THE JC SHOW: गर्दा उड़ा दिया... | PM Modi | Bihar Election Results 2025 | Dr. Jagdeesh Chandra

    बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिला है. जहां पर एनडीए ने शानदार जीत दर्ज की. बीजेपी का प्रदर्शन पहले से बेहतर नजर आया तो जेडीयू की शानदार वापसी हुई. एलजेपी ने भी इस जीत में अपना एक बड़ा योगदान दिया है. इसी के साथ बिहार की राजनीति में एक नया सियासी संदेश देखने को मिला.

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    बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिला है. जहां पर एनडीए ने शानदार जीत दर्ज की. बीजेपी का प्रदर्शन पहले से बेहतर नजर आया तो जेडीयू की शानदार वापसी हुई. एलजेपी ने भी इस जीत में अपना एक बड़ा योगदान दिया है. इसी के साथ बिहार की राजनीति में एक नया सियासी संदेश देखने को मिला. जहां पर बढ़ा हुआ वोटर परसेंटेज, बीजेपी का इंटैक्ट वोट बैंक, महिलाओं और उनका एजेंडा, उनकी प्राथमिकताएं और यह पूरी की पूरी आधी आबादी कैसे एनडीए के साथ जाती हुई नजर आई. जबकि बिहार के लिए कहा जाता है कि बिहार में जाति है जो कभी जाती नहीं. लेकिन इस बार जाति से ऊपर उठकर सबने मिलकर एनडीए को जबरदस्त जीत दी है जो ना सिर्फ बिहार बल्कि देश की राजनीति को एक नई दिशा देकर गई है. आज द जेसी शो में इसी पर विश्लेषण करेंगे. 

    सवाल: सर आज जेसी शो की जो हमने हेडलाइन दी है "गर्दा उड़ा दिया." मायने क्या है इसके?

    जवाब: नरेंद्र मोदी बिहार चुनाव में अपने करिश्मे और नीतीश कुमार के साथ अपनी अनोखी केमिस्ट्री के साथ एक नायक के रूप में उभरे हैं. उन्होंने इतिहास में पहली बार 202 सीटों का चमत्कारिक आंकड़ा हासिल किया है. इस चुनाव में नीतीश कुमार का नाम था लेकिन असली चेहरा नरेंद्र मोदी का था, जिस चेहरे पर भाजपा ने और एनडीए ने यह चुनाव लड़ा. पहले कहते थे कि गांव का वोट कांग्रेस के पास है. भाजपा के पास अर्बन है. लेकिन इस चुनाव ने सिद्ध कर दिया. नरेंद्र मोदी ने गर्दा उड़ाकर यह सिद्ध कर दिया कि गांव का वोट भी हमारे पास है. गांव शहर दोनों का वोट आज भाजपा के पास है. यह बिहार का बहुत बड़ा मैसेज है और इसीलिए वेस्टर्न मीडिया ने आज अखबारों में लिखा है यह बिहार की जो मैसेज विक्ट्री है उसका एक ही संदेश है कि नरेंद्र मोदी इज द टालेस्ट पॉलिटिकल लीडर इन इंडिया व्हिच हैज़ नो अल्टरनेटिव एट द मोमेंट एंड ही रूल द नेशन फॉर इयर्स एंड इयर्स टुगेदर यू कैन से 10 इयर्स. आप कह सकते हैं कि चुनाव में जो जबरदस्त जीत हुई है, जो चमत्कार हुआ है, उसी को देखखर यह सच है कि गांव-गांव में शहर-शहर में नरेंद्र मोदी ने इस बार गर्दा उड़ा दिया और अब वो बंगाल के इंतजार में है जहां बंगाल जाकर के बंगाल के चुनाव में गर्दा उड़ा के वो फिर से बंगाल का चुनाव भी बिहार की तरह जीतने वाले हैं. 

    सवाल: सर आपने अभी कहा सिंगल लार्जेस्ट पार्टी... चुनाव से पहले चर्चा थी कि अगर बीजेपी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी आती है तो मुख्यमंत्री बीजेपी का होगा लेकिन फिर भी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी आई शपथ मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार लेंगे ऐसा क्यों कि अपना मुख्यमंत्री नहीं बैठाया?

    जवाब: कुछ राजनीतिक मजबूरियाँ और नरेंद्र मोदी अमित शाह की सदाशयता था वरना तो नेचुरल था सिंगल लार्जेस्ट पार्टी है आपके पास में और आपके पास में आज 117 तो है ही आपके एलआई को मिलाकर करके अगर आप देखते हैं तो चाहिए 122 आप राजभवन जाते राज्यपाल से कहते कि हमें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करिए राज्यपाल हैज़ नो अदर अल्टरनेटिव सिंगल लार्जेस्ट पार्टी वो आपको आमंत्रण देते भाजपा के मुख्यमंत्री की शपथ होती शक्ति प्रक्षण होता और उसी बीच में चार पांच लोग और आ जाते हैं जैसे लोग आते जाते रहते राजनीति में आजकल आप देखते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने सदाशता दिखाई कुछ सलाहकारों का यह भी मानना था कि इट्स टू अर्ली टू साइड नीतीश श कुमार अदरवाइज इट माइट वम अराउंड बिकॉज़ ऑफ वुमेन एंड इकोनमिकली बैकवर्ड वोट्स एंड ऑल दैट जो है तो फिलहाल ये कोश व्यू लिया गया और नीतीश कुमार की जो एक हमेशा जो उनका एजेंडा रहता है कि मुझे तो हर कीमत में मुख्यमंत्री बनना है तो संभावना थी कहीं फिर नहीं चले जाए इधर-उधर तो भाजपा ने एक तरह से विवेकपूर्ण कदम उठाया नीतीश कुमार का मान सम्मान रखा अपने हितों को थोड़ा सा सैक्रिफाइस किया और नीतीश कुमार की ताजपशी इस तरह से हो रही है. लेकिन आपने कहा कि भाजपा ने यह अवसर खो दिया है. अवसर नहीं खोया है. मेरा यह निश्चित मानना है. इट्स अ टरी अरेंजमेंट मे बी सिक्स मंथ मे बी अ ईयर अल्टीमेटली दे विल बी बीजेपी चीफ मिनिस्टर इन पटना. दिस इज ऑल. 

    सवाल: सर पटना में एक और बात है जिसको लेकर के चर्चा हो रही है और वो यह है कि अगर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया होता तो वो लालू और तेजस्वी का दामन एक बार फिर से थाम लेते. लेकिन सवाल सर यह है कि क्या गृह मंत्री अमित शाह इस बार ऐसा होने देते? 

    जवाब: अमित शाह नहीं होने देते. लेकिन यह तय है और मेरा आकलन है कि अगर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का ऑफर भाजपा नहीं देती और मुख्यमंत्री नहीं बनाती तो एक बार फिर छठी बार उनके विकल्प खुले थे दल बदल के यहां से वहां जाने के और उस स्थिति में अगर वह आरजेडी कांग्रेस इनके साथ खड़े होते हैं तो कुल मिला के उनके पास में 125 सीटें होती. जिसे बना सकते थे. लेकिन आज कोई ऐसे हालात नहीं थे. ही हैज़ नो ऑप्शन देन टु एक्सेप्ट द पोत. चीफ मिनिस्टर बनना था उनको भाजपा ने बना दिया क्यों जाएंगे लालू की यहां क्यों जाएंगे कांग्रेस के पास जो है बीच में चर्चा चली थी इसी बीच में जब जब स्थिति अनसर्टेन थी तो उस समय मैंने सुना है कि प्रस्ताव दिया है आरजेडी ने कि एक साल के लिए आप मुख्यमंत्री बन जाइए इसके बाद में तेजस्वी मुख्यमंत्री होंगे और नीतीश कुमार का बेटा उप मुख्यमंत्री होगा लेकिन ये स्थिति आई नहीं क्योंकि भाजपा ने आगे बढ़कर उनको ऑफर कर दिया चीफ मिनिस्टर की पोस्ट उनको ऑफर कर दी तो नीतीश कुमार हैड नो अपॉर्चुनिटी फॉर वन मोर दल बदल या वन मोर और शिफ्टिंग और डिफेक्शन टू दैट साइड जो है तो इसलिए ऐसा नहीं हुआ. लेकिन अगर भाजपा उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाती तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि वो छठी बार दल बदल करते उधर जाते जा पाते कि नहीं. अमित शाह बीच में रास्ता रोकते. दैट इज़ डिफरेंट स्टोरी लेकिन वो प्रयास जरूर करते. ऐसा मेरा मानना है. 

    सवाल: सर 2017 में पटना में एक नारा बिहार की मजबूरी है. नीतीश कुमार जरूरी है. ये इस बार के चुनाव में फिर कैसे प्रमाणित हुआ?

    जवाब: यह प्रमाणित आपके सामने है पॉलिटिकल कंपल्शनंस इस बार तो कोई कारण नहीं था उनका आप देखिए इन्हें वे कि सिंगल लार्जेस्ट पार्टी है आपको देना चाहिए जो है लेकिन बिहार की रचना ऐसी है और बिहार में आम आदमी भी ऐसा सोचता है कि मुख्यमंत्री बनना बिहार का नीतीश कुमार का जन्म सिद्ध अधिकार है एक जनरल परसेप्शन ये है भाजपा लीडिंग पार्टी नंबर वन पार्टी है वहां पे इवन देन एक जनरल इंप्रेशन इवन भाजपा के लोग भी इस तरह से कन्विंस है इस बात से कि हां वो चीफ मिनिस्टर तो वही बनेगा मतलब कहते फॉरगोन कंक्लूजन यह बड़ी विचित्र स्थिति है. यह इससे सिद्ध होता है कि डेस्टिनी भाग्य जिसे कहते हैं कि इतना सब होने पे भी भाजपा का सपना पूरा होने के बाद भी सिंगल लार्ज आने के बाद भी लोग नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने की आशा कर रहे हैं और वो बन भी रहे हैं. तो वो जो कहावत है वो सही साबित हुई है. 

    सवाल: सर आपने कहा भी कि आज नहीं तो कल बीजेपी का मुख्यमंत्री बनेगा. आप वाकई मानते हैं कि इस विधानसभा में भाजपा का मुख्यमंत्री बनेगा. 

    जवाब: 100% विधानसभा 5 साल की होती है. आप देखेंगे लेस देन ए ईयर यह हो जाएगा. कारण है ना उसका भाजपा का एक सपना है. उत्तर भारत में हर राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री होना चाहिए. बिहार एक अपवाद था. बिहार एक एक्सेप्शन था. नरेंद्र मोदी अमित शाह ने पसीना बहा करके उसको जीता. उस सरकार को बनाने की स्थितियां पैदा की और आज जब सत्ता सामने है, मुख्यमंत्री कुर्सी सामने है तो कब तक छोड़ेंगे? कार्यकर्ता खा जाएंगे आपको पटना में. लीडर्स आपको परेशान कर देंगे और सत्ता में भागीदारी चाहते हैं. वर्कर अब नहीं चाहता रिमोट कंट्रोल से चलाना नीतीश कुमार को चाहता हम डायरेक्ट कंट्रोल चाहते हैं इस सरकार के अंदर. डायरेक्ट डिसीजन मेकिंग प्रोसेस में पार्टिसिपेट करना चाहते हैं. इतना प्रेशर वहां से लोगों का आएगा कि आप उस प्रेशर को भाजपा आलाकमान प्रेशर को झेल नहीं पाएगा और देश में उनको नीतीश कुमार को नमस्ते कहना पड़ेगा कि बहुत हुआ. ठीक है. अब एक सदाशिता के नाते हमने सदाशिता दिखाई आपको उस समय. अब आप आप दिखाइए और कुर्सी भाजपा के मुख्यमंत्री के लिए छोड़िए और ये स्वाभाविक है ना नीतीश कुमार इतना रह चुके हैं पहले भी जो है और आज भाजपा का मौका है उनका सपना पूरा होता है कि एक और राज्य जो एक्सेप्शन था उसको उनको ठीक करना है तो मैं कन्विंस हूं कि बहुत जल्द मे बी ईयर और बिफोर जो है पटना विल हैव ए बीजेपी चीफ मिनिस्टर. 

    सवाल: सर इस बार बीजेपी ने रणनीति बदली इस बार जिद करके जेडीयू के बराबर 101 सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी इसके पीछे की मंशा क्या थी? 

    जवाब: मंशा मोराल बूस्टर सर फॉर बीजेपी वर्कर्स एंड लोकल लीडर्स और इसकी मंशा आई थी उस समय सबके दिमाग में क्लियर था भाजपा आलाकमान को भी क्लियर होगा यह अमित शाह के माइंड में भी क्लियर होगा उस समय कि विल हैव आवर ओन चीफ मिनिस्टर देयर तो दिमाग में ये बात थी उस समय उस दिमाग के परिपेक्ष में फिर ये बनाया गया कि भ बड़ा भाई छोटा भाई खत्म करो ये जुड़ो वहां का नया कांसेप्ट लाओ तो 1 100 1 करके बराबर रखा गया उनको ताकि वो जो एक नैतिक करेज होती है जो कहिए कि मोरल करेज साइकोलॉजिकल करज होती है कन्विक्शन होता है वो इस बार नीतीश कुमार के पास नहीं रहे वो भाजपा के पास रहना चाहिए. तो इसलिए उन्होंने एक एक से एक को बराबर रखा यह सोच के कि हम बराबर की टक्कर देंगे और मुख्यमंत्री अपना बनाएंगे. थोड़ी सी चूक हुई इस समय हालात के कारण से कि मुख्यमंत्री उनका नहीं बना. आज नहीं तो कल बनेगा. 

    सवाल: सर नीतीश कुमार जब सरकार बनाएंगे तो उनकी सरकार में अब कितने उप मुख्यमंत्री हो सकते हैं और पूरे मंत्रिमंडल का स्वरूप क्या हो सकता है? 

    जवाब: उपमुख्यमंत्री देखिए ऐसा है कि ये तो भाजपा तय करेगी. नरेंद्र मोदी अमित शाह तय करेंगे. कितने होंगे? ये फैसला नीतीश कुमार के हाथ में नहीं है अभी. लेकिन एक अपेरेंट दिखता है. सम्राट डिप्टी सीएम थे पहले कहते हैं उसने काम ठीक-ठाक किया है और जाति समीकरण भी उनके साथ है. तो उनका तो लगभग तय माना जा रहा है कि डिप्टी सीएम बनेंगे. बाकी एक दो और बन सकते हैं. लेकिन मेरा व्यक्तिगत मानना ये है कि कम से कम दो बनेंगे और हो सकता है तीन डिप्टी सीएम भी सत्ता के तालमेल में सत्ता के समीकरण में फॉरेशन में शायद बनाने पड़े. लेकिन फिलहाल तो केवल एक सम्राट का नाम सामने आ रहा है. बाकी लेट्स सी इन अदर टू थ्री डेज इट विल बी क्लियर. 

    सवाल: सर जिस तरीके से नीतीश कुमार को महिलाओं का समर्थन मिलता है, युवाओं का समर्थन मिलता है तो आपको नहीं लगता कि कैबिनेट में किसी एक उप मुख्यमंत्री के तौर पर कोई एक महिला भी होनी चाहिए?

    जवाब: ब्रिलियंट होना चाहिए ऐसा और निश्चित तौर पर महिलाओं का हक बनता है. कम से कम एक उप मुख्यमंत्री महिला वर्ग की तरफ से होना चाहिए. बाकी मेरिट पे जो है ना यह प्रस्ताव स्टैंड करता है कि वुमेन का जो मैसेसिव सपोर्ट हुआ है वुमेन पावर का उसे देखते हुए एक महिला उप मुख्यमंत्री जो है कैबिनेट में होनी चाहिए. 

    सवाल: सर इस बार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने लेने वाले नीतीश कुमार लगातार बिहार या फिर केंद्र की सत्ता में रहे हैं. तो ये जो सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट वाला फार्मूला है इसको कैसे लेकर साथ में नीतीश कुमार चल रहे हैं? 

    जवाब: नीतीश कुमार का एक ही फार्मूला है. सत्ता के साथ रहना, मुख्यमंत्री रहना है. यही है सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट वहां पे जिसमें वो सही साबित हुए हैं. 20 साल तक आप देखिए ना अपनी इच्छा से, अपने मन से, अपनी शर्तों पे इवन हर किसी को झुकाया उन्होंने. आप देख रहे हैं और अब जब कि लोग उम्मीद कर रहे थे कि भाजपा का मुख्यमंत्री होगा तो अल्टीमेटली भाजपा आलाकमान को भी एग्री करना पड़ा कि नो फॉर द टाइमिंग तो नीतीश कुमार ही बनेगा. आप कह सकते हैं ये. तो यह उनका सर द फिटेस्ट है. मतलब बारगेन जो है ना कर कुर्सी के लिए और अपना दल छोड़ के दूसरे दल के साथ जाकर के सरकार बनाने की स्थिति या सरकार बनाने की चेतावनी देना यही उनका सबसे बड़ा जो कहना चाहिए कि एक बारगेन पावर जो है उनका वो यही है उसके अंदर और इसमें अभी तक वो सफल साबित हुए हैं. 

    सवाल: सर क्या इस बात में भी कोई सच्चाई है कि नीतीश कुमार ने 2025 के चुनावों की बिसात 2022 में ही बिछाना शुरू कर दी थी? 

    जवाब: यस ही इज़ अ स्मार्ट पॉलिटिशियन. बहुत सुलझे हुए व्यक्ति हैं. वह दूरदर्शी हैं, विजनरी हैं. तो, उस समय क्या है कि वह चले गए थे आरजेडी में बीजेपी छोड़कर. क्योंकि उनको जातिगत गणना करवानी थी. आरजेडी जातिगत गणना पे मोहर लगा दी. जाति गणना का पहला असर यह हुआ कि जितनी छोटी-छोटी जातियां थी उनको और सब कास्ट में कन्वर्ट कर दिया. बैकवर्ड इकोनमिकली बैकवर्ड उन सबको और इतने टुकड़ों में बांध दिया कि उन जातियों में कंपटीशन हो गया राजनीति में आगे आने के लिए नेतृत्व करने के लिए तो कुल मिला के क्या हुआ बिहार की सत्ता इतनी जातियों में बंट गई कि भाजपा किसी एक हिंदू लीडर को या किसी बड़े लीडर को या दूसरी पार्टी किसी एक बड़े लीडर को सामने खड़ा नहीं कर सकी और सारा बिहार टुकड़ों में बंट गया वो सारे टुकड़े वो सारी जो सब कास्ट का क्लासिफिकेशन था वो नीतीश कुमार को सूट करता था और उसी का परिणाम है आज कि कोई एक बड़ा लीडर नीतीश कुमार के सामने खड़ा नहीं हो पाया तो ये आप सही है ये कहते हुए कि उन्होंने इसकी रचना जो है वो 2022 में ही कर दी थी 2025 के चुनाव की. 

    सवाल: सर एक बड़ा अहम सवाल मेरे ज़हन में आ रहा है. सवाल ये है कि नीतीश कुमार की अस्त-वस्था की जो उनका जो बीमार रहना, उनकी अस्वस्थता दूसरा ये कि बार-बार दल बदलना ये दो ऐसे फैक्टर है जिनकी चर्चा उनके अगेंस्ट में बार-बार चल रही है. लेकिन उसके बावजूद बिहार की जनता ने उनको इतना बड़ा मैंडेट दिया. कैसे?

    जवाब: लक डेस्टिनी कहना चाहिए. मतलब उनका भरोसा जो है ना आज बिहार के आम आदमी में कंप्लीट है. बिहार के लोगों का भावनात्मक संबंध वहां की ब्यूरोक्रेसी का संबंध नीतीश कुमार से जुड़ा हुआ है. बिहार झारखंड के जो आईएएस आईपीएस अफसर लगे हुए हैं दिल्ली में और राज्यों में लगे हुए हैं बाहर उनके मन में एक ही था कि नीतीश कुमार बनते हैं कि नहीं. सबके मन में एक ही बात है नीतीश कुमार बनना चाहिए. तो यह बात सही है कि बिहार में जो भी सरकार बनती है नीतीश कुमार के साथ ही बनती है. उसी के साथ ही खत्म होती है. वही सरकार बनाते हैं. वही सरकार को खत्म करते हैं. तो ये एक ही इज़ लकी चार जिसे कहना चाहिए. इतना सब होने के बावजूद भी ये जो दाग है दल बदल का उनके कपड़ों पे लग नहीं पाया. उनके दामन पे लग नहीं पाया. और आज भी बिहार में देखा जाए तो ही इज़ फेयरली पॉपुलर. चाहे वो सहानुभूति फैक्टर है चाहे कोई भी फैक्टर है. आप ये कहिए बट ही इज़ एक्सेप्टेबल. और जो जनादेश आया है उस पर भी कहीं ना कहीं उनकी छाप दिखाई देती है और इसी तथ्य को आलाकमान ने स्वीकार किया और मेंटली शायद कंप्रोमाइज किया होगा चलो एक बार तो बनाते हैं फिर का फिर देखेंगे. 

    सवाल: सर नीतीश कुमार आज बिहार में लोकप्रियता और मान सम्मान के अपने सर्वोच्च पायदान पर हैं. क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए और अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी सत्ता या तो बीजेपी या फिर जेडीयू के किसी नौजवान को सौंप देनी चाहिए. 

