दुनिया के 10 ऐसे देश, जहां लड़कियों को नहीं मिलते दूल्हे; भारत के 'खास दोस्त' का भी है नाम

    दुनियाभर में जनसंख्या संतुलन एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है. लेकिन कुछ देशों में यह संतुलन तेजी से बिगड़ता नजर आ रहा है, और लिंगानुपात (Gender Ratio) में बड़ा अंतर उभर रहा है.

    These 10 countries where women dont get easily there groom
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    दुनियाभर में जनसंख्या संतुलन एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा है. लेकिन कुछ देशों में यह संतुलन तेजी से बिगड़ता नजर आ रहा है, और लिंगानुपात (Gender Ratio) में बड़ा अंतर उभर रहा है. पुअर्टो रिको और मोल्दोवा ऐसे ही दो देश हैं जहां हर 100 पुरुषों पर 112 महिलाएं मौजूद हैं. इस रिपोर्ट में हम समझेंगे कि इसके पीछे क्या कारण हैं, इसका सामाजिक और आर्थिक ताना-बाना क्या है और भविष्य में यह स्थिति कैसी हो सकती है.

    1. लिंगानुपात का बिगड़ता संतुलन

    संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पुअर्टो रिको और मोल्दोवा में लिंगानुपात 1.12 हो चुका है, यानी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा है. यह असंतुलन स्वाभाविक नहीं है, बल्कि प्रवासन, आर्थिक स्थिति, और सामाजिक संरचना से गहराई से जुड़ा है.

    2. रोजगार की तलाश में पुरुषों का पलायन

    इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था सीमित संसाधनों पर टिकी हुई है. स्थानीय स्तर पर रोजगार के पर्याप्त अवसर न होने के कारण कामकाजी उम्र के पुरुष बड़ी संख्या में अमेरिका, यूरोप और अन्य समृद्ध देशों की ओर पलायन कर जाते हैं.

    मोल्दोवा: एक कृषि प्रधान और निम्न-आय वाला देश है, जहां ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं.
    पुअर्टो रिको: भले ही यह अमेरिका का एक ‘असंगठित क्षेत्र’ है, फिर भी यहां के युवा अमेरिका के मुख्य भूभाग में जाकर बेहतर अवसरों की तलाश करते हैं.
    नतीजा यह होता है कि स्थानीय आबादी में महिलाओं की संख्या बढ़ती जाती है, क्योंकि महिलाएं सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक बाधाओं के चलते देश छोड़ने में हिचकती हैं.

    3. सामाजिक ढांचे पर असर

    इस असंतुलन का असर केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर विवाह प्रणाली, पारिवारिक जीवन और सामाजिक रिश्तों पर भी गहराई से देखा जा सकता है. विवाह के लिए पुरुषों की संख्या घट रही है, जिससे महिलाओं को उपयुक्त जीवनसाथी चुनने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. अकेलेपन, मानसिक स्वास्थ्य, और घरेलू भूमिकाओं को लेकर सामाजिक असंतुलन देखने को मिल रहा है. कई बार महिलाओं को पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ता है.

    4. अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है प्रभाव

    जब कार्यशील पुरुष आबादी विदेश चली जाती है, तो देश की घरेलू अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ता है. महिलाओं पर पारिवारिक और आर्थिक जिम्मेदारियां दोनों बढ़ जाती हैं. हालांकि रेमिटेंस (Remittance) यानी विदेशों से आने वाले पैसे से थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है. इससे देश के डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी जनसंख्या से मिलने वाले आर्थिक लाभ में गिरावट आती है.

    5. भविष्य की चुनौती

    अगर यह ट्रेंड जारी रहता है तो आने वाले वर्षों में इन देशों को और गंभीर जनसांख्यिकीय असंतुलन का सामना करना पड़ सकता है. जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट, बुजुर्ग आबादी में वृद्धि, युवा कार्यबल की कमी, इन समस्याओं से बचने के लिए जरूरी है कि सरकारें. स्थानीय स्तर पर रोजगार और शिक्षा के अवसर बढ़ाएं. महिलाओं के लिए भी आर्थिक आत्मनिर्भरता के रास्ते खोलें. और युवा वर्ग को देश में रोकने के लिए नीतिगत प्रोत्साहन दें.

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