हुए, चीन और पाकिस्तान जैसे पारंपरिक विरोधियों के विरुद्ध निर्णायक वायु शक्ति विकसित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है. सूत्रों के अनुसार, सरकार 40 से 60 तक पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स (Fifth Generation Fighter Aircraft – FGFA) के अधिग्रहण पर विचार कर रही है. जब तक स्वदेशी उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) पूरी तरह से तैयार नहीं हो जाता, तब तक यह अंतरिम व्यवस्था भारत की वायु शक्ति को आवश्यक संतुलन प्रदान करेगी.
रणनीतिक पृष्ठभूमि और वर्तमान परिदृश्य
भारतीय वायुसेना वर्तमान में Su-30 MKI और राफेल जैसे 4.5 जेनरेशन फाइटर जेट्स से सुसज्जित है. हालांकि, चीन द्वारा J-20 जैसे स्टेल्थ-capable फाइटर्स की तैनाती और पाकिस्तान को संभावित रूप से J-31 जैसे स्टेल्थ एयरक्राफ्ट्स की आपूर्ति की खबरें भारत को एक नए वायु सुरक्षा समीकरण में प्रवेश के लिए बाध्य कर रही हैं.
ऐसे समय में पांचवीं पीढ़ी के विमानों का अधिग्रहण केवल सैन्य संतुलन बनाए रखने की बात नहीं है, बल्कि यह भारत की "फर्स्ट स्ट्राइक कैपेबिलिटी", स्टेल्थ अभियानों और मल्टी-रोल मिशनों में प्रभुत्व की दिशा में एक ठोस पहल मानी जा सकती है.
F-35 बनाम Su-57: भारत की सामरिक द्विविधा
भारत के समक्ष दो विकल्प हैं—अमेरिका का F-35 और रूस का Su-57. दोनों विमान अपने-अपने क्षेत्रों में अद्वितीय हैं:
F-35 Lightning II: यह अमेरिका द्वारा विकसित सबसे उन्नत स्टेल्थ फाइटर है. इसमें नेटवर्क-सेंट्रिक वारफेयर क्षमताएं, उन्नत सेंसर फ्यूज़न, और अभूतपूर्व लक्ष्य भेदन दक्षता है. यह जेट NATO देशों के रक्षा ढांचे की रीढ़ बन चुका है.
Sukhoi Su-57: रूस का यह स्टेल्थ फाइटर वायुगतिकीय नियंत्रण और लंबी दूरी की स्ट्राइक क्षमताओं में अग्रणी माना जाता है. साथ ही, यह भारत के मौजूदा रूसी-उत्पत्ति प्लेटफॉर्म्स (Su-30 MKI, MiG-29 आदि) के साथ उच्च इंटरऑपरेबिलिटी रखता है. इसका लॉजिस्टिक्स और ट्रेनिंग आधार पहले से भारत में मौजूद है.
भारत के सामरिक दृष्टिकोण से यह निर्णय केवल तकनीकी विश्लेषण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें भू-राजनीतिक समीकरण, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की शर्तें और दीर्घकालिक रक्षा साझेदारी भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे.
CATS और AMCA: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में
HAL और DRDO के नेतृत्व में चल रहा Advanced Medium Combat Aircraft (AMCA) कार्यक्रम भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मील का पत्थर है. यह परियोजना केवल एक फाइटर जेट निर्माण का प्रयास नहीं, बल्कि स्टेल्थ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्वार्म ड्रोन इंटीग्रेशन और हाइपरसोनिक हथियारों के लिए तैयार एक बहुआयामी मंच के निर्माण की दृष्टि रखता है.
सूत्रों के अनुसार, 2026-27 तक AMCA का पहला प्रोटोटाइप उड़ान भर सकता है और 2030 के बाद इसका पूर्ण उत्पादन शुरू हो सकता है. इस परियोजना को समयबद्ध रूप से आगे बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय और विज्ञान मंत्रालय के बीच समन्वय तेज किया गया है.
भू-राजनीतिक संकेत और सैन्य संदेश
भारत द्वारा किसी भी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान का अधिग्रहण केवल एक रक्षा सौदा नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक बयान भी होगा. यह चीन के J-20 प्रभुत्व को रणनीतिक संतुलन देगा और पाकिस्तान जैसे सीमित संसाधन वाले देशों के लिए एक असाध्य चुनौती प्रस्तुत करेगा, जिनकी वायुसेना अभी भी JF-17 जैसे तुलनात्मक रूप से कमज़ोर प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर है.
कूटनीतिक सहयोग और रक्षा गठजोड़
भारत की यह नीति अमेरिका, रूस और अन्य रक्षा साझेदारों के साथ सामरिक सहयोग को नई दिशा देने वाली है. एक ओर भारत QUAD जैसे मंचों पर टेक्नोलॉजी सहयोग की ओर अग्रसर है, वहीं रूस के साथ ब्रह्मोस-II और Su-57 जैसे कार्यक्रमों में उसकी सक्रिय भूमिका बरकरार है. भारत का ध्यान अब "जस्ट बाय" से आगे बढ़कर "मेक एंड मास्टर" की ओर है, जिसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, को-डेवलपमेंट और स्वदेशीकरण को प्राथमिकता दी जा रही है.
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