    जवाब: अबब्सोलटली लेकिन क्या करें दिल है कि मानता नहीं मन करता नहीं कि मुख्यमंत्री कुर्सी छोड़े वरना लोकतंत्र की सुंदरता लोकतंत्र की डिसेंसी यही थी कि भाजपा सिंगल लार्जेस्ट है उनको आगे बढ़कर ऑफर करना चाहिए था कि पहले आप वो मना करते तब आप बनते तो उन्होंने तो ऑफर ही नहीं किया जहां तक मेरी जानकारी है और वो बहुत मतलब इससे कंसर्न है पिछले तीन दिनों से बहुत कोशिश है कि कहीं मुख्यमंत्री का कार्ड कहीं और नहीं चला जाए. कहीं कोई ऐसा डेवलपमेंट नहीं हो जाए. तो इसलिए विधायक दल की बैठक भी मुख्यमंत्री निवास पे ही रखी है. शायद दैट वे जो है जी. तो ये जो है ना उनके मन में इस तरह का भाव है जिसे कहना चाहिए कि भाई लोकतंत्र के हिसाब से उनको आगे बढ़ के ऑफर करना चाहिए था. उन्होंने नहीं किया. ये मौका था उनके जीवन में कि उनकी जो इमेज है आगे बढ़ के कह सकते थे कि मैंने बहुत वर्षों तक सेवा की बिहार की. 20 वर्ष मुख्यमंत्री रहा. सात वर्ष केंद्रीय सत्ता में रहा. अब जो है मेरा आपको प्रणाम है. मेरी शुभकामनाएं हैं और बिहार आगे बढ़े. यह मेरी मनोकामना है. इसके साथ में वो नेतृत्व जो है चाहे जेडीयू के किसी आदमी को ही देते. ठीक है? या भाजपा किसी आदमी को देते उनकी सहमति से तो बड़ा अच्छा लगता और मुझे पूरा भरोसा है कि अगर नीतीश कुमार ऐसा करते तो नरेंद्र मोदी कर ठाकरे रत्न या भारत रत्न दे सकते थे. जी. उन्होंने ये अवसर खोया है. लेट अस सी कब तक वो मुख्यमंत्री हैं. ईश्वर उनको लंबी उम्र दे. 

    सवाल: सर आई थिंक एवरीबडी मस्ट बी फेड अप ऑफ दिस फैक्ट व्हाई बिहार कैन नॉट रिटायर नीतीश कुमार एंड व्हाई बीजेपी कैन नॉट रिप्लेस नीतीश कुमार? 

    जवाब: सबकी मजबूरियां उनकी लोकप्रियता जो है आप देखिए कि इस समय अगर आप इट इज टू अर्ली मैंने कहा ना आपसे रिटायर करना चाहता है बिहार बिहार रिटायर नहीं कर सकता जनमत जो है आज भी महिला वर्ग का वोट हुआ है नरेंद्र मोदी टावरिंग है लेकिन नंबर टू पे आते हैं तो आपको सामने नीतीश वर्ग खड़े हुए दिखाई देते तो अभी क्या पिटिकल इक्वेशन को डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता. इसलिए बिहार उसको रिटायर नहीं कर सकता. 

    सवाल: सर इससे जुड़ा एक सवाल है कि क्या उम्र के इस पड़ाव में नीतीश कुमार ने बिहार की सियासत में अपना एक उत्तराधिकारी चुन लिया है? 

    जवाब: ये बड़ी विचित्र स्थिति है. लगता है बिहार की स्थिति जेडीयू की स्थिति भी शायद बीजेडी जो उड़ीसा में है जो जनता दल वैसी होने वाली है. वहां भी नवीन पटनायक ने लंबे समय तक अपना उत्तराधिकारी नहीं चुना. तो पार्टी आज नेतृत्व विहीन है. नीतीश कुमार के बेटे को नेतृत्व सौंपने के लिए कई बार लोगों ने सुझाव दिया. पार्टी के लोगों ने कहा वो माने नहीं. अब दो कारण होते हैं ना एक तो मुख्यमंत्री क्या बेटे को राजनीति में डालना नहीं चाहता. अब नीतीश कुमार का लड़का मेरे ख्याल से शायद अराउंड 40 इयर्स और सो है निशांत. तो अब पूछा मैंने किसी से भी वो क्या कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि वो नीतीश कुमार के भांजे हैं कोई मनीष तो आईटी हेड हैं उनके. तो उनके यहां वो काम सीख रहे हैं. राजनीति की ट्रेनिंग ले रहे हैं. दैट वे जो है लेकिन नीतीश कुमार अभी भी इस मोड़ पे भी उनको अपना उत्तराधिकारी घोषित करने को तैयार नहीं है. पिछली बार मैंने आपसे कहा था दो सरकारी गाड़ी चली गई थी एक बार उनके बेटे को लेने गई तो लोग सस्पेंड हो गए थे. तो वो बहुत कॉशसली दूरी मेंटेन कर रहे हैं. इसलिए कि मेरे परिवारवाद का चार्ज नहीं लगे. लेकिन दूसरा पहलू है कि सत्ता छोड़ना नहीं चाहते. इसलिए क्या है मुझे लगता नहीं कि नीतीश कुमार के पास कोई सक्सेसर कोई प्लान है. सक्सेशन प्लान है कोई नीतीश कुमार के पास. ऐसा दूर तक दिखाई नहीं देता है. 

    सवाल: अगर नीतीश कुमार अगर आज रिटायरमेंट ले लेते तो उनके पास क्या-क्या विकल्प मौजूद है? 

    जवाब: विकल्प बहुत है राजनीति में. राज्यसभा में चले जाए उदाहरण के तौर पे दो बंगले हो जाएंगे. एक पटना होगा एक यहां पे होगा. बिहार के हीरो तो है ही वो. आप देखिए ना किसी एक समय में वो मतलब नीतीश उसके लालू प्रसाद के सबसे क्लोज एडवाइजर थे किसी एक जमाने में. जी. तो उनमें क्षमता है अपने आप को फ्लैक्सिबल करने की. दैट इज़ जो है और बिहार में जाएंगे तो हीरो कहलाएंगे. जैसे कहते हैं ना फ्रेंच फ्लोसर गाइड की भूमिका में आ जाएंगे पटना में. थोड़ा मन लगेगा तो दिल्ली आ जाएंगे यहां. अमित शाह के यहां चाय पीने चले जाएंगे. अच्छा समय बीतेगा तो विकल्प तो बहुत हैं. मन तो बने हैं सत्ता छोड़ने का. वो बड़ा मुश्किल काम है हर किसी के लिए. नीतीश कुमार इज नो मोर एक्सेप्शन. 

    सवाल: सर ये कितनी हैरानी की बात है कि 20 सालों का लंबा शासनकाल नीतीश कुमार का लेकिन उसके बावजूद भी ऐसा कोई मुद्दा महागठबंधन नहीं ढूंढ पाया. एंटी एस्टैब्लिशमेंट फैक्टर प्लान गठबंधन के पास में नहीं रहा और ये एक बड़ा फेलियर उनके लिए साबित हुआ. आप इसे कैसे देखते हैं? 

    जवाब: सही कह रहे हैं आप फेलर तो है ही. राहुल गांधी और तेजस्वी आपस में लड़ते रहेंगे. कोई स्ट्रेटजी नहीं बनाएंगे तो मुद्दे कहां से ढूंढेंगे बैठ के? और फिर दूसरी सबसे बड़ी बात ये है ना कि ऐसी हालांकि नीतीश कुमार कैंप का दावा है कि ये प्रो इनकंबेंसी थी. इस बार जो वोट इतना पड़ा है. लेकिन चलो मैं कहता हूं नेगेटिव थी. ये तो नेगेटिव में इतनी नेगेटिव नहीं लोगों की भावना कि नीतीश कुमार को उखाड़ फेंको. 20 साल हो गए थे. लोग डूब गए थे. थकने लग गए थोड़ा सा. लेकिन क्या हुआ यह सब उसमें ये आ गया सारा जो आपके सुविधाएं वेलफेयर स्कीम्स आ गई सारी की सारी जो है वो पैसा आ गया लोगों के अकाउंट में. एक परिवार ने किसी ने बताया मुझे बिहार के एक आदमी ने कि उसके परिवार में चार महिलाएं थी तो ₹400 आ गए. उसके परिवार इमेजिन बिहार में एक गरीब परिवार में ₹400 तो जो एंटी सेंटीमेंट था वो थोड़ा बहुत वो उससे जो है खत्म हो गया. दैट वे जो है और एक बड़ा अच्छा मैंने कहीं पर पढ़ा किसी ने लिखा कि ये सब तो ऐसे चलता रहेगा तो उसने कहा कि सदियों से कोई ना कोई अभिशाप जो है बिहार का पीछा कर रहा है. वो धरती जिस क्रांतियों को जन्म दिया वो धरती आज खुशहाल नहीं है. बिहार के लोग राजनीति में सबसे आगे हैं. लेकिन बाकी सब जगह ऐसा लगता है डेवलपमेंट में कि बिहार ठहर गया है. एक तो चुनौती ये है नई सरकार के सामने डबल इंजन सरकार के सामने और खासकर प्राइम मिनिस्टर के लिए यह देखने का एक विषय है जो निश्चित तौर पे ध्यान होगा वहां पे जो है और है ये कि सबसे बड़ा इसमें जो एजेंडा है डबल इंजन सरकार का वो बिहार को एक डेवलप्ड स्टेट बनाने का है एक इंडस्ट्री प्रोन स्टेट बनाने का है जिसे कहते हैं तो वो सब होगा लेकिन अभी तक जो एंटी गवर्नमेंट सेंटीमेंट की बात आप कर रहे हैं वो ज्यादा बन नहीं पाया. 

    सवाल: सर बिहार में इस बार रिकॉर्ड मत मतदान हुआ है. क्या है इसका मैसेज? 

    जवाब: इसका मैसेज वुमेन पावर आप देखिए मतलब 2.51 करोड़ मैंने देखा वुमेन और 2.47 करोड़ मेल जो है तो 4 सवा5 लाख का डिफरेंस है महिलाओं का जो कि वैसे गिनती अगर करते हैं तो वुमेन के जो वोट है उसमें वोटर लिस्ट में वो 42 लाख महिला कम है पुरुषों की तुलना में. तो वुमेन पावर है मैसिव वोटिंग इन फेवर ऑफ़ नरेंद्र मोदी नीतीश कुमार बाय वुमेन जो है सब कारण है एक कारण और हो सकता है कि 25% मतदाता ऐसे हैं जो गैर दलित है बिहार में वो वोटिंग डालते हैं ना विधानसभा में ना उसमें बहुत कम रुचि लेते हैं वो उनके माइंड में ये है कि ये तो बैकवर्ड स्टेट है यहां क्या करना है इस बार शायद वोट डाला है उन्होंने और भी कई सप्लीमेंट्री कारण हो सकते हैं लेकिन मेजर जो कारण है वो यह है वुमेन फैक्टर और नरेंद्र मोदी का आकर्षण उनकी लीडरशिप उनकी क्राउड पोलिंग कैपेसिटी जी ये सब है.

    सवाल: सर मैंने सुना है कि पटना में मतदान से पहले कुछ अफवाहें उड़ी थी और जिसकी वजह से मतदानसदी बढ़ा और दूसरा जो प्रवासी बिहारी थे छठ मनाने गए थे वो रुक गए इसकी वजह से मतदान बढ़ा. 

    जवाब: ये सही है. अफवाहएं मैंने सुनी थी. एक अफवाह तो ये चलाई गई थी उस समय आरजेडी ने कि नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी ने जो ₹10,000 डाले हैं. यह कर्जा है. यह अनुदान नहीं है. सहायता नहीं है. और जैसे सरकार ये खत्म होगी हम लोग आएंगे तो वापस हो जाएगा. उस जैसे आया अकाउंट उसी अकाउंट से वापस चला जाएगा. देयर इज़ अ फ्रॉड प्लेड बाय नीतीश कुमार एंड कंपनी. ऐसा प्रचार उन्होंने महिलाओं में किया. तो लोग डरे थोड़ा सा कि भागो वोट करो जल्दी से कहीं ऐसा नहीं हो जाए. मतदान बढ़ा. फिर दूसरा कुछ ये वहां पे हुआ कि भाई इस बार जो चक्कर है एसआईआर का कि जो लोग वोट नहीं डाले उनका नाम हमेशा के लिए वोटर लिस्ट से कट जाएगा. उनकी नागरिकता खत्म हो जाएगी. पासपोर्ट नहीं बनेगा. तो जितने भी लोग बाहर से भी आए हुए थे या और लोग जो वोट नहीं डालते थे वो एक्टिव हुए सारे के सारे इस बार जो है और 60 70 लाख वोट कटने के बाद एक्सरसाइज के बाद भी वोट बढ़ाइए इसका मतलब है कि वोटिंग का परसेंटेज लोगों की इच्छा थी कि यार वोट डालो और आकर्षण फिर मैंने कहा नरेंद्र मोदी तो एक फैक्टर है ही कहीं कि नीतीश कुमार भी फैक्टर है उसके साथ-साथ तो इन्हीं कारणों से यह हुआ. 

    सवाल: सर बिहार की एक महिला वोटर को मैंने कहते हुए सुना कि मैं नहीं जानती कांग्रेस को. मैं नहीं जानती बीजेपी को. मैं मोदी को जानती हूं. मैं मोदी को वोट देकर आई हूं. यह किस तरीके का भाव है वोट? 

    जवाब: ग्राउंड पर ये फिनोमिना बिलकुल करेक्ट है. एक महिला नहीं सैकड़ों लोग आपको महिलाएं पुरुष भी ऐसे मिल जाएंगे. वोट कांडा नरेंद्र मोदी वोट देगा. पार्टी कौन सी पार्टी का पता नहीं है. पता है फूल का साइन था. तो नरेंद्र मोदी और बीजेपी इस तरह से हो गए. बिल्कुल जैसे एक सिक्के के दो पहलू भाजपा में नरेंद्र मोदी के अलावा जो वोट डालने आदमी जाता है शायद ही किसी का नाम जानता हो. और लोकल उम्मीदवार का भी शायद नहीं जो है जो रूरल बेल्ट है मतलब है कि लाखों की संख्या में देश में ऐसे वोटर होंगे आपको पुरुष महिलाएं जो नरेंद्र मोदी का चेहरा देख रहे हैं वहां जाके भी कहते हैं कि नरेंद्र मोदी को वोट डालना है तो मतदाना अधिकारी भी देखता है उनको बोलूं कि नहीं बोलूं लेकिन इशारा कर देता है अब ये फूल है अगर तुम वहां डालना चाहते हो तो और बटन दबा देते हैं तो ये फिनोमिना है बिल्कुल ये नरेंद्र मोदी के साथ है फिनोमिना ये वेरी इंटरेस्टिंग. 

    सवाल: महिलाओं के लिए कहा गया बिहार में कि नीतीश कुमार के प्रति बहुत एक भाव है थैंक यू का. लेकिन यह जो वोट पड़े हैं कमल को महिलाओं के यह महिलाओं के नीतीश कुमार को पड़े हैं या नरेंद्र मोदी को शिफ्ट हो गए हैं. महिलाओं के वोट? 

    जवाब: ये इनिशियली नीतीश कुमार लाए था. लेकिन ग्रेजुअली सारे के सारे ये मोस्ट ऑफ एट जो है कहना चाहिए नरेंद्र मोदी को शिफ्ट हो गए हैं. उसका कारण है एक महिला के सामने दो तस्वीर आप रखते हैं पटना के अंदर जाकर के. नीतीश और नरेंद्र मोदी और कहते हैं किसको वोट दोगे? 100% उसका प्रेफरेंस होगा. आप मान लीजिए 100 में से 80% लोगों का प्रेफरेंस होगा कि नरेंद्र मोदी के चेहरे पे वोट देंगे वो. जिसे कहते हैं ना जाने अनजाने में सही या बिना किसी डिजाइन के ये नीतीश कुमार का जो महिला कार्ड था आज तो नरेंद्र मोदी वो शिफ्ट हो गया है. इसमें कोई संदेह नहीं है. 

    सवाल: सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ₹10,00 का जो नकद सहायता एक वुमेन वेलफेयर जो कार्ड था इसकी तुलना में तेजस्वी यादव ने ₹00 की घोषणा की. लेकिन फिर भी महिलाओं ने यह दूसरा विकल्प अपने लिए क्यों चुना? 

    जवाब: लैक ऑफ क्रेडिबिलिटी, लैक ऑफ ट्रस्ट नरेंद्र मोदी के यहां रिवर्स है. बिल्कुल 100% मोदी की गारंटी. 100% मोदी का चेहरा, मोदी का ट्रस्ट टू सम एक्सटेंट और थोड़ा बहुत नीतीश कुमार का मान लीजिए. व्हाइल कंपेयरिंग बिटवीन द टू नरेंद्र मोदी एंड तेजस्वी पीपल वोटेड फॉर मोदी. महिलाएं प्रेफर्ड फॉर नरेंद्र मोदी. तो ट्रस्ट का जो क्राइसिस था, क्रेडिबिलिटी का क्राइसिस था वही मेन कारण था कि लोगों ने इस भरोसा नहीं किया. 3000 वाली बात पर. 

    सवाल: सर प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार के वुमन एमावरमेंट वाले कार्ड के अलावा प्रधानमंत्री मोदी के पर्सनालिटी और लीडरशिप में ऐसा क्या है जिसने बिहार चुनाव की दिशा ही बदल दी? 

    जवाब: ये तो अनुसंधान का विषय है. सच में नरेंद्र मोदी जो बोलते हैं वो नारा बन जाता है. वो स्लोगन बन जाता है. अभी कहा उन्होंने गर्दा उड़ा दिया तो देखिए देसी शो कर रहे हैं इसके ऊपर. और थोड़े समय में आप देखेंगे देश में अलग-अलग चुनाव में अलग-अलग में अब वो बंगाल में जा गर्दा उड़ाने वाले हैं. एक दैविक शक्ति है, देविक चमत्कार है, देविक वरदान है. उनकी वाणी में सरस्वती बैठ जाती है. जो बोलते हैं तो वो सारी हवा का रुख मोड़ देते हैं. उधर दिशा मोड़ देते हैं. एक बार चुनाव में कहीं वो चुनाव भेट हो जाती है. तो ये जो शक्ति है उनकी प्रभावित करने की उनका जो भाषण देने की क्षमता है या जो वाणी है उनकी जो है वो अद्भुत है. और दूसरा क्या है कि एक पर्सनालिटी ऐसी बन गई है जो मैंने आपसे कहा ना कि अनपढ़ लोग उत्तर भारत को छोड़िए. आप तो नॉर्थ ईस्ट में रहने वाले लोग और लोग नरेंद्र मोदी का नाम जरूर जानते हैं. और कोई जानता है कि नहीं? तो है कुछ उसके व्यक्तित्व में ऐसा जैसे कि गॉड गिफ्टेड ऐसा है कि वो कारण बनता है चुनाव के अंदर जो है और ये महिला वोट तो एक जगह पे है और अनुदान 10,000 का एक जगह पे है आप अपनी जगह है लेकिन नरेंद्र मोदी का जो चार है जो आकर्षण है उनकी पर्सनालिटी का जो क्रेज है यू कहिए वो इसका कारण है और वो क्रेज हमेशा रहेगा इसलिए मुझे किसी ने कहा कि जो वोट हुआ है इट इज ए नॉट ओनली अ वोट इट इज अ वोट ऑफ़ ट्रस्ट फॉर नरेंद्र मोदी एंड टू सम एक्स नीतीश कुमार आगे जाकर के जो तो ये नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व ऐसा है. ये इज़ अ सब्जेक्ट ऑफ मैंने आपसे कहा ना सब्जेक्ट ऑफ रिसर्च कि कैसे-कैसे इतना पॉपुलर कैसे हैं और हर जगह तो जाते नहीं है वो. दिल्ली में बैठते हैं. ट्रेवल करते हैं पर एक सीमा तक ट्रेवल करते हैं ना. वो इलाके जहां कभी गए नहीं ट्रेवल नहीं कर पाए. अभी बहुत इंटेंसिवली ट्रेवल नहीं किया. वहां भी महिलाएं पुरुष नरेंद्र मोदी के नाम के दीवाने हैं. ये गॉड गिफ्टेड. 

    सवाल: सर क्योंकि महिला वोटर्स की इतनी बात हो रही है तो महिला वोटर्स को लेकर ही एक सवाल मैं आपसे पूछना चाह रही हूं क्योंकि यह चुनाव हो चाहे कोई भी चुनाव हो. महिला वोटर्स बहुत इंपॉर्टेंट हो चुकी हैं. और इन्हीं महिला वोटर्स को लेकर एक पटकथा लिखी गई. यह पटकथा थी आपके दो भाई नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार आपके लिए काम कर रहे हैं. ये जो केमिस्ट्री थी इसने किस तरह काम किया? कितना इफेक्टिवली काम किया? 

    जवाब: बहुत अच्छा काम किया. एक तो यूनिटी का मैसेज गया इसके अंदर कि नरेंद्र मोदी नीतीश कुमार एक हैं. तो ग्रास रूट लेवल पर क्या जो लोग अलग-अलग चल रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे कि हम एक दूसरे का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं करेंगे या लोकल लीडर्स अपने हिसाब से अपनी जो स्ट्रेटजी बनाते हैं वो सब धुल गया. जो एक माहौल बनाने की कोशिश थी कि नहीं नीतीश कुमार लाया है इसको तो महिला वोट को और ये किया है. एक कैंप काम कर रहा था पटना में इस तरह से जो है वो धुल गया. नरेंद्र मोदी ने बड़प्पन दिखा. आगे बढ़ के कह दिया कि नरेंद्र नीतीश की जोड़ी आप बताओ क्या है? कोई विकल्प ही नहीं इसके आगे. उन्होंने खुद ही नीतीश कुमार को स्वीकार कर लिया कि हां नीतीश मेरे साथ है. उसको रिकॉग्नाइज कर लिया. वो एक तरह से कहना चाहिए तो एक डिग्निटी हो गई. उसके अंदर भी जो है तो जेडीयू के जो लोग ये प्रचार करना चाहते थे कि महिला कार्ड हमारा है. वो धुल गया वो धराशाई हो गया. नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ के कहा कि यस वी आर टुगेदर एंड वी विल वर्क फॉर द कॉज ऑफ़ द वुमेन. दिस इज़ ऑल. 

    सवाल: आखिर ऐसा क्या रहा कि तेजस्वी यादव ने जो बड़ा बड़ा वादा किया था कि हर घर नौकरी उस पर जनता ने भरोसा क्यों नहीं किया? 

    जवाब: अगेन द सेम लैक ऑफ क्रेडिबिलिटी, लैक ऑफ ट्रस्ट और वादा कुछ ऐसा था जो गले नहीं उतरता था आसानी से. 23 लाख कर्मचारी हैं अभी. आप कितने बढ़ा दोगे? 23 लाख को 23 लाख को 50 लाख कर दोगे इन अ वे और क्या करोगे इससे ज्यादा? उसने कहा नहीं 2 करोड़ 75 लाख परिवार हैं वहां पे. हर परिवार को एक आदमी को नौकरी देंगे. 6 लाख करोड़ का बिल है साल का. आपकी इकॉनमी है सवा लाख करोड़ की कहां से होगा बिल्कुल अपेरेंटली जो है ये तो गले नहीं उतरा वो मतलब वो वही फ्लैट हो गया जिसे कहना चाहिए इट क्रैश ऑन रनवे बिफोर इट्स टेक ऑफ ये वाला जो है तो खत्म हो गया ये लोगों के गले नहीं उतरा. 

    सवाल: सर एट दिस पॉइंट लुकिंग एट द इंटरनेशनल पर्सपेक्टिव आपको लगता है कि नरेंद्र मोदी की तरह दुनिया में कोई और ऐसा लीडर है जो किसी भी स्तर का चुनाव भी सके जितवा भी सके अपने चेहरे पर. 

    जवाब: वेरी इंटरेस्टिंग यह तो मैंने सोचा नहीं पर यह फैक्ट है यह बात तो कोई नहीं है. एक बहुत ट्रंप बहुत अपनी दादागिरी बड़ा अहंकार में डूबे हुए थे. वो मेयर का चुनाव नहीं जीता सके. अपने नाक के नीचे वहां पे न्यूयॉर्क में दो और जगह आसपास चुनाव नहीं जीता सके. उनकी पार्टी को हार कम देखना पड़ा. और ये नरेंद्र मोदी ने देखिए ग्राम पंचायत से ले एमएलए तक एमपी तक और मुख्यमंत्री तक सब उनका वो फोटो लगा घूमते हैं ना सब लोग हैं और वोट मांगते हैं जाकर के तो पूरे कंट्री के अंदर एक चेहरा एक पार्टी का ऐसा शायद संसार में पहला देश है जो कि सरपंच से लेके मुख्यमंत्री तक का चुनाव प्रधानमंत्री तक का चुनाव जिसे कहना चाहिए वो होता है इस तरह से जो है तो ये बिल्कुल सच है इसका दूसरा पहलू ये है कि लोकल लीडरशिप जो है वो इरिलेवेंट हो गई है बिल्कुल कोई रोल ही नहीं किसी नरेंद्र मोदी जाते हैं अमित शाह जाते हैं स्लीप करते हैं इलेक्शन को कोई उनका रोल नहीं है तो वास्तव में हमें मानना पड़ेगा कुछ लोग कहते थे ना केवल दो लोग पार्टी चला रहे हैं तो फैक्ट है ये दो लोग पार्टी चला नहीं रहे हैं दो लोग संघर्ष कर रहे हैं मेहनत कर रहे हैं रणनीति बना रहे हैं चुनाव में खड़े हो रहे हैं चुनाव को जिता रहे हैं उसका बेनिफिट आप सबको मिल रहा है दो लोगों का तो विचित्र स्थिति है यह भारत पहला देश है और भारत में पहली बार हुआ है इस तरह से कि नरेंद्र मोदी पॉलिसी बनाते हैं विज़न तय करते हमेशा जाते हैं फील्ड के अंदर उसको एग्जीक्यूट करते हैं जाकर के एक सेनापति की तरह उसको लागू करते हैं पार्टी चुनाव जीत जाती है और अल्टीमेट बेनिफिशरी कौन है इसका इसका बेनिफिशरी वो सारे सरपंच और सारे एमएलए वो सारे एमपी वो सारे मंत्री हैं वो आरएसएस है और मेहनत और इस तरह अगर आप इस चुनाव को उठा के देखेंगे 10 20% मेहनत दो चार लोगों को छोड़ दीजिए चुनाव में गए थे आदित्यनाथ योगी ने अच्छा काम किया इन्ह ठीक है ना और बाकी थोड़ा बहुत नड्डा जी गए कुछ लोग और गए राजनाथ सिंह गए वहां पे लेकिन ब्रोली अगर आप इन ब्रॉडर पर्सेक्टिव देखते हैं कि बिहार का चुनाव जो है ना उसको अगर कहा जाए फ्रैंकली तो दो व्यक्तियों की विक्ट्री है और इससे एक पता और लगता है कि लोकल लीडरशिप जो है अब भाई जो आदेश आते हैं उससे चलो जो मैंडेट है पार्टी का उसको लागू करो लोकल पंचायती मत करो डोंट वेस्ट योर टाइम तुम्हें टिकट देने का तुम्हें जिताने की जिम्मेदारी अब दिल्ली ने ले रखी है जो संसार में कोई ऐसा देश नहीं होगा दूसरा जो है दे आर लकी..

    सवाल: पश्चिमी चंपारण प्रधानमंत्री मोदी की वहां पर वो आखिरी चुनावी जनसभा थी पीएम मोदी ने मंच से कहा कि अब शपथ के दिन ही वापस लौटूंगा. ये जो कॉन्फिडेंस है ये कहां से आता है इतना कॉन्फिडेंस? 

    जवाब: दैविक शक्ति, मेहनत, परिश्रम, करज, कन्विक्शन, कमिटमेंट वहां से आता है और वास्तव में कमाल है. अब देखो 20 तारीख को शपथ हो रही है और नरेंद्र मोदी जा रहे हैं. मिरेकल तो उनके जी ने बहुत मिरेकल लिखे हैं. एक मिरेकल ये भी है जो कहते हैं वो होता है और उनका कॉन्फिडेंस मानना पड़ेगा. उस दिन गए थे उन्होंने कहा और वो वो सच निकला. अब वो जा रहे हैं शपथ में जो है नाइस टू सी.. 

    सवाल: सर प्रधानमंत्री मोदी ने जब पटना में रोड शो किया था जबरदस्त भीड़ थी वहां पे लेकिन नीतीश कुमार नहीं दिखे क्या ये महज संयोग था? 

    जवाब: थोड़ी बहुत एोगेंस भी हो सकती है और थोड़ी बहुत एक्चुअल बोनाफाइड कारण भी हो सकता है कहा ये गया कि एक दूसरी जगह पे उनकी पहले से इलेक्शन मीटिंग थी दो दिन का दौरा था एक दिन का हो गया था उसको उन्होंने एक्सटेंड किया हुआ था एस पर शेड्यूल था इसलिए नहीं आ पाए लेकिन नरेंद्र मोदी किसी के मोहताज नहीं है ना उनके एब्सेंस से मीटिंग हुई लाखों लोग आए पटना के अंदर अंदर आपने देखा होगा वहां उसके अंदर जो है तो आते बहुत अच्छी बात थी नहीं आए तो कोई ऐसी बात नहीं है इसमें कोई ज्यादा इसको रीड करने की कोई आवश्यकता नहीं है और नीतीश कुमार सोचते होंगे कि मैं नहीं जाऊंगा बाय द वे भी तो मीटिंग वाज़ सुपरहिट लेकिन हम ये मान लेते हैं कि जेनुइनली नीतीश कुमार बिजी थे किसी दूसरी मीटिंग में इसलिए वो नहीं जा पाए उनको साधुवाद और पटना की जनता को साधुवाद जो लाखों की संख्या में वहां जुटी. 

    सवाल: सर बिहार के चुनाव में विपक्षी पार्टियों के एमवाई फैक्टर का जिक्र बहुत हुआ करता था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस एमवाई फैक्टर को ही बदल दिया. बदल दिया वुमेन और यूथ के साथ में. यह कैसे वो कर पाए? 

    जवाब: बहुत मुश्किल काम था ये आरजेडी से मुस्लिम यादव को अलग करना. और आज मैंने पढ़ा कि जो रिजल्ट आया है इलेक्शन का इस बार इसमें जो यादव के वोट है यादव की जो सीट्स हैं वो बीजेपी के पास ज्यादा हैं. सरप्राइजिंगली. तो इस बात का प्रमाण है ये कि नरेंद्र मोदी है सक्सेसफुली रिप्लेस्ड दैट कार्ड विद दिस कार्ड जो है इट इज प्रूव नाउ एंड इट्स गोइंग टू हैव अ लॉन्ग रीचिंग फॉर रीचिंग इम्लिकेशन इन द कमिंग इक्शंस आल्सो दैट्स ऑल. 

    सवाल: सर बिहार में अगर चुनाव हो और जाति की बात ना हो तो ऐसा हो ही नहीं सकता क्या ये सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कास्ट फैक्टर को लाभार्थी फैक्टर में बदल दिया? 

    जवाब: ये फैक्ट है बात ये जो है लाभार्थी के अलगसी बना दी उन्होंने हर स्टेट के अंदर बिहार में बना दी है तो महिलाएं जो वोट डालने गई तो धर्म को संस्कृति धर्म और कास्ट इन सब को भूल गई वो अक्रॉस कास्ट हट के उन्होंने वोट डाला. अक्रॉस जो रिलीजियस लॉयल्टी है उससे हटकर उन्होंने कोर्ट डाला. वोट डाला जो है इस तरह से क्या हुआ? ऑटोमेटिकली इन द प्रोसेस जो है कास्ट फैक्टर खत्म हो गया एक तरह से देखा जाए तो और बाकी बिहार में कास्ट तो है अपनी जगह. अभी अदिति गई थी तो बता रही थी कि वहां एक महिला ने इसने पूछा कि राहुल गांधी को वोट दोगे तो उसने कहा मैं तो जानती नहीं उनकी कास्ट क्या है? तो इसने कहा राहुल गांधी है. उसने कहा नहीं जैसे कास्ट नहीं बताओगे मैं वोट नहीं दूंगी उसको. तो इसका मतलब है कि बिहार में कास्ट तो रगरग में है ना लेकिन इस बार ऐसा हुआ है कि एक्सेप्शन हुआ है 70 वर्ष पुरान जो कास्ट गार्ड था वो धराशाई हो गया नरेंद्र मोदी के इस उससे सारा जो नरेंद्र मोदी अमित शाह नीतीश कुमार आप कह दीजिए एज अ टीम जो है ये उसमें वो धराशाई हो गया ये फैक्ट है. 

    सवाल: सर बिहार चुनावों से पहले बहुत जबरदस्त इलेक्शन कैंपेन देखने को मिला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत भारत रत्न करपुरी ठाकुर के ग्राम करपुरी ग्राम से की आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में क्या था? 

    जवाब: इमोशनल कार्ड था और कर ठाकुर एक सम्मान का भाव था कि चलो चुनाव है उस जा रहे हैं तो उनको भी नमन करेंगे. उनके परिवार को नमन करेंगे और आप देखिए उन्होंने कहा कि उनके आशीर्वाद से आज यहां पे जो पूर्व राष्ट्रपति हैं रामनाथ जी वो भी थे नीतीश कुमार थे खुद नरेंद्र मोदी थे और उन्होंने कहा कि उनको भारत रत्न जो हमने दिया है ये सम्मान है उनका देश का सम्मान है. दैट वे जो है और उनकी पोती वहां पे थी वहां पे तो हैरान थी. उसने बाद में मीडिया से कहा मैंने कभी सोचा नहीं था प्रधानमंत्री मेरे घर पे आएंगे. दैट वे इट वाज़ अ इमोशनल और एक कहना चाहिए कि रेस्पेक्ट देने का कार्ड था जिससे उस पूरे इलाके के अंदर एक मैसेज गया कि ही इज़ अ प्राइम मिनिस्टर हु इज सो कंसर्न हु इज़ सो एट द ग्रास रूट लेवल गुड मैसेजिंग.. 

    सवाल: सर मेनिफेस्टो में सीतामणि का जिक्र हुआ और उसके बाद फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीतामणि में जो चुनावी रैली की उसका क्यों और क्या पॉलिटिकल रेलेवेंस लगा आपको सर? 
    जवाब: रेलेवेंस रिलीजियस है. आप कह ध्रुवीकरण नहीं कहूंगा मैं. इसको रिलीजियस है. राम को सीता से जोड़ना, अयोध्या को सीतामढ़ी से जोड़ना वहां एक बहुत बड़ा मंदिर बन रहा है. 10 महीने पहले अमित शाह गए थे वहां 7 800 करोड़ का बन रहा है. उन्होंने पूजा-वजा कराई वहां बैठकर के ये पूरा बनेगा. तो अब एक बिहार में भी अयोध्या बनेगी. इन्हें भी सीतामढ़ी में जो है. तो सारे इलाके में एक मैसेज जाता है इमोशनल रिलीजियस. इसलिए गए थे वहां पे. मैसेजिंग था और खुद का भी था कि चलो एक सीता की जन्म स्थली है. तो एक प्रणाम करके आते हैं वहां चलके. तो जाके आए वहां पर..

    सवाल: सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मेरा बूथ सबसे मजबूत कैंपेन इन चुनाव में गेम चेंजर बना आप किस तरह से इसको देखते हैं? 

    जवाब: ये फैक्ट है ये तो ग्रास रूट वर्किंग की बात है ना इसके रिजल्ट सामने दिखते हैं उसमें जो है क्योंकि जो बूथ मैनेजमेंट है एक बहुत बड़ी बात है जिसमें नरेंद्र मोदी अमित शाह जेपी नड्डा ये सभी लोग काम करते रहे हैं ये अब मैंने सुना कि उन्होंने जो है ना वीसी से तीन चार बार कॉन्फ्रेंसेस करी लाखों कार्यकर्ताओं के साथ मेरा वोट सबसे मजबूत जो है दैट वे और मैसेज गया कि प्राइम मिनिस्टर इस सो कंसर्न. कितनी बड़ी बात है. गांव के एक कार्यकर्ता से एक वोटर से प्राइम मिनिस्टर का डायरेक्ट संपर्क और फिर उन्हें उत्साहित करना कि मेरा बूथ सबसे मजबूत ए नाइस एक्सपेरिमेंट इन बीजेपी एंड दैट हैज़ गिवन रिजल्ट्स. 

    सवाल: सर आज सभी लोगों के मन में जानने की यह उत्सुकता है कि छठ पूजा के बाद जो बड़ी संख्या में जो प्रवासी पटना में रुके आखिर उन्होंने वोट किसे किया?

    जवाब: देखो प्रवासियों का तो ऐसा होता है कि वोट तो जो उनको लाता है ना वोट देने के लिए दो बातें हैं इसमें एक तो प्रवासी वह जो स्वेच्छा से घर आए थे लौट करके घर तो आ गए आप पटना में आ गए भागलपुर में आ गए आप मान लो लेकिन वोट किसको दिया ये सवाल है तो जो आदमी उनको अप्रोच करता है जो फैसिलिटेट करता है वोट देने के लिए घर से गाड़ी में बिठा के ले जाता है और करता है वो देते हैं वहां से बाहर से आने कोई आदमी दिल्ली में काम कर रहा है उसको दिल्ली से पटना आने का टिकट देंगे रेल का वोट उसको देगा मुझे याद 40 साल पहले मैं जब गांव में था तो हमारे घर में एक दो वोट थे तो घर के एक दो लोग शहर में काम करते थे तो वो वोट देने आते थे तो एक माहौल होता था अभी घर आया आदमी है तो टिकट क्या है टिकट कोई ना कोई पॉलिटिकल पार्टी करती थी उनका आने जाने का नॉर्मल प्रैक्टिस है ये तो इसलिए जिस पार्टी ने उनको टिकट विकट इजाम किया होगा थोड़ा फैसिलिटेट किया होगा माला पहनाई होगी वोट उसी को दिए होंगे तो मेरे ख्याल से ऐसा लगता है मेजॉरिटी ऑफ़ वोट्स मस्ट हैव गॉन टू नरेंद्र मोदी एंड टू सम पार्ट मे बी नीतीश कुमार ऐसा लगता है मुझे लेकिन वै लिटिल वेरी लिटिल टू पीके एंड ऑल ऐसा.. 

    सवाल: सर आखिर इतनी कंट्रोवर्सी के बाद भी जेडीयू के बाहुबली अनंत सिंह कैसे जीत गए चुनाव?

    जवाब: बाहुबली देखो चुनाव जीतते ही हैं. वो तो 2015 में जेल में थे तब भी जेल में रहती है चुनाव जीत गए थे तो पिछली बार जो है वो कन्विक्ट थे अब तो हट गया कन्विक्शन उनका तो उनके पत्नी चुनाव लड़ी तो वो चुनाव जीत गए वहां पे इस बार चुनाव लड़ रहे थे अच्छा खासा तो एक बिंदु बीच में क्या आ गया कि उसके सामने आरजेडी ने एक कैंडिडेट खड़ा कर दिया. उन्हीं की कास्ट का जो है टक्कर हो गई बराबर की. इसमें से क्या हुआ? एक तीसरा आदमी कूद गया पीके का जो है एक कैंडिडेट था वो कूद गया बीच में. वो जो कूदा बीच के अंदर दुलारचंद. ठीक. तो एक इसी बीच में क्या है कि वो जो पीयूष नाम के आदमी को वहां पे मिला पीके की पार्टी का टिकट वहां मिला जाकर के उसी कांस्टेंसी से अनंत सिंह जहां से चुनाव लड़ रहे थे जो है और सामने आरजेडी का आदमी था तो टक्कर इन दो के बीच होनी थी वो तीसरा कूद गया बीच में जाकर के पीयूष उसकी पार्टी का जो है और पीयूष ने क्या है कि दुलारचंद भी बाहुबली था. जी इसको अप्रोच कर लिया. तो दुलारचंद उसके लिए काम करने लग गया पीयूष के लिए. वो पीयूष पिछड़ा था बैकवर्ड के वोट से. इसको लगा मेरा नुकसान हो रहा है. यह तो इनके कार्यकर्ताओं में और पीयूष के उस पीके के कार्यकर्ताओं में झगड़ा हुआ. वहां पे सुना है उस झगड़े के दौरान कोई गाड़ी के नीचे आ गया. वहां पे जो है गाड़ी नीचे आ गया. फिर ये भी सुना कि किसी ने गोली चला दी. फिर ये मैंने पढ़ा कि नहीं हार्ट अटैक हो गया था उनको. तो वो तो एक क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन का विषय है कि मृत्यु कैसे हुई? कैसे नहीं हुई. तो इस तरह से झगड़ा हुआ यह जो है और बिहार में और यूपी में बाहुबलियों का जीतना कोई नई घटना नहीं है. तो यह भी जीत गए वहां पे जो है और ललन सिंह के कैंडिडेट थे वैसे ललन सिंह जो है वो एक फोर्स हैं अपने आप उनका भी सपोर्ट था उसके पीछे जो है तो जीत गए चुनाव में और सबसे बड़ी बात ये है कि उनकी जो कांस्टेंसी थी दैट वे जो है तो वो बड़ी कलरफुल कांस्टेंसी रही कुल मिला के जो है तो ये सारी घटना रही तो उनको चुनाव बाहुबली थे वो चुनाव जीत गए. 

    सवाल: सर क्या अनंत सिंह का निर्वाचन क्षेत्र मोकामा बिहार चुनाव में तीर्थ स्थल बन गया था. 

    जवाब: वाकई सही कह रहे हैं आप सारे पत्रकार गए वहां पे और खूब खूब गाजेबाजे से स्वागत होता था उसी कास्टेंसी में सब लोगों का जो है और सबके मन में ऐसा लगता था कि मुकामा नहीं गया तो हमारा जीवन शायद अधूरा नहीं रह जाए तो चलो मुकामा चलते हैं वहां पे जो है बहुत से लोगों ने कहा एयरपोर्ट नहीं था वहां पे तो जाना पड़ा गाड़ी वाड़ी जिससे गए वहां से जो है तो मन में थी यार एयरपोर्ट होना चाहिए वहां मुकामा में तो जो है तो आकर्षण था उसका जो कैंडिडेट चुनाव लड़ रहा था वहां पे जो है तो कोई शायद ही ऐसा पत्रकार या मीडिया होगा जो वहां नहीं गया होगा वहां पे से नहीं मिला होगा और कोई कहते हैं राजसी ठाटपाट था वहां पे और टीवी में भी दिखाया गया कि ऐसे लाखों लोग खाना खा रहे हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं. एक दृश्य था चुनाव का. मतलब है कि मीडिया के लिए टीआरपी के एंगल से एक अच्छा घटना स्थल था जहां पे लोग गए. तो फिर इसीलिए कहा गया कि यार बिहार चुनाव में ये गांव जो है ना इसका एक तीर्थ स्थल बन गया सबके लिए. ये बात वहां से आई. 

    सवाल: सर इन चुनावों में पीके ने भी काफी प्रचार प्रसार किया. लेकिन उनका खाता भी नहीं खुल पाया. अब भविष्य क्या देखते हैं आप उनका बिहार की राजनीति में? 

    जवाब: भविष्य तो ये है कि अभी तो पिट गए बुरी तरह से. एक भी सीट नहीं आई. 99% लोगों की जमानत जप्त हो गई. लेकिन निराश नहीं है वो. उनका कहना है मैं तो 10 साल के लिए करता हूं प्रोजेक्ट पर काम. पहले नौकरी करता था यूएनओ में तो अभी 10 साल नौकरी करी मैंने. अब जो है 10 साल मैं यहां रहूंगा जो है पटना के अंदर. पटना को लडूंगा बीच में चला जाऊंगा ममता का चुनाव प्रचार करने को स्ट्रेटजी बनाने केरल चला जाऊंगा. चेन्नई चला जाऊंगा. बाकी अदरवाइज मैं फिर यहीं रहूंगा. यहीं रह के मैं करूंगा और उसके मुद्दे अच्छे थे. उसने मतलब इस टोटल माहौल में उसने अपना ब्रांडिंग बनाया. अपने इशू खड़े किए और बिहार के लोगों में एक रेस्पेक्टेड सी बात बनी पॉलिटिकली पिट गए लेकिन वैसे एक यू मान सम्मान का रहा कि आदमी ठीक है थोड़ा ये कई लोगों ने कहा केजरीवाल बनेगा केजरीवाल उसमें बहुत डिफरेंस है अभी लॉन्ग स्टोरी दैट तो बहरहाल भविष्य है कि वो पटना में काम करेंगे ऐसा लगता है पैसेवैसे उनके बहुत खर्च हो गए होंगे जो कमाए होंगे पहले उन्होंने अब लेकिन फिर जा रहे हैं ममता और उनके करने तो ही विल रिकवर हिज लॉसेस दैट वे जो है तो फिर पैसे वैसे आ जाएंगे तो फिर खड़े हो जाएंगे बिहार में थोड़ा बहुत जो है तो काम करेंगे ग्रास रूट पे ऐसा लगता है. 

    सवाल: सर आखिर ऐन वक्त पर चुनाव लड़ने से पीछे क्यों हट गए चिराग पासवान और प्रशांत किशोर? 

    जवाब: प्रशांत किशोर का आई थिंक इट्स अ एरर ऑफ़ जजमेंट. जब सेनापति सेनाएं कहां लड़ेंग आपकी जो है तो मैसेज गलत गया उससे वहां पे रिसोर्सेज नहीं थे. अब पता नहीं क्या सोच के उन्होंने ऐसा किया. लेकिन आई थिंक इट्स एन एरो ऑफ़ जजमेंट. और रही चिराग तो वो तो दिल्ली वालों के कहने से चलते हैं. दिल्ली ने कह दिया भाई कोई चुनाव नहीं लड़ना. ऐसा मैंने सुना है. काम करो फील्ड में जाके सरकार बनाओ पार्टी को जिताओ. तो आ गए वहां पे एंड ही इस लकी एनफ इतनी सीटें आ गई उसको यहां पे जो है. 

    सवाल: सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर भाषण में एक मैसेज होता है जो नैरेटिव तय करता है सर इस बार भी जैसे ही चुनाव जीत लिया कार्यकर्ताओं को जीत का श्रेय देते देते आखिर में उन्होंने कहा कि गंगा मैया बिहार से होते हुए पश्चिम बंगाल पहुंचती हैं इसका क्या मतलब है? 

    जवाब: मतलब पहले तो ये कि सरस्वती उनकी वाणी पे रहती है मैंने कहा आपसे उनकी परिकल्पना का उनके कहना चाहिए लिटरेरी माइंड का कोई मैच मैच नहीं है. इंडियन पॉलिटिक्स में पॉलिटिक्स के जो एक्सपर्ट है लिटरेचर के वो भी नहीं कर पाते हैं. कितना सुपरहिट ये सेंटेंस है. आप देखिए ये कि गंगा मैया लेके जाएगी वहां पे बंगाल में जो है. हैं तो एक तरह से उसी समय ही सारे वोट्स का पोलराइजेशन ऑटोमेटिकली हो गया. सारा हिंदू संस्कृति हिंदू समाज गंगा मैया को नमस्कार करता है. नरेंद्र मोदी गंगा को लेके आ रहे हैं. जैसे उन्होंने पहले कहा था कि गंगा मां ने मुझे बुलाया वाराणसी के अंदर जाइए. तो वही गंगा अब उनको बंगाल लेके जाएगी. तो ये क्या है? वही वापस वही बात सुपरहिट स्लोगन इन इलेक्शन जो है और मीनिंगफुल है और फ़क्चुअली करेक्ट है कि गंगा जाती होके वहां से और गंगा बंगाल जाती है जो है तो वन मोर न्यू सुपरहिट स्लोगन ऑफ इलेक्शनिंग ऑफ़ बीजेपी अंडर द लीडरशिप ऑफ नरेंद्र मोदी यही कहा जा सकता है. 

    सवाल: सर राजनीतिक प्रवेक्षकों के अनुसार बीजेपी की इस अप्रत्याशित जीत का एक सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पावरफुल पब्लिक कनेक्ट भी रहा और उसके बाद गमछा लहराकर उन्होंने सभी बिहार के लोगों का दिल जीत लिया. इस नैरेटिव को आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: अब्सोलुटली करेक्ट. गमछा लहराया उन्होंने उसको चुनाव का सिंबल बना दिया. अब गमछा क्या है कि आम आदमी के जीवन का हिस्सा है. गरीब आदमी के जीवन का हिस्सा है. नॉट ओनली बिहार, यूपी आसपास की सारी स्टेट्स में गमछा पहनते हैं. लोग गमछा लेके चलते हैं. तो गमछा एक पार्टी का सिंबल हो गया. दैट इज है. और फिर वो वहां जो उन्होंने शायद बेगूसराय था कहां था? छठ का जो त्यौहार था जिस दिन उस दिन स्पीच में लोगों को यही कहा और भोजपुरी भाषा में कहा कि मेरा प्रणाम सबको स्वीकार हो. इस वाक्य को उन्होंने भोजपुरी में बोला. वहां पे जो है जनता कनेक्ट होती है उससे जो है फिर क्या मखाने की माला पहना रहे हैं कुछ लोग बीजेपी के आके उसके बाद क्या जहां जाते हैं वैसी वेशभूषा पहनते हैं कमाल है वैसी भाषा बोलने लग जाते हैं पहले बंगाल गए थे तो चेहरा मोहरा ऐसा बनाया था रविंद्र नाथ टैगोर जैसा दिखने लग गए थे एकदम से देखा आपने हूबहू जो है ये अब जिस राज्य में जाते हैं वो वहां की संस्कृति वहां की वेशभूषा वहां का खानपान उसको ग्रहण करते हैं तो लोकल कनेक्ट उनका जबरदस्त हो जाता है उससे तो दिस इज़ एब्सोलुटली करेक्ट कि लोकल कनेक्ट भी उनकी पर्सनालिटी का एक कारण है जो चुनाव की विक्ट्री में ऐड करता है. 

    सवाल: सर नीतीश कुमार के बारे में एक आम धारणा है कि वह अपने सहयोगी घटक को अपने एडमिनिस्ट्रेशन में दाखिल नहीं होने देते हैं. तो इस बिहार चुनाव में सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली बीजेपी नीतीश सरकार में क्या करेगी? 

    जवाब: इट इज एनेंट क्वेश्चन ओनली द टाइम विल टेल सबसे पहले झगड़ा तो किसी मुख्यमंत्री उप मुख्यमंत्री का होता कलेक्टर एसपी की ट्रांसफर लिस्ट को लेके होता है तो बीजेपी वाले अब कह रहे हैं हम तो अभी रिमोट कंट्रोल तो हमने बहुत कर लिया दो साल नीतीश कुमार का अब तो हम डायरेक्ट कंट्रोल चाहते हैं डायरेक्ट पार्टिसिपेशन चाहते हैं डिसीजन मेकिंग प्रोसेस में अपना से चाहते हैं तो सबसे इंटरेस्टिंग बात ये है कि जो कलेक्टर एसपी की लिस्ट निकलेगी तो नीतीश कुमार बीजेपी के डिप्टी सीएम को दिखाते हैं कि नहीं और डिप्टी सीएम अगर डमी हुआ है जैसे जैसे पहले सम्राट चला है साल दो साल डिप्टी सीएम वहां पे कभी कोई बात आई नहीं इसका मैं प्रज्यूम करता हूं कि वो अपने अथॉरिटी को असर्ट नहीं कर रहे हैं शायद वहां वरना अब तक बात सामने आती कलेक्टर एसपी की पूरी छूट लगाने की छूट एडमिनिस्ट्रेशन की चीफ सेक्रेटरी लगाने की छूट नीतीश कुमार को मिलती रही है दैट वे अब हालात अलग है तो इट विल बी वेरी इंटरेस्टिंग टू सी इन फ्यूचर कि नीतीश कुमार जो पार्टिसिपेशन है गवर्नेंस का एक्टिव पार्टिसिपेशन उसमें बीजेपी को कितना अलऊ करते हैं कितना अलऊ नहीं करते हैं द ओनली लेट्स वेट फॉर द.. 

    सवाल: सर ये कहा जाता है कि जिन एमपी एमएलए ने कभी नीतीश कुमार को धोखा दिया वो दोबारा जीत नहीं पाए. ये फिनोमना आप कैसे देखते हैं?

    जवाब: ये सही है बात ऐसी नीतीश कुमार को जहां भी वो डिसलॉयल्टी को सेंस कर लेते हैं. ही एक्ट्स वेरी डिसाइसिवली प्रूथलेसली. एक बार उन्होंने आरसीपी सिंह आईएस अफसर थे. उनके क्लोज थे. राज्यसभा में लाए. मंत्री बनने का वक्त आया तो नीतीश कुमार ने शर्त रखी कि दो मंत्री बनाए जाए हमारे केंद्र में तो उन्होंने नीतीश को कॉन्फ्रेंस में लिए बिना दिल्ली का ऑफर स्वीकार कर लिया मंत्री बन गए वहां पे उनको बुरा लगा तो बाद में राज्यसभा का टेन्योर नहीं मिला खत्म हो गया आगे कोई पद नहीं मिला तो उन्होंने डिटच कर लिया अपने आप को ललन सिंह एक बार अकड़ गए थे इस बात पे कि इंटरनल डेमोक्रेसी पार्टी में कम है ये वो है तो उसको भी तरीके से अध्यक्ष थे वो अध्यक्ष के केंद्रीय मंत्रिमंडल में आ गए हालांकि ललन सिंह पहले 2010 में एक बार छोड़ छोड़ के चले गए थे पर ललन सिंह के एक फोर्स है वहां पे नीतीश कुमार भी रिकॉग्नाइज करते हैं ही इस एन एसेट तो उसको वापस लाए वहां पे उसके बाद में जो है दो एमएलए एक एमपी हैं जो वो बांका के एमपी है गिरधारी यादव जो जेडीयू के एमपी हैं वो सरकार के खिलाफ बोले इधर-उधर एसआईआर के खिलाफ बोले अपने लड़के के लिए टिकट मांगा नहीं मिला तो फिर लड़के को उन्होंने आरजेडी से टिकट दिलवा दिया चुनाव जी लड़े और हार गए फिर वहां से इस तरह दूसरा इशू जो है वह एक भागलपुर एमपी है अजय मांडल जो है तो उन्होंने कुछ भाषण दे दिया होगा कि जो टिकट वितरण है हमारे इलाके में हमारा सेव होना चाहिए नीतीश कुमार अपनी मनमानी करते हैं ये करते हैं नीतीश कुमार ने एक नहीं सुनी और एक नया कैंडिडेट बिल्कुल नीतीश कुमार के लायक बुल्लू मंडल के नाम का उसको टिकट दिया उससी में जो वहां पे जो है एमएलए कास्टेंसी में और वो व्यक्ति 58000 वोटों से जीता तो मतलब क्या है कि नीतीश कुमार इस रूथलेस टू डिसेंट रूथलेस टू डिसलॉयल्टी इन द पार्टी और फिर बाद में क्या होता है जनता का मैंने कहा ना अभी तक विश्वास बना हुआ है नीतीश कुमार में अगर नीतीश कुमार ने किसी को रिजेक्ट कर दिया है तो जनता हरा देती है उसको कई बार ये एक नया फिनोमिना है वहां पे ऑल सैड एंड डन इसका मतलब ये है ऑल सेड एंड डन नीतीश कुमार स्टिल इन कमांड स्टिल इन रीजनल कमांड इन बिहार इसका मतलब ये है.. 

    सवाल: सर नीतीश कुमार के राइट हैंड और जेडीयू के अध्यक्ष संजय झा उन्होंने एक स्टेटमेंट दिया कि प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी और मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार हमारा एक सपना इस पर आप कुछ कहना चाहते हैं? 

    जवाब: अब्सोलुटली करेक्ट मैंने पढ़ा इंडियन एक्सप्रेस में उन्होंने इंटरव्यू दिया इस बात का तो देखिए मैंने कहा ना कि रिमोट कंट्रोल के तहत उनका कंट्रोल ऑलरेडी दैट वे जो है कहना चाहिए ऑलरेडी दिल्ली के पास है नीतीश कुमार के सबसे करीब है नीतीश कुमार के साथ रहते हैं सब है लेकिन कोई ऐसी घड़ी आ जाए रात को 2:00 बजे की फैसला करो इधर के उधर तो शायद हो सकता है वो दिल्ली के साथ चले जाए मैं उनकी इंटीग्रिटी पे सवाल नहीं उठा रहा मैं प्रैक्टिकल सिचुएशन आपको बता रहा हूं लेकिन क्या ही सोफ वैरी सक्सेसफुल इन मेंटेनिंग बैलेंस विद नीतीश कुमार विज दिल्ली दैट इज तो उन्होंने पहला सेंटेंस ये कहा कि पीएम के रूप में तो मोदी है. पहले तो अपनी जिसे कहते हैं ना एंटीसिपेटरी या मतलब अपनी सुरक्षा पहले एक बात कहते समय ये कहो इस बात को कि भाई पीएम के रूप में तो मोदी है. पहले तो ये स्वीकार करो. हम फिर आग्रह है उनका उस रूप में कि यह जोड़ी जन हमारा ड्रीम थी यह कि नीतीश कुमार रहे यहां पे और डबल इंजन सरकार चलेगी और पिछले दो बजट में भारत सरकार ने बड़ा हमारा जो बजट यूनियन बजट है 2425 का हमारा काफी शेयर दिया है उसके अंदर जो है तो कुल मिला कहने का तात्पर्य संजय झा का जो इंटरव्यू लॉजिकल है जिसे कहना चाहिए सेंसिबल है और वैसे भी उनकी इमेज एक सेंसिबल और लॉजिकल आदमी के नीतीश कुमार के नीतीश कुमार क्रोस जो आसपास के लोग हैं इसमें संजय झा ऐसे हैं जो कार्यकारी अध्यक्ष हैं जो एकदम इमजिकल नहीं बाहुबली नहीं है. टॉक सेंस एंड मोर और लेस ए वैलुएबल एसेट टू नीतीश कुमार. 

    सवाल: सर एक पॉजिटिव डेवलपमेंट के नाते एनडीए के घटक दलों ने जॉइंट मेनिफेस्टो प्रेस कॉन्फ्रेंस की लेकिन सिर्फ 45 सेकंड की. इसे आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: मैंने पढ़ा कहीं कोई कहता है 26 सेकंड की थी. नीतीश कुमार 26 सेकंड आए. जेपी नड्डा 45 सेकंड आए. तो कोई खास बात नहीं है. बेसिक बात ये है कि वो इतने बिजी रहते हैं चुनाव में और यही नरेंद्र मोदी अमित शाह की खास बात है कि नीचे वाली कैडर को इतना बिजी रखते हैं कि एक पल का सांस लेने का टाइम नहीं मिलता जिसे कहते हैं. तो खत्म करके वो भागे कि मुझे पटना जाना है. मुझे भागलपुर जाना है. मुझे यहां जाना है. मुझे वहां जाना है. तो उनका ये था कि आज हमारा ये प्लान लगा हुआ है. ये वेस्ट है. एक घंटा बोलो पहले फिर दो घंटे पत्रकार पूछेंगे. कोई सेंस नहीं है. सबको पता है हमारा क्या मैनिफेस्टो है. तो चल दिए वो तो कोई खास बात नहीं है. 

    सवाल: सर एनडीए और महागठबंधन दोनों की तरफ से इन चुनावों में कई बड़े वादे किए गए. आप किसे बेहतर मानते हैं? 

    जवाब: वादे तो बहुत किए गए. भाजपा का वादा था एक करोड़ लोगों की नौकरी और महिला देखा आपने. लेकिन एक्चुअल में क्या हुआ? नरेंद्र मोदी जंगल राज के नारे पे चुनाव जीते वहां से. वादे अपनी जगह है. वूमेन का तो हो ही गया. एक करोड़ नौकरियां जो लगेंग लगेंगी. ठीक है. एक अच्छा एक एक पॉजिटिव वादा है. आश्वासन है लोगों को 5 साल में देने का. और क्या मालूम 5 साल में लग भी जाए. एक करोड़ नौकरियां आप कह नहीं सकते. इधर जो है इनका वादा तो बेसिकली आरजेडी के वादे थे. ₹00 महिलाओं के लिए एक घर में एक नौकरी उनका आपने देख ही लिया ये तो वादों की लिस्ट तो लंबी है दोनों पार्टियों की. लेकिन एक्चुअली क्या है इसमें बीजेपी ने स्कोर ओवर किया आरजेडी के ऊपर और क्यों किया? क्योंकि नरेंद्र मोदी थे तो उन्हीं 20 वादों में से दो वादों को छांटा. उस पे सारा कैंपेन किया और चुनाव जीते. तो बीजेपी दिस मेनिफेस्टो वाज़ अ बिट बेटर. 

    सवाल: सर क्या यह सही है कि बिहार में 20 साल पुराने लालू शासन के जंगल राज का जो नारा था इस चुनाव में रेलेवेंट और सुपरहिट रहा. 

    जवाब: अब्सोलुटली नरेंद्र मोदी सुपरहिट स्ट्रेटजी एडवाइर्स हैं चुनाव के बहुत से लिख के देते हैं भाषण ठीक है ना और लिख के दिया होगा उन्होंने कि 1 करोड़ नौकरी है फिर ये स्मार्ट सिटी है पटना फिर ये हमारी तीसरी अर्थव्यवस्था आ रही है देश के अंदर जो है फिर मेट्रो आ रही है पटना के अंदर. फिर हम यह पुल बना रहे हैं. यह हम यह कर रहे हैं. उन्होंने सबको एक तरफ रख दिया. वो जनता की नब्ज़ जानते हैं. पब्लिक का मूड जानते हैं. सारे चुनाव का फोकस एक बात पे किया. अगर आरजेडी को वोट दोगे तो जंगल आज के दिन वापस आ जाएंगे. महिलाओं को उठा के लोग ले जाएंगे. यहां से अपहरण इंडस्ट्री बन जाएगी. तो सारा फोकस उन्होंने सारे वायदों को एक तरफ रख के ना जंगल राज पे कर दिया. और हिट हो गया जंगल राज का नारा. और क्या कहना अमित शांत यहां तक कह दिया कि अगर सरकार आएगी उसकी तेजस्वी की तो अपहरण हत्या इनका एक मंत्रालय खुल जाएगा अलग से दैट इज है और खुद नरेंद्र मोदी ने कहा कि 100 साल तक लोग यहां के जंगल राज की बातों को भूल नहीं पाएंगे 15 राज का जंगल राज का जो डर है लोगों को आज भी सता रहा है महिलाएं थी आदित्य ने बताया कि एक महिला ने कहा भैया तेजस्वी से हमें तेजस्वी को कुछ नहीं चाहिए तेजसवा कोई पैसा नहीं कुछ नहीं चाहिए हमें तो खाली सुरक्षा चाहिए जो नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी देते मेरे को डर है कि वो सरकार आएगी तो मेरे को घर से उठा ले जाएंगे लोग. तो ये जो डर था लोगों के मन का उस उस डर को नरेंद्र मोदी ने उभारा और यहां तक कहा कि अगर ये लोग आएंगे तो आपके बच्चे जो है ना वो फिर ये कट्टा और ये सब लगाने लग जाएंगे. सीखने लग जाएंगे गोली चलाना क्राइम में उलझ जाएंगे ये. तो उन्होंने झकझोर के रखा पूरी बिहार की जनता को कि बी केयरफुल डोंट वोट आरजेडी. यू आर वोटिंग फॉर जंगल राज. और यह फॉर्चूनेटली नारा उनका लोगों के गले में उतर गया. तो सारा मेनिफेस्टो एक तरफ जंगल राज का नेटिव वो एक तरफ एंड टू बी हाईली सक्सेसफुल. 

    सवाल: सर एक और नारा बड़ा लोकप्रिय हुआ. कनपट्टी पे कट्टा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा और उसके बाद वो काफी प्रचलित हुआ. कैसे देखते हैं सर इसे?

    जवाब: इतना बढ़िया नारा था. उन्होंने एग्जजेक्टली ये नहीं कहा था कनपट्टी पे कट्टा. मतलब बात वही कही थी कट्टा ऐसा हो जाएगा. तो हमारे एडिटर ने हेडलाइन लगाई सुबह कनपटी पे कट्टा अरे मजा आ गया मैंने उसको पता पत्रकारिता सर्वोच्च पुरस्कार हमारे यहां तो ₹500 खड़े होकर के झुक के दिए उसको जो है और फिर मैंने भी उसको रट लिया उसको नारे को कि करपड़ी पट्टा सुपरहिट स्लोगन ऑफ द कैंपेन जिसे कहते हैं सारा मिलाकर के जो है तो उन्होंने कहा ना दैट इज है ये क्या है कट्टा है ये हैं कटुता है एक तरह से क्राइम है करप्शन है और पूरा सारा बना के बताया तो तो सुपरहिट स्लोगन था कानपट्टी पे कट्टा दैट वे जो है तो नारे गढ़ने में तो देखो मैंने कहा ना चुनाव के नारे गढ़ने में तो सारी एजेंसियां फेल हैं. नरेंद्र मोदी इस द प्रोफेसर ऑफ दिस इंडस्ट्री दिस स्कूल जिसे कहना चाहिए. गुजरात में जब सीएम थे तो बहुत से लोग आईडिया लेके आते थे उन दिनों में इलेक्शन कैंपेन होता था. हम ऐसे करेंगे ऐसे करते थे. पर नरेंद्र मोदी खुद अपना नारा खुद तय करते थे. इलेक्शन कैंपेन की धारा खुद तय करते थे और चुनाव जीतते थे उससे. इस बार भी क्या है? ऐसा ही है ये जो स्लोगन है कनपटी पे कट्टा हैं ये ऐसा ही स्लोगन है गर्दा उड़ा दिया एक तरह से जो है अनदर सुपरहिट स्लोगन इन दिस थिंग और ये आगे बहुत लंबे समय तक काम आएगा इनको कई राज्यों में काम आएगा भाई जंगल राज का नारा तो आप ममता के भी लगाएंगे ना जा के वहां भी आप कह सकते हैं कनपटी कट्टा कुछ बंगाली में कुछ और नाम चेंज कर लेंगे थोड़ा सा नैरेटिव बदल देंगे उसका जाके ये सुपरहिट रहा फिल्म मिला के ये जो है.. 

    सवाल: सर जंगल राज के नारे से मुक्ति पाने के लिए तेजस्वी ने इस बार लालू यादव को प्रचार से और साथ ही जो चुनावी पोस्टर्स हैं उनसे दूर रखा. लेकिन उसका इंपैक्ट कुछ खास नजर नहीं आया परिणामों में. आप क्या कहना चाहेंगे इस बारे में? 

    जवाब: इसका कारण नरेंद्र मोदी कैंपेन की सफलता जंगलात जितना नरेंद्र मोदी ने एस्टैब्लिश कर दिया लोगों के दिमाग में. तो फेल होना ही था. लालू आए चाहे मत आए पोस्टर में आओ चाहे मत आओ. एक इंप्रेशन ये हो गया कि कौन है? एक्सटेंशन ऑफ़ लालू यादव. एक दिमाग में तो यही रहा ना. वो बार-बार कहता रहा कि आई एम यंग बट आई एम वेरी मैच्योर. जंगल आज कभी नहीं आने दूंगा. लोगों ने सुनी नहीं सामने कौन था सामने नरेंद्र मोदी था उसके भाषण थे और ट्रस्ट था लोगों को उसमें क्रेडिबिलिटी थी उसकी तो लोगों ने माना उसको तो इसलिए फेल हो गई बात उसका आना ना आना है उसका कोई पर्पस सर्व नहीं हुआ लालू यादव को दूर रखने का.. 

    सवाल: सर बाहर ना जाए बिहारी पलायन रोकेंगे ये जो वादा है राजनीतिक दलों का ये आखिरकार पूरा क्यों नहीं हो पा रहा? 

    जवाब: इसका तो बेसिक कारण यह है कि जो गवर्नमेंट्स आई हैं उन्होंने पूरा फोकस नहीं किया 20 साल से नीतीश कुमार ही उन्होंने एक चीज पे फोकस कर दिया लॉ एंड ऑर्डर पे उनमें उनके 100 में 100 नंबर हैं कि महिलाएं सुरक्षित हैं. लॉ एंड ऑर्डर कंप्लीट है पटना मतलब बिहार के अंदर. दैट वे जो है ये जो पलायन इंडस्ट्री है जो पलायन के इश्यूज थे इसको सरकारें हैंडल नहीं कर पाई उस ढंग से. आप देखिए तो कुल मिला के आज मैंने पढ़ा कहीं कि 65% बिहार की जनता ऐसी है जहां एक माइग्रेंट है बाहर गया घर का बच्चा लड़का आदमी कमाने के लिए जाता है और सैलरी 20-25000 ज्यादातर है लोगों की 61% लोग ऐसे हैं बोले जो कि 20000 की सैलरी में जाते आते हैं 15 लाख लोग अभी बेरोजगार घूम रहे हैं डिग्री लेकर के वहां जो है तो उन्होंने कहा इसका सशन कैसे हो तो उन्होंने कहा एक तो अल्पकालीन है एक दीर्घकालीन है दीर्कालीन सशन इसका ये है कि बिहार के अंदर ही सस्ती शिक्षा टेक्निकल शिक्षा इन लड़कों को अच्छा बनाओ होता कि बाहर अगर जाए भी तो इनको 25,000 नहीं मिले. इनको 500, 75,000, ₹1 लाख सैलरी मिले इनको. तो इस सरकार काम करेगी. लेकिन सरकार के सामने एक बहुत बड़ा मुद्दा यह है एंड आई एम श्योर किकिकि रिमोट कंट्रोल सरकार का एक तरह से पीएमओ मॉनिटरिंग करेगा वहां की वर्किंग को. तो ये पलान का मुद्दा है ना सरकार इसको प्रायोरिटी में टेक अप करेगी. और ऐसी उम्मीद करते हैं कि नरेंद्र मोदी ड्रिवन दिस गवर्नमेंट जो है इसमें शायद अगले साल, दो साल, तीन साल में ग्रेजुअली जो है लॉन्ग रन में इस मुद्दे का सशन होगा. 

    सवाल: सर सबकी भूमिका की चर्चा हो ही रही है. तो राजनीति के चाणक्य कहना कहलाए जाने वाले अमित शाह की स्ट्रेटजी, उनका ब्लूप्रिंट और इलेक्शन कैंपेन का रोल बिहार के चुनावों में आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: जबरदस्त रहा. उन्होंने फिर से सिद्ध कर दिया ये कि ही इज द ओनली प्रिंसिपल एडवाइजर, प्रिंसिपल इलेक्शन स्ट्रेटजिस्ट एंड ट्रबल शूटर टू नरेंद्र मोदी. नरेंद्र मोदी ने बिहार का रोड मैप बना के उनको दे दिया. ग्राउंड पर सारा काम अमित शाह का था. 19 दिन तक गांवगांव भटकते रहे. आप देखिए 35 से ज्यादा उन्होंने रैलीज की, सभाएं की. वहां पे जो है एक बहुत बड़ी रैली भी की वहां पे. कुल मिला के 46 मैंने पढ़ा 46 ऐसे इवेंट्स किए टोटल मिला के और शटलिंग बिटवीन पटना. दिमाग में उनको ये भी रहना था ना कि एमएलए क्या कर रहे हैं. संभावित एमएलए क्या करने वाले? नीतीश कुमार क्या कर रहा है? वो सारा भी मॉनिटरिंग करना था. तो कुल मिला के है कि उनका रोल बहुत जबरदस्त था. अमित शाह ने सिद्ध किया है कि ही इज द ओनली प्रिंसिपल एडवाइजर प्रिंसिपल आर्किटेक्ट ऑफ इलेक्शन और जो जो टारगेट वो देते हैं उनके मेंटर नरेंद्र मोदी उनको वो पूरा करके परिणाम देते हैं परिणाम करके उसको लाते हैं ये तो ये जो चुनाव है नरेंद्र मोदी की एक और जिनको वन मोर कैप इन फेदर ऑफ़ अमित शाह जो है ये तो और आप देखिए उसके प्रति कितना प्यार है. अभी कल परसों जो पार्टी हेड क्वार्टर पे जो आदर सम्मान हुआ नरेंद्र मोदी का तो संबोधित किया नड्डा जी सच एंड सच करके इनके लिए कहा गया भाई अमित भाई ठीक है ना मन में कितना प्यार था कितनी एक सहानुभूति का भाव और एक बच्चे या छोटे भाई के प्रति भाव मन में आता है कि भाई इतना प्यार उमड़ा होगा नरेंद्र मोदी भी इंसान है वो देखते हैं कि परिणाम कौन ला रहा है रिजल्ट ओरिएंटेड कौन है अमित शाह कोई काम दे दो, हरियाणा दे दो, महाराष्ट्र दे दो, बिहार दे दो. कितना डिफिकल्ट काम था. हैं कहने को तो प्रभारी बहुत थे. सारे वहां 10 लोग थे और 10 लोग भी थे वहां पे. एक्चुअल कमान, एक्चुअल फील्ड वर्क, एक्चुअल ग्राउंड पे जो रोड मैप है, किस किसका है वो? मोदी का विज़न और एग्जीक्यूशन अमित शाह का. दैट इज़ है. तो भाई अमित शाह तो अमित शाह है. 

    सवाल: सर इन परिणामों से पहले गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से 160 से ज्यादा सीट जीतने का दावा किया गया था. किस आधार पर उन्होंने ये दावा किया? 

    जवाब: आधार उनका होगा लेकिन सही साबित हुआ बल्कि उससे भी आगे निकल गए. आप सोचिए खुश तो हुए होंगे नेचुरली लेकिन आधार तो देखिए उनका अपना अपना पॉलिटिकल विडम है ना एक तरह से रहता है सारा जो है पर इट क्रॉस इवन 160 जो है उस समय 160 की बात करते थे लोग मुस्कुराते थे जो है कि कहां आएंगी 160 125 30 35 आ जाएंगे 132 आ जाएंगे आई वो हैं तो आप कह सकते हैं वन मोर इलेक्शन प्रेडिक्शन क्या कहना चाहिए ज्योतिष जो है लेकिन 160 से भी आगे निकल गए. 

    सवाल: सर बिहार चुनाव के ठीक बीच अमित शाह ने यह स्टेटमेंट दिया महाराष्ट्र के संदर्भ में कि हमें बैसाखियों की जरूरत नहीं. आखिर इसके मायने क्या है? 

    जवाब: इसके मायने कि रोज की चिकझिक झिकझिक वहां की मैं आज यहां चला जाऊंगा. कभी शिंद कुछ कहते हैं, अजीत पवार कुछ कहता है, कुछ और कुछ कहता है. ये सब बंद करो भाई. क्या है? हमें कोई जरूरत नहीं है. हमें आपकी जरूरत आज भी नहीं थी. हम अकेले सरकार बना सकते थे महाराष्ट्र में. लेकिन फिर भी चलो भाई सबके साथ चलो. तो कह दिया आ जाओ मेरी गाड़ी में बैठ जाओ. चलो भाई तुम भी चलो राज करो दो पैसे तुम भी कमाओ राज में अपना ठीक करो सिस्टम जो है उनको कह अकोमोडेट किया उनको और वो आए दिन नई-नई निवारण ले आते हैं निवार ले आते हैं तो उनका ये होता है कि देखो भाई ये काम मेरे यहां नहीं है यहां झुकने का काम नहीं है जो मैंडेट है उसको लागू करो टू द पॉइंट जो है ये इसलिए उन्होंने बहुत रेयर स्टेटमेंट था उनका लेकिन उन्होंने दिया उनके मन से निकला भाव इस बात का जो है कि मैं साहब बेसाखियों में सहारे की जरूरत नहीं है वैसे बेसिकली जो है वो लोकल चुनाव के संदर्भ में था बीएमसी का चुनाव आ रहा पुणे का आ रहा है एक और शहर है मुंबई से आगे बढ़ा उस वहां का चुनाव आ रहा है वहां पे तो फिर ये तय था कि बीजेपी अपने बल पे भी लड़ सकती है और वहां चुनाव हम जीत सकते हैं तो हमें ऐसे धमकाओ मत ऐसे बारगेन मत करो हमारे से लेकिन वो मैसेज क्या उसका एक्सटेंशन जो है ना पूरे कंट्री में गया जहां जहां एलआई है बीजेपी के साथ सरकारों के अंदर उनको गया कि बैसाखियों की हमें जरूरत नहीं है. 

    सवाल: सर अमित शाह जी का जिक्र हो रहा है इसलिए मेरे मन में एक बात आई है. मैंने पिछले कुछ दिनों में देखा वैसे भी शुरुआत से अमित शाह जी मीडिया वाले एक्साइटेड रहते थे उनसे बात करने के लिए. लेकिन पिछले कुछ दिनों में खासतौर पे जबजब कोई बड़ा चुनाव आता है उससे पहले राइट फ्रॉम रिपोर्टर्स टू एंकर्स टू एडिटर्स सबको ये चाहिए कि अमित शाह जी से बात हो जाए तो एक वो एक्साइटमेंट का भाव देखा कि अमित शाह जी से पत्रकार मिल लें क्योंकि वो शायद गाइड करते हैं एक्सप्लेन करते हैं समझाते हैं कोई भी मुद्दा हो कोई भी सवाल हो उसका जवाब जरूर देते हैं. आपको भी ऐसा लगता है कि पत्रकारों में एक एक्साइटमेंट है अमित भाई से बात करने के लिए? 

    जवाब: बिकॉज़ ही टॉक्स सेंस ही इस क्रेडिबल जिसे कहना चाहिए ही इस नॉलेजेबल एंड ही नोस ओनली ही कैन गिव सम एक्सक्लूसिव टू यू पीपल कोई दूसरा एक्स तो उस एक्सक्लूसिव की चाह में सब पत्रकार जाते हैं और जहां तक मीडिया का सवाल है फॉर द लास्ट टू इयर्स अमित शाह इज़ अ चेंज पर्सन नाउ पहले उनके चेहरे से ऐसा लगता था ये नाराज है एक बार कहा भी था उन्होंने कि क्या कोई मेरा चेहरा ऐसा है चश्मा लगाता हूं थोड़ा सा नाराजगी कम दिखती है लोगों को बाकी मेरे चेहरे से लोग ऐसे समझते हैं मैं नाराज हूं. मैं नाराज नहीं हूं. तो अमित शाह कितने अमित शाह की जो इमेज है लोह पुरुष टाइप इमेज है. मतलब एक हार्ड इमेज है. उस तरह की कहना चाहिए भी रफ एंड टफ इमेज होती है जैसे एक पॉलिटिशियन की. तो वैसे लोग देखते हैं यार मतलब डरते हैं लोग और खौफ रहता है लोगों से मिलने का. बट चेंज पर्सन मीडिया वालों को बड़ी हैरानी हुई सुनके. ही इज़ वेरी सिंपल वेरी स्टेट अ वेरी ओपन दिस टाइम. वो संजीव श्रीवास्तव बता रहे थे. आप भी बता रहे थे वहां पे कि पत्रकारों से एक एक डेढ़-डेढ़ घंटा बैठ के बात कर रहे हैं. वो उनके सवालों का जवाब दे रहे हैं और एक्सक्लूसिव सीक्रेसी की जो लक्षण रेखा है बस उस पे खड़े होकर के उसके आगे का सब बता देते हैं वो. केवल एक दो परसेंट ऐसा होता है जो नहीं बता सकते है. तो इन दिस एंटायर प्रोसेस ऑफ़ इलेक्शन ऑफ़ बिहार अमित शाह इस एमर्ज एज ए मीडिया फ्रेंडली वन मोर मीडिया फ्रेंडली पर्सन. 

    सवाल: सर एनडीए के चुनाव प्रचार को आखिर कितना ज्यादा प्रभावित किया? जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ, धर्मेंद्र प्रधान, सीआर पाटिल, रेखा गुप्ता, केशव प्रसाद मौर्य और विप्लव देव के कैंपेन ने इलेक्शन के दौरान मैं सबसे पहले चाहूंगी जेपी नड्डा साहब के प्रचार के बारे में बात करें. 

    जवाब: देखिए ऑर्गेनाइजेशन उनके पास है. ऑर्गेनाइजेशन का सारा सिस्टम है उन्होंने सब सिस्टम को ठीक से रखा वहां पे यहां से रह के मॉनिटर किया और जो ऑ्गेनाइजेशन का जो हेल्प होती है, असिस्टेंस होती है इलेक्शन में वो सारी दिलवाई. राजनाथ सिंह जी हां वो गए उनका अच्छा था. एक पर्टिकुलर कास्ट बेल्ट है जहां पे उनका प्रचार हुआ. सात आठ मीटिंग उन्होंने वहां पर करी ही हैज़ ए गुड रेपुटेशन बिकॉज़ बिहार जॉइनिंग टू यूपी जो है वहां से तो इट वास यूज़फुल योगी आदित्यनाथ हां ये थोड़ा योगी तो देखो ही इस अमंग द थ्री नाउ क्राउड पुलर्स प्राइम मिनिस्टर अमित शाह एंड देन ब्रॉडली योगी कम्स इलेक्शन कंसर्न और नरेंद्र मोदी इस बात का एहसास है उनको और इसका उपयोग करते हैं और योगी मन से जाके उन मीटिंगों में भाषण देते हैं बोलते हैं और आप देखिए योगी की स्ट्राइक रेट भी देखिए अमित शाह के आसपास ही मिलेगी गी आपको 80 85 88% जो है ना उसकी स्ट्राइक रेट है और खास करके क्या है जो मुस्लिम बहुल इलाके हैं या जो जहां लगता है कि बहुत मुश्किल है और योगी जाते हैं वहां पे और योगी का मैसेज है तो मैंने कल पढ़ा कि योगी ने यूपी में भी क्या किया एक गुंडा राज स्टेट से जो है ना एक ग्लोबल उसको विंडो बना दिया यूपी को दैट वायर तो इस पूरे चुनाव में अगर हम वैसे अगर काउंट करें इंपैक्ट इन्फ्लुएंस के हिसाब से सो दिस इज़ नरेंद्र मोदी देन दिस इज़ विद इन बीजेपी अमित शाह एंड देन दिस इज़ आदित्यनाथ योगी जैसे कहना चाहिए ही स्टिल कंटिन्यूस टू बी वैल्यूबल सेट इन द पार्टी धर्मेंद्र प्रधान जी ऑफकोर्स वो तो कल मैंने देखा है प्रधानमंत्री ने उनको शाल को देके मान सम्मानित किया विनोद तावड़े के साथ जो है ही इज़ अ साइलेंट वर्कर आई थिंक ही फ्यू पीपल हु इस इक्वली क्लोज टू प्राइम मिनिस्टर एंड टू होम मिनिस्टर अमित शाह दैट वे जो है ग्रास रूट वर्कर हैं. पहले बिहार में काम कर चुके हैं. लकी हैं. 

    जहां जाते हैं चुनाव जीत जाते हैं. बहुत साइलेंट वर्कर हैं. पूरे चुनाव में आपने उनका नाम नहीं पढ़ा हुआ कहीं प्रेस में. दैट इज है लो प्रोफाइल. आई थिंक ही हैज़ डन वेरी वेल एंड आई बिलीव के सम असाइनमेंट मे बी ऑफिंग फॉर हिम. वैसे एजुकेशन है उनके पास में क्रिटिकल डिपार्टमेंट है और पार्टी अध्यक्ष की चर्चा चलती है और अगर इफ इफ द थिंग्स गो एस पर शेड्यूल आई थिंक ही आल्सो अमोंग द फर्स्ट थ्री टॉप कंटेंडर्स. सर आप हां वो तो देखो ही इज़ अ मास्टर ऑफ माइक्रो एंड मैक मैनेजमेंट वेरी क्लोज टू प्राइम मिनिस्टर एंड वर्केबल विद अमित शाह आल्सो ही डीड ए लॉट ऑफ़ थिंग्स इन बिहार एक्सपेरिमेंटेड और क्योंकि उनका पुराना एक्सपीरियंस था बेसिकली ही बिलोंग्स टू महाराष्ट्र बट जिसे कर्मभूमि कहना चाहिए गुजरात है उनका रोल था और रोल आप ये कहिए कि एज अ ऑब्जर्वर भी था रोल उनका दैट है और सबसे बड़ी बात ये है कि गुजरात के दो लोग हैं अमित शाह एंड पाटिल दोनों का वर्किंग अलग-अलग है दोनों का एरिया ऑफ़ ऑपरेशन अलग-अलग है बट स्टिल दिस पार्टी जो है ना ही डड सम गुड जॉब सम गुड ग्राउंड जॉब व्हिच अल्टीमेटली बेनिफिटेड द बीजेपी इन बिहार दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता शी स्मार्ट फेस अच्छा है महिला है अच्छा बोलती है व्यवहार कुशल है और जहांजहां गई है अच्छा था उनका सबसे बड़ी बात का उनका व्यवहार बहुत अच्छा है शी इस प्रैक्टिकल वो ऐसे जैसे कहते हैं ना टिपिकल शी इस नॉट ए टिपिकल वुमेन जो है पॉपुलर अच्छा इमैक्ट रहा उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद हां ठीक है उनका का एक अपना टारगेटेड एरिया था. अभी यहां जाना है वहां जाना है. दैट इज़ ठीक है. यूपी में इस बात की पॉलिटिकलेंस होती है कि अमित शाह प्राइम मिनिस्टर ने मेरा सिलेक्शन किया वहां के लिए और मैं चुनाव में जा रहा हूं से प्रभारी बनके कुछ बनके वहां पे जो है तो उसका माइलेज उसको बिहार से यूपी में मिलेगा जो है. 

    सवाल: सर इस पूरे चुनाव में और जिस तरीके से एनडीए ने जीत हासिल किया वो हम सभी ने देखा लेकिन चर्चा एक पार्टी की अगर है एनडीए के साथ जो है पार्टी एलजेपी आर की यानी कि चिराग पासवान की पार्टी की 29 सीटों में से 19 सीटों पर जीत हासिल की है तो पार्टी के इस प्रदर्शन पर आपका आकलन क्या? 

    जवाब: मैंने पढ़ा कहीं उसने लिखा था कि ही इज अ वन हीरो अमोंग ए मल्टीस्टार मूवी जिसे कहना चाहिए. तो ही इज बेनिफिटेड. स्ट्राइक रेट देखिए 80% से ज्यादा है. अपनी सीटों को लाना जो है और उसकी वैल्यू है वहां पे. आप देखिए और नीतीश कुमार से झगड़ा था उसका पुराना. हम तो प्राइम मिनिस्टर तो शुरू से चाहते थे कि इसको इन करो ऑन बोर्ड लाओ इसको पिछली बार इसने चेतों का नुकसान किया था नीतीश कुमार को तो उन्होंने उस मीटिंग में इसको बुलाया वहां पे इसने प्रधानमंत्री के सामने पांव छू के उनका आशीर्वाद लिया नीतीश कुमार का तो पैच अप हुआ तो उसका रिजल्ट सबके सामने है अभी कि नीतीश कुमार को बेनिफिट है एनडीए को बेनिफिट है और खुद उसको बेनिफिट है और ये कहना फिर उसमें जो है उसका कहना पर्सनालिटी उनका जो है वो बढ़ा जो है कद उनका स्ट्रेचर बढ़ा तो चीफ मिनिस्टर खुद उनके घर पे गए नीतीश कुमार चट पे जो है फिर उसके बाद वो कल उन्हें बधाई देने गए और यह पब्लिकली बयान दिया गया आई पर्सनली फील नितीश शुड कंटिन्यू एज द चीफ मिनिस्टर तो अभी क्या है कि ब्रांडिंग और कोऑर्डिनेशन अच्छा है नीतीश के साथ में प्लस क्या दिल्ली में अमित शाह नरेंद्र मोदी से अच्छा है तो अभी तो कह सकते हैं ही इज़ सम सॉर्ट ऑफ अ हीरो इन बिहार पॉलिटिक्स एट द मोमेंट.. 

    सवाल: सर क्या चिराग को केंद्र में महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलेगा और अगर पटना की बात करें तो उनकी पार्टी को डिप्टी सीएम की कुर्सी से और सर सवाल यह भी है कि क्या दिल्ली से पटना लौट सकते हैं? 

    जवाब: चिराग लौटने की बात तो उसमें चली थी तो उन्होंने कहा था कि चलो पटना एक नारा लगा था वहां पे लेकिन शायद दिल्ली ने मना किया होगा यही आप तो काम करो चुनाव लड़ने से कोई सेंस नहीं है. अब कुछ लोगों ने कहा उनको डिप्टी सीएम बन के यहां आ जाओ. नॉट फिजिबल जो है उनकी दूसरी ये मांग हो सकती है. मेरे यहां से भी एक डिप्टी सीएम दो. पर अमित शाह डिसाइड करेंगे इन द लार्जर पर्सेक्टिव जो है लेकिन एक तय है कि भ नाउ ही इमर्जेंट फिगर जो है पासवान जो है तो सर्टेनली ही विल गेट सम प्रमोशन इन दिल्ली कि फूड प्रोसेसिंग हटा के कोई इंपॉर्टेंट अच्छा मंत्रालय उनको मिलेगा टू शो ह कैपेबिलिटीज और मेरिट जो है तो कुल मिला के है कि ये चुनाव जो था उसके लिए एक अच्छा साबित हुआ. 

    सवाल: सर क्या जीतन राम मांझी के भी मंत्रालय में कोई फेरबदल हो सकता है? 

    जवाब: कोई छोटा-मोटा इधर तो ऑलरेडी एमएससी में काम कर रहे हैं. ठीक है. उन पे तो कोई ज्यादा मुझे ऐसा लगता नहीं है. उनके वही है जो पहले जीतते थे वही जीत के आए हैं. कोई ऐसा कोई खास नहीं है. ही हैज़ नो अदर ऑप्शन देन टू सपोर्ट एनडीए. इज़ ओके. कोई छोटा-मोटा और लगा दे तो लगा दे. एडिशनल चार्ज कहीं कोई हो तो..

    सवाल: सर किसी भी सिंगल पार्टी से ज्यादा तेजस्वी की जो पार्टी है वो ज्यादा वोट शेयर लेकर के आए. यानी आरजेडी लेकिन बड़ी मुश्किल से तेजस्वी यादव जो कि मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे वो बड़ी मुश्किल से अपनी सीट को बचा पाए. ऐसा क्यों हुआ? 

    जवाब: ये टैडी ऑफ़ फिगर्स है और एज अ मैटर फैक्ट तो ये है कि वो 143 पे लड़ा तेजस्वी और सामने वाले 100 पे लड़े 101 पे लड़े तो इसका तो वोट ज्यादा होना ही था. जी एक ये है लॉजिक अदरवाइज ये फक्चुअली करेक्ट है कि 23% वोट है सिंगल पार्टी के रूप में इसके पास में बीजेपी के 20 हैं. जेडीयू के 19 हैं. सो दैट अगर देखा जाए सिंगल पार्टी तो ही इज़ हाईएस्ट. पर क्योंकि अलायंस इनका ज्यादा बड़ा है ना ये. आप देखिए इस अलायंस का उस अलायंस का मैच नहीं है. उस अलायंस में अगर आते हैं तो 36% वोट जो है इधर आते हैं तो 47% वोट बनते हैं. दैट वे तो ये ठीक है. फ़क्चुअली आप जो कह रहे हैं ये करेक्ट है. लेकिन इसका खास रेलेवेंस नहीं है क्योंकि 143 पे लड़ा वो 100 पे लड़े जो कंपैरिजन का जो ग्राउंड है जिसे कहते हैं कि लेवल प्लेइंग फील्ड ग्राउंड जो है वो नहीं है इसके अंदर. हम इट जस्ट अ फिगर. 

    सवाल: सर तेजस्वी ने कहा था कि इस चुनाव के बाद नीतीश की पार्टी का बहुत दर्दनाक अंत होगा. पार्टी यानी कि जेडीयू कई हिस्सों में बट जाएगी, टूट जाएगी. लेकिन सर जिस तरीके से इस चुनाव में हमने नीतीश कुमार की ऐतिहासिक जीत देखी है और जिस तरीके का रिजल्ट रहा है क्या लगता है कि ये जो भविष्यवाणी है ये आने वाले दिनों में सच साबित हो सकती है. 

    जवाब: मे बी ट्रू अभी तो इट इज टू अर्ली टू से. यह बयान जब उन्होंने दिया होगा तो उनके मन में आशंका होगी कि बीजेपी अपना चीफ मिनिस्टर लाएगी और यहां एक शिंद क्रिएट होगा. दो-तीन टुकड़े हो जाएंगे अलग-अलग पार्टी के. एक वहां चला जाएगा. एक कहीं और चला जाएगा. जैसे कहते हैं एक यहां गिरा, एक वहां गिरा. ये सोच के उन्होंने बयान दिया. उस समय मुझे ऐसा लगता है. लेकिन अब इसकी ज्यादा रेलेवेंस नहीं है. क्योंकि अभी तो इट लुक्स ऑल फाइन. छ आठ महीने बाद जब बीजेपी अपना क्लेम मांगेगी मान लो साल भर बाद क्लेम मांगेगी. कुछ ज्यादा हलचल होगी पार्टी में तो कोई आश्चर्य नहीं कि नीतीश कुमार तो वैसे है ना कि क्लाइंबिंग डाउन है ना तबीयत भी ठीक नहीं है उम्र भी है सब बातें हैं देर से जो है तो उनकी भविष्यवाणी सही हो सकती है आफ्टर सम टाइम नॉट नाउ.. 

    सवाल: सर इन सबके बीच भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री आर के सिंह की अगर बात करें तो वो भी लगातार चर्चा में रहे अनुशासन हीनता का नोटिस दिया गया तो पार्टी छोड़ने का फैसला उन्होंने किया इस्तीफा दिया इसको लेकर आप पार्टी उन्होंने क्यों छोड़ी आखिरकार नोटिस जारी किया सवाल भी पूछा गया लेकिन जवाब देने से बेहतर उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी. 

    जवाब: ही इज अ ब्रिलियंट पर्सन, गुड पर्सन. लेकिन वो एक बात भूल गए कि सरकारी अधिकारी राज से नहीं लड़ सकता. सरकार से नहीं लड़ सकता. बेसिकली तो आप ब्यूरोक्रेट थे. जी. आपको इतना बड़ा अवसर मिला. तो ठीक है भाई अवसर मिला तो आप चुनाव हार गए 2024 में. तो आपने कहा कि भाई राज्यसभा टिकट दो मुझे. ऐसा सुना मैंने राज्यसभा नहीं मिला. फिर उन्होंने इस के लिए टिकट मांगा होगा एमएलए का. टिकट नहीं मिला. एक उनके मन में ऐसी मैंने सुना आशा रही थी कि मुझे पीएमओ में या किसी और बड़े दफ्तर में किसी बड़े मिनिस्टर के साथ में उनके मुझे अटैच करो उनके साथ में मेरी सन्योरिटी मेरी प्रतिभा इस तरह की है वो ऐसा कुछ था नहीं होने का वहां पे जो है पीएमओ इस वेरी रेस्ट्रिक्टेड एंट्री वेरी कैपेबल पर्सन रीज़ देयर एंड वेरी कैपेबल पर्सन आर वर्किंग देयर वहां कोई स्कोप नहीं किसी के ऐसे जाने आने का जो है ऐसा सुना मैंने उस समय कि उनकी इच्छा थी ऐसी तो कुल मिला के क्या हुआ नहीं बैठा था फ्रस्ट्रेशन आता है तो गुस्से में उन्होंने कह दिया यहां 62,000 करोड़ का बिजली का घोटाला हो गया है. इस तरह की बात आई है. तो कौन बर्दाश्त करेगा?
    तो निकाल दिया पार्टी से. उन्होंने खुद ने फिर इस्तीफा दे दिया आगे बढ़ के. जी ही एक्टेड सेंसिबली. इस्तीफा दे दिया उन्होंने आके और फ्यूचर में तो कोई ऐसी बात नहीं है. बस फ्यूचर अब यही है कि भ ही शुड मेक ह रिलेशनशिप ओके वि द पार्टी. सरकारी आदमी हो के लंबे समय तक आप सरकार से नहीं लड़ सकते. 

    सवाल: सर किसी वक्त लालू यादव को अपनी किडनी देने वाली उनकी बेटी रोहिणी आचार्य घर छोड़ते समय बहुत इमोशनल नजर आई और इमोशनल स्टेटमेंट उन्होंने दिया. सर क्या अब इस पर राजनीति होगी पटना में भी, दिल्ली में भी और सर सवाल ये भी है कि आखिर ये जो स्क्रिप्ट है उनको लेकर कि लिख कौन रहा है? सर साथ ही एक और चीज ऐड ऑन करना चाहूंगी जो उनके भाई हैं तेज प्रताप यादव. क्या उन्हीं की तरह अब इनके भी जो कदम है वो बीजेपी की ओर बढ़ेंगे? 

    जवाब: 100% शी इज़ मूविंग टुवर्ड्स बीजेपी. बीजेपी में रेड कारपेट है. उसके लिए भी उसके भाई को तो ले लिया है. उसने एनडीए का सपोर्ट कर दिया एक तरह से. देख एक उसको वाइस सिक्योरिटी भी कुछ दिनों पहले दे दी थी. और लोग खुद जाते हैं गेट पे नॉक करते हैं. तो क्या करें वो? दैट वे जो है तो लगता है मुझे नोक करने वाली हैं. कहने को उन्होंने ये भी कहा मेरी तीन बहनें और भी छोड़ के आ गई हैं. कोई सेंस नहीं उस बात के अंदर. खुद ने छोड़ा. यह अनफॉर्चूनेट घटना है. सबसे बड़ी बात है उसने जो बयान दिए ना वो बहुत इमोशनल है और सारे देश की महिलाओं को झगझोरने वाले हैं. जैसे उसने कह दिया कि मुझसे मेरा मायका छुड़ा दिया. मुझे अनाथ बना दिया. वेरी टच स्टेटमेंट्स. तो ऐसा लगता है कोई ना कोई मास्टरमाइंड आदमी ब्रिलियंट ऑथर जो है ना राइटर इसकी स्क्रिप्ट को लिख रहा है. उसके पोस्ट की जो है आई सैल्यूट टू दैट पर्सन. हुस इट इज जो है ये तो वो रिमोट कंट्रोल पे है. इस तरह बयान की जो बात चलते हैं. तो अनफॉर्चूनेट है घटना. एक महिला के नाते सहानभूति है. बाकी पारिवारिक मुद्दे हैं. ये तो एक पक्ष है ना. उनका पक्ष क्या है? किसी को पता नहीं है. दैट विल है. लेकिन फिलहाल वो मीडिया की हीरो है. जिसे कहना चाहिए सारा मीडिया उसको फोकस कर रहा है और देश ऐसा लगता है और लोगों की तरफ वो भी उसके कदम बीजेपी की तरफ बढ़ेंगे ऐसा लगता है मुझे. 

    सवाल: सर आखिर लंबे समय तक हमने देखा इलेक्शन में किस तरीके से सीएम फेस को लेकर महागठबंधन की बात करें तो कांग्रेस और आरजेडी में तेजस्वी यादव के चेहरे पर आम सहमति नहीं बनी लंबे समय तक. अब सर जब इलेक्शन हुआ तो क्या आपको लगता है कि कितना नुकसान इससे महागठबंधन को हुआ?

    जवाब: नुकसान तो होता ही है. देखो आपका सीएम फेस ही क्लियर नहीं है. 17 दिन तक आप घर बैठे रहे. दोनों राहुल गांधी विदेश घूम घूमते रहे और तेजस्वी घर बैठा रहे कि मेरा फेस डिक्लेअ नहीं हुआ. नुकसान तो होता ही है. लेकिन अब क्या है? तो इस बार तो आंधी थी, सुनामी थी नरेंद्र मोदी की टू सम एक्सटेंट नीतीश कुमार की तो कहां टिकते? तो उनको कोई ज्यादा अफसोस इसका नहीं होना चाहिए क्योंकि डिले हुआ. लेकिन ऑफ कोर्स एज अ पार्ट ऑफ़ इलेक्शन मैनेजमेंट उसको बहुत पहले डिक्लेअर कर देना चाहिए था. हां या ना में जो भी है फैसला पहले होना चाहिए था. डिले हैज़ बीन देयर. 

    सवाल: सर चुनाव में कांग्रेस और महागठबंधन की हार के बाद अब पूरे बिहार में यह चर्चा है कि तेजस्वी और राहुल गांधी में से एक दूसरे को किसने निपटा दिया? ये सवाल हर कोई अब सोच रहा है. इसका आकलन भी कर रहा है. इसी के साथ आगे एक सवाल और सर जोडूंगी कि फोन पर ऐसी कुछ जानकारी थी कि दोनों के बीच में किसी मुद्दे को लेकर तल्खी हुई है. जो बात नहीं बनी आपस में वो क्या रही होगी?

    जवाब: पहला आपने कहा किसने किसको निपटाया? हम तो टिकट वितरण जो हुआ उससे कांग्रेस वाले भड़के हुए थे. माहौल अच्छा नहीं था. और शुरू से ही राहुल गांधी का थोड़ा सा इसके प्रति डिस्टेंस का भाव था. बिकॉज़ ऑफ इमेज क्राइसिस, बिकॉज़ ऑफ़ जंगल राज क्राइसिस. ये सारी बात थी. तो पोस्टर जो बने तो उसमें इसका राहुल गांधी का फोटो ही नहीं लगा. वहां के बिहार कांग्रेस अध्यक्ष का फोटो ही नहीं लगा. केवल तेजस्वी का लगा तेजस्वी प्रण करके. उसकी प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई जो अनाउंस हुआ तो वहां पे ना तो ये कृष्ण अलारू एक नया आविष्कार है राहुल गांधी का. वहां वो वहां पे थे वहां पे प्रभारी हैं वो नहीं थे वहां पे और बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष भी नहीं थे तो तेजस्वी को बुरा लगा उसके बाद फिर जो इलेक्शन कैंपेनिंग ही हुआ तो भी राहुल ने तेजस्वी प्रण को एंडोर्स नहीं किया हर घर में नौकरी उन्होंने एंडोर्स नहीं किया एक तरह से जो है फिर एक बार क्या हुआ कि एक बयान देते राहुल गांधी ने कहा कि देखो मैं तो पूंजीपतियों के घर नहीं जाता मुकेश अंबानी का मुझे निमंत्रण आया था मैं तो नहीं गया वहां पे जो है तो उनको पता था कि ये लालू परिवार पूरा गया था वहां अखिलेश यादव भी गए गए थे और स्पेशल प्लेन लेके गए थे वहां से भाग ले वहां फोटो भी खिंचवाए थे तो जब यह बयान दिया राहुल गांधी ने पब्लिक स्विच बोलते समय तो तेजस्वी का चेहरा देखने लायक था कि क्या कह रहे हैं क्यों मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं अनक्कल्ड फॉर कहने की कोई जरूरत नहीं थी ये इस तरह कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिनसे धारणा बनी फिर क्या हुआ कि बहुत सारी सीटों पे फ्रेंडली लोग खड़े हो गए तो आम धारणा अभी भी लोगों की ये है कि भाई और जो यहां से लोग गए थे इवन अशोक गहलोत तक गए थे उनका फीडबैक उनके पास लोगों का यह था कि यार ये तेजस्वी तो कांग्रेस वालों को हरा रहा है. हम ग्राउंड में जो है इस तरह का तो ये इंप्रेशन था वहां पे किसने किसको निपटाया लेकिन फैक्ट है दोनों निपटाया तो है एक दूसरे को. फोन पे मैंने सुना ये कि भाई राहुल गांधी ने एक दिन फोन किया तेजस्वी को कि टिकटों का तय करो टिकट वितरण तय करो. नुकसान हो रहा है. टेक ए कॉल जो है तो बातचीत में कोई तल्खी आ गई. दोनों यंग ब्लड है. कोई बातचीत ऐसी आ गई. तो मैंने सुना कि तेजस्वी ने कह दिया कि ठीक है फिर आप अकेले ही चुनाव लड़ लो. हम भी अकेले चुनाव लड़ लेते हैं. तो राहुल गांधी बहुत अपसेट हुए. उनकी ऐसी उम्मीद नहीं थी. तो देन राहुल गांधी रश टू हेड क्वार्टर्स. 

    सवाल: सर इसी के साथ दोनों के बीच में तेजस्वी और राहुल के बीच में ये जो संवादहीनता रही यानी कि कम्युनिकेशन गैप एक तरीके से देखा गया. पूरे चुनाव में देखा गया. इसमें सोनिया गांधी की भूमिका कहीं ना कहीं मानी जाती है इस गैप को सुलझाने में. क्या आपको लगता है कि ऐसा रहा?

    जवाब: सोनिया गांधी चिंता भी उनको कि टूट जाएगा गठबंधन से. तो श्री रैंक ऑफ लालू यादव. और उसने कहा बच्चे हैं तो आपस में लड़ लेते हैं. हम तो मैच्योर हैं और हमारे 30 साल के रिश्ते आज के थोड़ी हैं. तो लेट्स मीट एंड फाइंड आउट क्या चाहते हैं आप? तो उन्होंने वही बात कही कि एक तो तेजस्वी को इमीडिएटली डिक्लेअ करो सीएम फेस जो है और ये कृष्णा आलू इसको हटाओ. कोई सेंसिबल आदमी लगाओ जो बिहार को जानता हो यहां पे और ये कंप्लेंट्स है लोग पैसे खा गए टिकटों में इसकी जांचवाच कराओ आसपास. सोनिया गांधी एग्रीड फॉर ऑल दिस. और उन्होंने कहा मैं एक सीनियर आदमी को भेजती हूं पटना जो है फिर सीनियर आदमी गया.

    सवाल: सोनिया गांधी के दूत बन गए हमेशा की तरह और जो कांग्रेस के ट्रबल शूटर कहे जाते हैं अशोक गहलोत गए और फिर उन्होंने सब सॉर्ट आउट करवाया. 

    जवाब: उन्होंने करवाया और ये बहुत सुखद आश्चर्य था कि इनस्पाइट ऑफ पायलट इंसिडेंट और वो जो उसमें सारा राजस्थान में हुआ था सोनिया स्टिल ट्रस्ट अशोक गहलोत एंड स्टिल फील्स के ही इज अमंग वेरी वेरीरी फ्यू पर्सन इन द कांग्रेस हु कैन हैंडल सच सिचुएशनंस. तो इससे एक मैसेज और क्लियर गया है कि राजस्थान में 2028 में अगर कांग्रेस सरकार बनती है तो गहलोत इस अगेंस्ट सोनिया चॉइस. सोनिया गांधी ने इंस्पाइट ऑल दिस जो है उनको बुलाया. उनको सबसे सेंसिटिव काम ये जो है ये सौंपा तो पटना गए वो जाके लालू यादव से एक डेढ़ घंटा उनकी बात हुई. तो लालू यादव ने यही बातें कही जो उन्होंने सोनिया गांधी से कही थी. उन्होंने मान ली. शाम को जो प्रेस प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई और उसमें डिक्लेअ हो गया. कॉमन कैंडिडेट तेजस्वी यादव और वह कृष्णा आलू था उसको यूथ कांग्रेस इंचार्ज पद से हटा दिया कहीं और लगा देंगे कर देंगे जो भी है उसको तो पेसिफाई हो गया पूरा का पूरा लालू यादव और वो जो है तो अशोक गहलोत आ गई करके उसको अब बाद में है ना पॉलिटिक्स है ये तो तो पॉलिटिक्स में तो हमेशा विरोध रहता है ना तो राजस्थान में क्या सचिन पायलट अशोक गहलोत का चलता था अब दिल्ली में भी अशोक गहलोत और कोई ना कोई इस तरह की वॉइस ऑफ़ डिसेंट होगी वहां तो उसने भी ये आलाकमान में कहा साहब ये ये क्या हुआ? ये तो सरेंडर करके आ गए अशोक गहलोत को. नौ सीटें छोड़ दी. 61 में से 15 सीटों पे तो वो फ्रेंडली कंटेस्ट कर रहे हैं आके. बट सोनिया डिड लिसन ऑल दिस थिंग्स. तो रेलेवेंट स्टोरी ये है कि अशोक गहलोत को जो काम दिया गया था. तुम इसको सरेंडर को या कुछ भी करो. वो उसको करके अच्छे से आ गए. वहां से अनफॉर्चूनेटली चुनाव हार गई पार्टी. तो कल अशोक गहलोत को खड़गे ने बुलाया था. शायद उनसे बात हुई होगी. लेकिन बात क्या करो? जब तक राहुल गांधी किसी की बातों का मतलब नहीं है. दैट विल है तो अभी तो लिमिटेड बात नहीं थी कि अशोक गहलोत को जो काम सौंपा गया था उन्होंने उसको अच्छे से किया एंड सोनिया स्टील ट्रस्ट अशोक गहलोत.. 

    सवाल: सर वर्कर्स के लिए ये जो हार है वो बड़ी डिसपॉइंटिंग है मतलब शर्मनाक लेवल की हार है. लेकिन उसके बावजूद मेरा खुद का पर्सनली आपसे ये समझना है आलाकमान का जो रिएक्शन आया हार के बाद या राहुल गांधी क्या कभी इतनी हार के बाद कोई नैतिक जिम्मेदारी लेंगे? 

    जवाब: लगता नहीं ऐसा मुझे तो यह भी लगता है उनको का एहसास ही नहीं होगा कि क्या डिबेकल हो गया है बिहार में इतना बड़ा डिबेकल हो गया है मतलब मुझे ऐसा लगता है क्योंकि वो मीटिंग हुई वो कहीं मस्कट या कहीं थे तो मां ने बुलाया होगा पार्टी प्रेसिडेंट ने इन द सेंस पार्टी प्रेसिडेंट मींस प्रैक्टिकली पार्टी प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने जो है उनको बुलाया वो आ गए मीटिंग हुई वही जो चार आदमी बैठते हैं मीटिंग में वो आदमी बैठे केसी अजय माखन ये खड़ गए राहुल गांधी तो मैंने सुना है कि लालू यादव और उनसे बात हुई तेजस्वी से और एक जस्ट एक फॉर्मल जैसे होता है एक समझ लो अभी हिंदी में एक दूसरे के दुख सुख बांटना आपस में समझो या हार का हार पे है कि बैठक टाइप होती है जैसे अफसोस जाहिर करते हैं सब लोग कि यार बुरा हुआ चलो मिलके काम करते हैं दैट इज लेकिन आपका सवाल है कि क्या राहुल प्रायश्चित करेंगे या करेंगे आई डोंट थिंक ऐसा उनके वर्किंग इस तरह का है नहीं खूफ रहने के हिसाब से है तो मीटिंग मीटिंग हो भी फोन ऑन हो गए. अशोक गहलोत को गल बुला लिया. वो भी जाके आ गए. असली मुद्दा वही है जब तक राहुल गांधी विल नॉट स्टार्ट एक्टिंग एस पर द प्रोसीजर जिसे कहते हैं. तब तक ये सारी बातें आयु आशीष ही रहेंगी. आज बिहार में आ रहे हैं. कल को आसाम हार जाओगे फिर बंगाल हार जाओगे. तो इशू इज़ लार्जर मोर देन द कांग्रेस रिएक्शन. तो लेट्स सी अब जय राम, रमेश, अजय, माखन, पवन खेड़ा कितना कर पाते हैं उसके अंदर ऑल सेड एंड डन. तो इट इज टू बी सीन. 

    सवाल: सर लालू या फिर तेजस्वी का रिएक्शन क्या रहा? उन्होंने क्या कहा? जब यह मुख्यमंत्री बनने का सपना उनका एक बार फिर टूट गया. 

    जवाब: उन्होंने यही कहा अभी ईसी रिस्पांसिबल है इलेक्शन कमीशन. ही इज़ अ मैन ऑफ़ द मैच. मंगलिंग हो गया एसआर में कपला हो गया है और हम चुनाव हार गए हैं. 80% की जो रेट है 88% की जो स्ट्राइक रेट है हमने जीवन में नहीं सुनी. तो उन्होंने सारी जिम्मेदारी उन्होंने और कांग्रेस दोनों ने एसआईआर को सौंप दी है. मतलब इलेक्शन कमीशन के माथे उसको डाल दिया है. और कांग्रेस ने फिर यह भी कहा है कि हम 12 राज्यों के लोगों को बुला के 18 तारीख को मीटिंग करेंगे. एसआर का विरोध करो. संगठित हो के विरोध करो. एसआईआर का काम चल रहा है मालूम है आपको वो फरवरी में कंप्लीट होगा. सारा जज है. तो बस इस तरह का रिएक्शन दिया उन्होंने ही मस्ट बी वै अपसेट. 48 घंटे तो तेजस्वी बाहर ही नहीं आए. सदमा इतना बड़ा था. प्राइम मिनिस्टर ने ठीक कहा है कि जब हार इतनी बड़ी होती है तो उभरने में कई महीने लग जाते हैं आदमी को तो तेजस्वी को भी कई महीने लगेंगे खड़ा होने में समझ नहीं आ रही कि हुआ क्या ये तो इनिशियल इलेक्शन तो क्लूलेस है वो भी पर उसके मन में एक बात का अफसोस जरूर है कि अरे कांग्रेस ने मैचिंग सपोर्ट नहीं दिया हमको जैसे एनडीए में क्या है बीजेपी ने मैचिंग सपोर्ट दिया जेडीयू को वाइसरसा तो मेरे यहां कांग्रेस का सपोर्ट मुझे वैसा नहीं आया जैसे मैं खड़ा होता इट्स अ वन वे ट्रैफिक लाइक दिस ऐसा उनका मानना है मन में जो सो ठीक है. 

    सवाल: सर इस पूरे माहौल में राहुल गांधी की स्विच ऑन स्विच ऑफ पॉलिटिक्स की उसको आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: वो तो है अनफॉर्चूनेट है लेकिन क्या करवाओ आप कुछ हो नहीं सकता उसमें उनका ये कि अब जैसे एसआर का पूरा आंदोलन चला जब वक्त आया तो नहीं थे अवेलेबल चले गए. अब इस चुनाव में जो है रैली करी 15 दिन तक वहां यात्रा करी उसके साथ तेजस्वी के साथ में अचानक फिर वहां चले गए दक्षिण अफ्रीका जी मैंने पढ़ा कि कोलंबिया कॉफी है उसकी बारीकियां समझने का आगे मैं देखता हूं मतलब लीव पे वेकेशन पे चले गए एक तरह से आप बताओ इलेक्शन कैंपेन अपने टॉप पे है आपने यात्रा खत्म करी है आप 15 दिन बाहर चले गए ऐसे टाइम पे ऐसा थोड़ी होता है किसी इलेक्शन के अंदर 15 दिन चले जाओ बाहर आप फिर मतदान से पहले फिनलैंड चले चले गए चलो भाई कोई बात नहीं एक दो दिन की बात है फिर जर्मनी जा रहे थे फिर कहीं मस्कट आ गए फिर बुला लिया सोनिया गांधी ने आ यहां आ गए तो कोई मजा नहीं है बात करने का जो है तो इसी अनिश्चितता के माहौल में कौन बात करेगा और कौन कैसे क्या करेगा तो इसलिए है वो स्विच ऑन स्विच ऑफ है तो लेट्स ओनली विश कांग्रेस ओनली विशेस दैट वे जैसे अपन कहते हैं कि भ इनका ठीक हो जाए कुछ आपस में हिसाब किताब जो है कम्युनिकेशन नॉर्मल हो जाए राहुल गांधी स्टार्ट्स बिहेविंग एज अ नो नॉर्मल ह्यूमन बीइंग बस कांग्रेस वाले यही दुआ कर रहे हैं. 

    सवाल: सर और इस पूरे चुनाव में वोट चोरी अभियान बहुत जोर शोर से उठाया गया इसका असर चुनाव में कितना रहा आपका क्या आकलन है? 

    जवाब: कांग्रेस ने उठाया था राहुल गांधी ने उठाया था असर कैसे होगा 10 अक्टूबर लास्ट डेट थी कि अभी आपत्तियां लाओ कोई नाम वोटर का जोड़ना है बताओ हटाना है तो बताओ अपील ही फाइल नहीं की किसी ने पता लगा राहुल गांधी कहां है? विदेश में है. यहां किसी की हिम्मत नहीं पड़ी उनको फोन करने की के सर क्या करना है इसमें? इलेक्शन कमीशन की डेट आ गई. सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. कुछ नहीं फाइल नहीं किया. तो इलेक्शन कमीशन ने पलट के कहा मैंने अखबार में पढ़ा. टीसी हिट्स एट राहुल एंड आस्क हिम व्हाई डिडंट यू फाइल द अपील जो है ये अपील ही फाइल नहीं करी. तो सारी बात ही खत्म हो गई. आपका सारा कन्विक्शन ही खत्म हो गया. उस बात का जो आपने मीडिया में सर साहब ने कहा था. अब क्या कहो इस पर कोई दैट वे जो है दिस इज ऑल.. 

    सवाल: सर और चुनाव के वक्त ही कांग्रेस का सीताराम केसरी को याद करना यह भी आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: ठीक है दे रहा है दुरुस्त आयत यू मानिए अब 25 वर्षगांठ थी उनकी तो पार्टी में 24 अकबर रोड पे जो है श्रद्धांजलि हुई सब हुआ अच्छी बात है जब जिंदा थे तो थोड़ा सोनिया गांधी से खटपट हो गई थी लोगों को लगा था कि सोनिया गांधी को रिप्लेस करना चाहते हैं उधर जो है देवगोड़ा ने उनको ऑफर दिया था कि मेरी सरकार मत गिराओ मैं तुम्हें राष्ट्रपति बना देता हूं ऐसा तारिक अनवर ने कहा पिछले दिनों दैट वे जो है तो कुल मिला के क्या है कि चलो फिर प्रधानमंत्री ने भी कहा उन्होंने अटैक किया तो मौका छोड़ते नहीं है ना देखिए मशीनरी जो है पीएमओ की इतनी स्मार्ट और इतनी एक्टिव है कि कोई बयान आता है कोई घटना होती है एक मिनट में वो प्राइम मिनिस्टर के पास पहुंचती है तो जैसे ही घटना आई कांग्रेस ने उनको याद किया स्मृति काल क्या किया श्रद्धांजलि दी इमीडिएटली बयान आया कि जीवन काल में तो आपने उन्हें अपमानित किया था आज आप श्रद्धा कर रहे हैं उससे क्या मतलब है इस बात का तो पिट गया उनका जो था एक तरह से जो है तो कुल मिला के अच्छी बात है उनको याद या दैट्स ऑल.. 

    सवाल: सर कांग्रेस के चुनाव परिणाम देखकर ऐसा लगा कि जैसे कांग्रेस को बहुत पीछे धकेल दिया गया है. आपको लगता है कि कांग्रेस ने सब कुछ राहुल गांधी पर छोड़ दिया था इस बार और इसके परिणाम फिर क्या होंगे? 

    जवाब: देखो सब कुछ छोड़ने का तो इस बार की बात तो जन्म से जब से राहुल गांधी ने सब उन्हीं पे छोड़ा हुआ है. प्रॉब्लम यह है मैंने पहले भी कहा था ना विद ऑल ड्यू रिगार्ड्स टू राहुल गांधी कि राहुल गांधी इज़ एन एसेट एज वेल ऐ ही इज़ अ लायबिलिटी इन द पार्टी. कांग्रेस राहुल के बिना भी नहीं चल सकती, राहुल के साथ भी नहीं चल सकती. यह डलेमा है कांग्रेस का और कई सालों से चल रहा है और पता नहीं कब तक चलेगा. जब विदेश चले जाते हैं तो कई बार ऐसा लगता है पूरी पार्टी छुट्टी पे चली गई है. कम्युनिकेशन का इशू है ना. आज विदेश चले गए हैं. मान लो अशोक गहलोत की बात करना चाहे तो चारछ बार फोन लगाने पड़ेंगे. सुबह तब इतने सीनियर आदमी को भी अगर करना पड़ेगा तब भी ढूंढना पड़ेगा. तो कम्युनिकेशन जब तक नॉर्मल नहीं होगा राहुल गांधी से पार्टी के फंक्शनलिस्ट का पार्टी के लोगों का ठीक है ना एक दो लोगों की एक्सेस है मान लो अजय माखन की एक्सेस हो गई फॉर ए मोमेंट मान लो तो जय राम रमेश नहीं कर पाएंगे या पवन खेड़ा उत्त नहीं कर पाएगा या और जो लोग हैं जब तक डायरेक्ट एक्सेस नहीं होगी डे टू डे एज ए कॉमनर जो है तब तक पार्टी कैसे उठेगी वहां से तो वो उत्तराधिकारी तो वही है पार्टी के सोनिया गांधी उत्तराधिकारी वही है मैंने कहा और पार्टी छोड़ के जाने का कोई किसी का कोई ऐसा इशू अभी उस तरह से नहीं होता रिस्की है मामला जो है तो कांग्रेस तो भाई ऐसे ही चलेगी जिसे कहना चाहिए कि एक आदमी ने मुझे कल ये कहा कि भ आप तो ये कह दो कांग्रेस भाग्य के भरोसे है. तो लेट्स कंक्लूड. 

    सवाल: सर मल्ला वोटों को आकर्षित करने के लिए महागठबंधन के मुकेश सैनी कार्ड आखिर क्यों फेल हो गए? और सर सवाल यह भी है कि आखिर आरजेडी और कांग्रेस के हाथों क्यों मुकेश सैनी अपमानित हुए?

    जवाब: भाग्य ट्रेजडी अनफॉर्चूनेट ऑल सिंपथीस टू साहनी जो है 15 सीटें उसको मिली थी ठीक है और राहुल गांधी खुद चाहते थे कि इसको पार्टी में ऐड करो यार इस महागठबंधन में लाओ इसको मला वोट्स को इस बार एनडीए से अपन यहां पे लाते हैं तो मनोहार करके उसको लाए एक तरह से जो है 15 सीटें दे दी बाद में मालूम पड़ा दो पे आरजेडी के लोगों ने पर्चा भर दिया जाके वहां वहां से निकल गई फिर एक में क्या है जो पर्चा कैंस िल हो गया उसमें जो है एक में फिर कोई फ्रेंडली कंटेस्ट में खड़ा हो गया तो चार सीटें निकल गई बाकी रह गई 11 सीट अब 11 सीट पे वो लड़े मुकेश साहनी और सब पे हार गए उसका भाई था रियल भाई उसकी सीट पे एक मुस्लिम कैंडिडेट खड़ा हो गया आरजेडी से खूब मनाया उसको वो माना ही नहीं उसने पर्च वापस नहीं लिया तो मैसेज चला गया कि भ आरजेडी वाले जो है ये मतलब जो पार्टी है इनका जो है ग्रुप है ये एक मुसलमान के लिए हिंदू को अपमानित कर रहे हैं तो मतलब और नाराज हो गए और इसको सन ऑफ़ मल्ला कहा जाता है सानी को तो मल्लाओं का वोट भी लगता है एनडीए में चला गया अनफॉर्चूनेट मतलब वो पॉलिटिक्स में ऐसा नहीं होना चाहिए एक एक स्टैंडर्ड एक कुछ डिसेंसी डेकोरम मेंटेन होना चाहिए इस तरह हमलेशन और सब पब्लिकली नहीं होना चाहिए नॉट अ गुड थिंग तो.. 

    सवाल: सर क्या इस हार के बाद ताश के पत्ते की तरह बिखर जाएगा महागठबंधन? 

    जवाब: देखो अभी तो इमीडिएटली तो कोई किसी को छोड़ेगा नहीं ऐसा लगता है यूपी का चुनाव आ रहा है और कुछ आ रहा है इस तरह से लेकिन फ्यूचर अच्छा नहीं है. अब जो गठबंधन था तब भी तो चर्चा आ रही थी. एक दूसरे को निपटाने में लगे हुए थे. तो आगे भी कुछ ऐसा रह सकता है. अब बात यह है ना कि बिना कांग्रेस के भी अगर बीजेपी को हराना है बिना कांग्रेस के हो नहीं सकता. और कांग्रेस कैसी है ये आपके सामने है. इसलिए बीजेपी को कभी हरा ही नहीं सकते आप. जब तक कोई टावरिंग लीडर कांग्रेस में नहीं है और कांग्रेस बराबर का उस तरह से टक्कर नहीं दे. गठबंधन बनेगा ही नहीं. दैट वे. तो गठबंधन एक क्या है कि पेपर ऑफ एक पेपर फॉर्मेलिटी रहेगा. कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं बिखरे कुछ लोग जुड़ते रहेंगे आते रहेंगे जाते रहेंगे कोई मतलब सेंस नहीं है उस बात का जो है ये बिखर जाएंगे तो बिखर जाएंगे नहीं बिखरेंगे इकट्ठे रहेंगे तो इसका कोई मतलब नहीं है नरेंद्र मोदी अमित शाह के सामने इनका बिखरना न बिखरना कोई मायना नहीं रखता. 

    सवाल: सर लेकिन वादा करने के बाद भी तेजस्वी यादव ने हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम को दो सीट नहीं दी तो सर क्या इसका असर भी अब झारखंड सरकार पर दिखेगा? 

    जवाब: देखो हेमंत बेसिकली नाइस गाय कंपेरेटिवली ऑनेस्ट पर्सन और शरीफ आदमी है जैसे सुनते हैं मतलब मिला नहीं कभी 20 साल पहले कभी शायद मिला था बिहार में ईटीवी में जब जाते थे दैट इज है तो उसने सज्जनता से चुनाव उनका चुनाव हो रहा था वहां पे रांची में तो आरजेडी को छह सीटें दे दी छह मांगी छह दे दी उन्होंने और चार जीत गए वहां पे और उस चार में से मंत्री बना रखा उन्होंने उसको इंडस्ट्री मिनिस्टर बना रखा इतना इंपॉर्टेंट और पहले का एक व्यक्ति था उनका जीता वो भी मंत्री बना हुआ तो उदारता सदाशता आप देखिए हेमंत सोरेन के दोद मंत्री इनके बने हुए हैं वहां पे इंडस्ट्री भी इनके पास है वहां इनसे तय हुआ कि भाई दो सीट देंगे तो बेचारा चल के पटना की रैली में भी आया इन सबके साथ खड़ा हुआ राहुल गांधी के साथ आके बाद में मुकर गए आरजेडी वाले ऐसा सुना मैंने एमुलेशन फील हुआ उसको इंसल्टेड हुआ उसने कहा मैं अपने छह कैंडिडेट खड़े कर देता हूं तो लोगों ने समझाया छोड़ो यार अब क्या जाना क्लोज तो नहीं खड़े किए उसने और उसके मन में एक पीड़ा तो है ना ये तो उसके मन में आ रहा है मैं इन दोनों को निकाल बाहर करूं इनके मंत्री मेरे यहां बैठे हैं जो तो लेट्स सी लेकिन एक एक सोरनेस कहना चाहिए एक खटास तो आई है समंद मेरी बहन.. 

    सवाल: सर क्या बिहार में हुई कांग्रेस की इस अप्रत्याशित हार के बाद अब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ कोई प्री पोल अलायंस करना चाहेंगे? 

    जवाब: मन तो नहीं है उसका बट हैज़ नो ऑप्शन कांग्रेस इस चार वोट यके साथ तो खड़े होते हैं ना उसको काउंटर करने में बीजेपी को योगी को काउंटर करने में टू सम एक्सटेंड मायावती एक फोर्स के रूप में आएगी इस बार मायावती विल बी स्पों्सर्ड मेजर फोर्स इस बार जो है मायावती का बड़ा इस बार लगता है चुनाव के अंदर रोल रहेगा उसका साधन सुविधाएं भी लोग फ्रेंडली फर्सेस उपलब्ध कराएंगे जो है और वो एक फोर्स के रूप में उभर के सामने आ सकती है मायावती बेस तो है ही अब काफी समय से नहीं है तो अभी बीच में उन्होंने रैली की थी 1 लाख लोग आ गए थे लखनऊ के अंदर जो है तो वो ये अखिलेश यादव भी एट द एंड ऑफ़ द डे सो लेकिन हां अगर टिकटों के वितरण पे झगड़ा हुआ और कांग्रेस ने फिर कहा मेरे को इतना शेयर चाहिए तो अखिलेश यादव मना कर सकते हैं अकेले भी लड़ सकते हैं टिकटों पे. ऐसा लगता है मुझे. इन बिहार का लेसन सामने है. कांग्रेस इज़ डीमोरलाइज्ड. हो सकता है मान जाए रीज़नेबली उन दोनों में हो जाए कंप्रोमाइज तो हो सकता है. अदरवाइज यू लेफ्ट टू अखिलेश यादव. तो ही इज़ आई थिंक परहेप्स नॉट वेरी कीन टू गो अलोन. 

    सवाल: सर एक वोटर की निगाह में एनडीए गठबंधन और विपक्ष के महागठबंधन में क्या बेसिक अंतर है कि जिस कारण जो वोटर्स हैं उन्होंने एनडीए को चुना? 

    जवाब: भरोसा. और एक बेसिक कारण क्या है उनके पास में? उनके पास नरेंद्र मोदी नहीं है. उनके पास अमित शाह नहीं है. उनके पास स्ट्रेटजी नहीं है. उनके पास मरने मारने मरने मारने वाली बीजेपी वर्कर्स की सेना नहीं है. जो 24 घंटे काम करते हैं. एक तरह से ये बेसिक डिफरेंस ये है. फिर ट्रस्ट क्राइसिस से मैंने कहा पहले आपसे मोदी केस पे ज्यादा भरोसा करते हैं लोग. उनप भरोसा नहीं करते हैं. एंड इट हैज़ बीन प्रूव्ड नंबर ऑफ़ टाइम्स. सो दिस इज़ अ बेसिक डिफरेंस. 

    सवाल: सर इस चुनाव में आखिर मुस्लिम कार्ड कैसा चला? और दूसरा यह कि आजकल लगातार बिहार की अगर हम बात करें तो मुस्लिमों का राजनीतिक महत्व क्यों घटते चला जा रहा है? 

    जवाब: 18 19 सीटें थी पिछली बार ओवरऑल मिला के सब पार्टियों से. इस बार 11 पे जीते हैं. दैट वे जो है और ये फैक्ट है कि महत्व तो गिर रहा है लगातार. उस तरह से क्योंकि एक बार बीजेपी ने प्रयोग करके दिखा दिया ना कि बिना मुस्लिम वोट के हम जीत सकते हैं. सरकार बना सकते हैं. तो बाकी लोग भी सोचने लग गए. तो फिर मनोबल तो गिरता है ना कम्युनिटी का. दैट इज है और पिछली बार देखो 19 थे इस बार 11 है तो डिक्लाइन तो है दैट है सो दिस इज.. 

    सवाल: सर मुस्लिम पॉलिटिक्स में पांच सीटों के साथ ओवैसी का क्या भविष्य आप बिहार में देखते हैं? 

    जवाब: ही इज़ अ ब्रिलियंट गाय अभी तो भविष्य अच्छा है उसका ही इज़ क्रिएटेड सम सॉर्ट ऑफ़ न्यू मुस्लिम पॉलिटिक्स देयर पिछली बार भी सीटें उतनी थी इस बार भी पांच सीटें हैं वो अलग बात है लेकिन बेस बना उसका और इस बार उसने जाकर के ये कहा था लोगों को ना कि तुम दरिया बिछाते रह जाओगे तुम्हारा डिसिशन मेकिंग में कोई रोल नहीं है 17% मुसलमान है बिहार के अंदर तुम खाली दरी बिछाते रहो बैठ के गले उतर गए लोगों के पांच सीटें थी पांच सीटों पे जीत गया वो तो नाउ इज द इमरजेंस ऑफ़ अ न्यू मुस्लिम पार्टी प्रैक्टिकली जी पहले थी लेकिन अब इस थोड़ा पावर में आएगी ग्रोइंग है एक तरह से जो है तो इट विल बी अ फैक्टर इन कमिंग डे वो ओवैसी विल बी अ फैक्टर इन बिहार इन द कमिंग डेज..

    सवाल: सर सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में इस तरीके से बीजेपी प्रत्याशियों का जीतना इसको आप कैसे देखते हैं?

    जवाब: सीमांचल देखो ये इंपॉर्टेंट बात है चॉइस सीटें थी टोटल वहां पे जो है और बीजेपी को लायन शेयर मिला. पहले जो सीटें थी उससे एक सीट ज्यादा मिली. छह थी तो सात हो गई. दैट वे जो है जेडीयू की भी एक सीट ज्यादा हो गई. इंपॉर्टेंट बात ये है कि वहां जो का्स हैं वहां पे मुस्लिम इंपैक्ट तो है लेकिन जहां मुस्लिम वर्सेस हिंदू में हिंदू लाम बंद होंगे तो हिंदू सीटें भी जीती हैं. तो जेडीयू की भी काफी सीटें आई हैं. बीजेपी की काफी लोग वहां पे आए हैं सीमांचल में. लेकिन कुल मिला के ऐसा लगा उनको डाउट था कि इस बार कहीं आरजेडी में नहीं चला जाए. तो सीमांचल इज इंप्रूवमेंट फॉर बीजेपी ओवर द प्रीवियस इलेक्शंस परफॉर्मेंस. एक सीट भी ज्यादा है और वोट शेयर भी ज्यादा है इस बार जो है. तो वैसे हैरानी की बात है मुस्लिम यूनाइटेड बीजेपी के लोग जीत रहे हैं. तो बीजेपी जीती है जो टोटल एक सुनामी आई है. 

    सवाल: सर बात अगर रेलवे की करें तो इस इलेक्शन में रेलवे का क्या योगदान रहा है? और सर आखिर रेलवे कब उपलब्ध करवा पाएगी? प्रवासी बिहारियों के लिए एक सस्ती और सुलभ रेल यात्रा. 

    जवाब: रेलवे का अच्छा रोल था. रेलवे मिस्टर अश्विन वैष्ण वास क्वाइट कंसर्न. दो बार तो दिल्ली रेलवे स्टेशन पे चले गए थे. छठ के दौरान जो भीड़भाड़ थी लोगों की जो वहां है और रेलवे ने बजट भी बढ़ा दिया है. तो रेलवे ने छठ की बात हो रही है. पहले तो रेलेवेंस बात छट का है तो 12,000 स्पेशल ट्रेन चलाई उन्होंने. इसके बावजूद लाखों लोग जो है ना बिल्कुल ऐसे धक्के खा रहे थे, गिर रहे थे, उठ रहे थे रेलवे स्टेशन पे. कारण जनसंख्या है. इतनी ट्रेन भी कहां से लाऊं? पापुलेशन इतनी है और सबको उसी दिन घर जाना होता है. छठ का मेला होता है. एक या दो दिन में जाना होता है वहां पे जो है तो ये चुनौती है रेलवे मिनिस्टर के सामने रेलवे के सामने. अगला छठ का मेला आए, अगली दिवाली आए, अगली होली आए जब लोग प्रवासी लोग घर जाते हैं वहां पे. कुल मिला के एक करोड़ लोगों का अनुमान है कि वो लोग घर जाते हैं. रेलवे रोज के दो करोड़ लोगों को ढोता है. रोज का रेलवे की जो स्थिति है तो एक करोड़ को अल्पकालीन प्लान के तहत ऐसा प्लान करना पड़ेगा रेलवे को कि लोग लाइनों में एक दूसरे के ऊपर नहीं गिरे. घंटों स्टेशन पे प्रतीक्षा नहीं करते रहे. हालांकि मिनिस्ट्री वाज़ अलर्ट. मैंने कहा ना दो बार गए रेलवे स्टेशन देखने. लेकिन उससे कुछ हो नहीं सकता. साधन तो वही है जो सामने है. तो रेलवे को कुछ इस तरह से कुछ बेसिक आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग करना पड़ेगा कि एक करोड़ लोग जो जाते हैं उन दो तीन दिनों में इनको कैसे सेफली और इज्जत के साथ डिग्निटी के साथ अपने अपने घरों में लेके जाए. यह एक प्लान है और लॉन्ग रन के अंदर जो मैंने आपसे कहा ना तो लॉन्ग रन का प्लान तो है ही वो जो बताया था प्रवासी के लिए कि लोगों को बस तो वहीं पे है कि ये प्लान है कि एक करोड़ करें इनको वो वही खत्म हो जाता है रेलवे का और दैट विल.. 

    सवाल: सर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इस चुनाव में बिहार के लोगों ने चुनाव आयोग की एसआईआर एक्साइज पर एक मोहर लगा दी है और दूसरा यह कि इस चुनाव के रण में आप आयोग की परफॉर्मेंस को कैसे देखते हैं? 

    जवाब: मोहर लगाई है बिल्कुल बिहार ने कोई शक नहीं इसके अंदर नॉट इन सिंगल कंप्लेंट और इलेक्शन कमीशन को यह क्रेडिट की बात है कि देखो एक गोली नहीं चली वहां पे ऐसे अंजाम हुए एक बूथ पे कब्जा नहीं हुआ कोई वोट लेके नहीं भागा जो है कोई बाहुबली नहीं आया मैदान में तो लॉ एंड ऑर्डर के लिए जो भी एजेंसीज हैं अपार्ट फ्रॉम इलेक्शन कमीशन दे ऑल डिर्व ए वोट ऑफ़ थैंक्स कहा जाए इसे और एसआई पे तो मोहर लग ही गई एक भी शिकायत नहीं सब ठीक से चुनाव हो गया शांतिपूर्ण चुनाव हो गया वहां पे जो है अब सेकंड है उसके परफेंस की बात कर रहे हैं आपके तो इलेक्शन कमिश्नर की परफॉर्मेंस इलेक्शन परफॉर्मेंस बहुत एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी और डिफिकल्ट टाइम्स में रही है. आम तौर पे कोई ब्यूरोक्रेट ऐसी टक्कर नहीं ले सकता पॉलिटिकल पार्टी से जिस तरह के बयान लोगों ने दिए जैसे प्रियंका गांधी ने धमकाया कि इसका रिटायरमेंट अच्छी तरह नहीं बीत पाएगा. आपका रिटायरमेंट अच्छे से नहीं बीत पाएगा. तो पॉलिटिशियन की ऐसी धमकियों के सामने एक अफसर आईएएस अफसर खड़ा रहे और निर्भीक होकर अपने काम को करें. हैं बहुत बड़ी बात है. तो कडोस फॉर इलेक्शन कमिश्नर एंड इलेक्शन कमीशन एट द सेम टाइम सैल्यूट टू होम मिनिस्टर अमित शाह जो इतना सपोर्ट देते हैं अपने नीचे के लोगों को इतना कि चलो हम मैं खड़ा हूं मैं हूं ना करो जो है ये तो फर्स्ट टाइम इलेक्शन कमीशन ने वन टू वन फेस टू फेस कंफ्रंट किया अपोजिशन को और अपोजिशन सिद्ध नहीं कर पाया ना इशू तो ये है गड़बड़ को सिद्ध नहीं कर पाए राहुल गांधी का मैंने आपसे कहा 10 तारीख लास्ट एक अपील भी नहीं की आपने वहां पे जो है तो वी कैन कंक्लूड इलेक्शन कमीशन परफॉर्मेंस हैड बीन जस्ट आउटस्टैंडिंग और बिहार के लोगों ने एसआर पे अपनी मोहर लगा दी. इट्स जस्ट अ बिगनिंग.

    सवाल: सर राजनीति से थोड़ा इत सवाल कितनी संभावना ऑपरेशन सिंदूर पार्ट टू की आपको दिखती है? क्या आपको लगता है नरेंद्र मोदी के मन में कोई कसक अभी बाकी रह गई है? 

    जवाब: बिल्कुल लगता है मुझे. अभी राजनाथ सिंह ने पिछले दिनों कहा था कि सीमा पे और देश में युद्ध कैसे हालात लगते हैं. एक बड़ी आर्मी एक्सरसाइज भी पिछले दिनों इंडिया ने की थी. पाकिस्तान में भी देखते रहते हैं कि विमान उड़ते रहते हैं. बॉर्डर एरिया में जाते आते रहते हैं. इशू ये है कि लगातार इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स लगता है सरकार को ये आ रही हैं कि पाकिस्तान जो है ना तैयारियां कर रहा है युद्ध के हिसाब से और पिछली बार सबके देश के मन में रह गई थी कि थोड़ा सा और ठोकते इससे पहले ही वो हो गया युद्ध विराम हो गया. भावना है देश के लोगों की. तभी नरेंद्र मोदी ने भी कहा था और आर्मी ने भी कहा था कि इस ऑपरेशन का अंत नहीं हुआ. इसे केवल स्थगित किया गया है. ऑपरेशन सिंदूर का अंत नहीं हुआ. केवल इसे स्थगित किया गया. ये कहा गया था. तो सबके मन में एक तमन्ना है उस समय की. फिर दूसरा क्या है कि जो वहां पे मुनीर है उनका जो आचरण है रोज की धमकियां है जिस तरह से और उसका जो ट्रंप का उसका सपोर्ट है जिस तरह का अ पॉइंट ऑफ़ कंसर्न तो कोई बड़ी बात नहीं कि हमला करें उससे पहले कोई वो हमला कर दें. कहीं कुछ छेड़छाड़ कर दें. तो मुझे ऐसा लगता है कि इसकी संभावनाएं बिल्कुल है और दूसरा अभी दिल्ली में जो ब्लास्ट हुआ है अल्टीमेटली तो इसके तार पाकिस्तान से जुड़े हुए मिलेंगे आपको तो नरेंद्र मोदी अभी गए थे भूटान तो उन्होंने कहा के ऑल दोज़ रिस्पांसिबल विल बी बो टू जस्टिस पिछली बार वो गए थे वहां बिहार में वहां तो उसी समय उन्होंने पहलगांव घटना हुई थी तो यही कहा था विल आइडेंटिफाई ट्रैक एंड पनिश देम अंग्रेजी में बोले थे अब की अंग्रेजी में बोले इस तरह से जो है उसका मैसेज कभी इंटरनेशनल कम्युनिटी को यह है कि हम इनको ठोकेंगे इन द सेंस एक्शन लेंगे. इसलिए क्या है ऑपरेशन सिंदूर टू की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. 

    सवाल: सर मैं वापस राजस्थान पे आऊंगी क्योंकि बीजेपी कार्यकर्ताओं का मनोबल थोड़ा डाउन है. वजह यह है कि डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद भी भाजपा की जो हार हुई है अंता सीट पर उसको आप कैसे देखते हैं? 

    जवाब: आम इंप्रेशन यह है कि भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी के कारण हार हुई है. यूनिटी कहना चाहिए यूनाइटेड नहीं थी पार्टी. एक इंप्रेशन यह है. दूसरा मैं देख रहा था कि बूथ लेवल पे है ना पार्टी ने उतना काम नहीं किया जितना काम बूथ मेरा सबसे मजबूत अपन कहते हैं. उस लेवल पे नहीं हुआ. तीसरा कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जो कैंडिडेट था वसुंधरा राजे का दिया हुआ था. तो उन्होंने अभक्ताओं को अपने हिसाब से वहां पे डिपट किया कि कौन इलेक्शन का कौन सा काम क्या करेगा. आज प्रताप सिंह सिंघवी का मैंने पढ़ा कि वो उनके काफी क्लोज रहे हैं. वही आलोचना कर रहे थे कि मेरा एमुलेशन हुआ. तो कहीं ना कहीं मुझे ऐसा लगता है कि जो कैंपेन था बीजेपी कैंडिडेट का वो थोड़ा सा एक्स्ट्रा सेंट्रलाइज था. ऐसा एक पहलू है ये भाजपा नेताओं की गुटबाजी दूसरा पहलू है. आम इंप्रेशन बाजार में यही है कि वसुंधरा वर्सेस ऑल ये भी एक इम्रेशन आया वहां पे. लेकिन आप देखो मुख्यमंत्री खुद गए वहां पे दो बार गए. मेरे ख्याल जॉइंट शो भी किया. तो सरकार ने कोई कमी नहीं रखी अपनी तरफ से. चीफ मिनिस्टर ने मिनिस्टर ने कमी नहीं रखी अपने हिसाब से कि पार्टी जीते. क्योंकि दिल्ली का डंडा था. दिल्ली का डर था हारोगे चुनाव तो सबकी बात खराब होती है. दैट इज़ लेकिन फिर भी हार गए. और दूसरा ऐसा भी मैंने सुना कि वो जो कैंडिडेट था सामने वाला कांग्रेस का वो बहुत रिसोर्सफुल था जिसे कहते हैं हां भाया जो है बहुत रिसोर्सफुल था तो उसकी एक-एक वोटर तक पहुंच थी. उस तरह से आप कह सकते हैं अभी फैसिलिटेट करना, वोटर्स को लाना उसकी मशीनरी ज्यादा अच्छी थी. तो कुल मिला के हम कंक्लूड कर सकते हैं कि भाजपा नेताओं की आपसी गुटबाजी और इलेक्शन कैंपेन के अंदर सिलेक्टिवली लोगों की एंट्री वहां पे जो है ऑफ डेस्टिनी तो बेसिकली यह कारण है अनफॉर्चूनेट है और हार जब होती है तो उसका जो डिस्क्रेडिट है वो सभी को जाता है दैट वे तो वसुंधरा ओनली विल नॉट बी ब्लेम्ड द एंटायर पार्टी विल बी ब्लेम्ड और फिर ये कहा जाए लेकिन हो गया ठीक है अब इतने चुनाव में एक पार्टी चुनाव हार भी जाती है तो क्या करूं सम टाइम इट हैप्स जिसे कहते हैं डेस्टिनी.. 

    सवाल: सर राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में सुधांश पंत की जगह वी श्रीनिवास को चीफ सेक्रेटरी बनाया गया इस डेवलपमेंट को कैसे देखते हैं? 

    जवाब: अच्छा डेवलपमेंट है. रूटीन है. सरकार में पोस्टिंग ट्रांसफर तो देखो होते रहते हैं. उनको लगभग 2 साल आने को आए थे. जी. और कोऑर्डिनेशन के इश्यूज कभी-कभी आते हैं. हर सरकार में आते हैं. दैट वे जो है अब ये जो और दिल्ली छ महीने पहले मैंने सुना है कि शायद वो खुद भी कुछ कह के आए थे कि भाई कोई प्रॉपर अपॉर्चुनिटी हो तो मुझे दिल्ली बुला लें. जो है पहले दिल्ली में हेल्थ सेक्रेटरी रह चुके हैं. एक और भी किसी बॉय डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी रह चुके हैं. गुड ऑफिसर. लेकिन कभी-कभी क्या होता है ना चीफ सेक्रेटरी चीफ मिनिस्टर का रिलेशन ऐसा होता है कि हर बार पूरे परफेक्शन पे नहीं होता किसी भी स्टेट में कहीं 70% होता है 80% होता है कहीं कम ज्यादा होता है तो कभी-कभी कोऑर्डिनेशन के इश्यूज आ जाते हैं उसके बीच में जो है इसीलिए बार-बार ये देखा आपने चेंजेस होते हैं गवर्नमेंट्स के अंदर पोस्टिंग ट्रांसफरर्स होते हैं तो अब तो वो दिल्ली चले गए हैं दिल्ली सेक्रेटरी बनाया गया है उनको जो है औरकि वो नए चीफ सेक्रेटरी ने जल्दी ज्वाइन कर लिया है जल्दी इन द सेंस जॉइ करना था उनको तो 10 दिन वो क्या करते सुधांश पंत तो तो फिर इसके लिए उनको जो है ना ओएसडी लगा दिया है. एक इमेज सेविंग फेस सेविंग का होता है. भाई ठीक है आदमी एपीओ नहीं हो जाए या कहीं ऐसे खाली नहीं बैठा रहे घर पे जो है तो उनको लगा दिया 10 दिन के लिए. तो फ्रॉम फर्स्ट दिस थिंग ही विल टेक ऑन द चार्ज ऑफ सेक्रेटरी सोशल अफेयर्स. सोशल मिनिस्ट्री जो है आने वाले अधिकारी सुलझे हुए हैं. 89 बैच के हैं. बहुत सीनियर हैं और 10 महीने हैं उनके पास में. सो प्रैक्टिकल व्यक्ति हैं. ओवरऑल जो फीडबैक है उनके बारे में अच्छा है. आम धारणा ये कि ही इज अ चीफ मिनिस्टर चॉइस और अच्छा है. मुख्यमंत्री की पसंद का चीफ सेक्रेटरी अगर आता है तो टीम वर्क अच्छा होता है. काम अच्छा होता है. गैप कम होता है. कम्युनिकेशन गैप नहीं होता. तो लेट्स होप कि राजस्थान का ये नया जो एक्सपेरिमेंट है इसमें जो चीफ मिनिस्टर चीफ सेक्रेटरी रिलेशनशिप है वो और स्ट्रांग होती है. और कंफर्टेबल होती है और और रिजल्ट ओरिएंटेड होगी. ऐसा मानते हैं ब्यूरोक्रेसी में. 

    सवाल: सर वुमेन पावर की बात हो ही रही है तो एक और वमेन पावर दिखी इस बार जब महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप अपने नाम किया और उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात ये पूरी टीम भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुरीद हो गई आखिर ऐसा क्या है प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व में..

    जवाब: देखिए ही इज़ अ चार्म पीपल हैव क्रेज़ तो जो उनकी प्लेयर थी उसने यही कहा कि सर आपके चेहरे पे इतना ब्लो कैसे है आपका स्किन रूटीन क्या है नेचुरली राम थोड़ा सा मेरे थोड़ा सा शर्मा गए होंगे बात सुन के और ये फैक्ट है और वो देखो ना इटली की प्राइम मिनिस्टर उसकी किताब लिखी उसने तो अपना उसका जो इंट्रोडक्शन है वो इनसे लिखवाया तो कोई ना कोई तो ऐसी पावर है ना कि मोदी पर्सनालिटी अट्रैक्ट्स वुमेन इरेस्पेक्टिव ऑफ एज एंड अथॉरिटी एंड पोजीशनिंग जो है तो ठीक है लड़कियां गई थी उनको अच्छा लगा तो उन्होंने उनसे कहा उन्होंने मुझसे शेयर किया लेकिन उनका उनको नाश्ते बुलाना एक अच्छा मूव था प्राइम मिनिस्टर प्लेयर्स को नाश्ते पे बुलाए. इतना रिकग्निशन किसने कब किसको दिया? भारत में किसी ने नहीं दिया. दैट विल जो है इट्स अ गुड स्टार्ट. गुड बिगिनिंग. ऐसी आशा करता हूं कि और जो बड़े-बड़े कप जीत के लोग आएंगे उनको भी बुलाएंगे वहां पे जो है तो गुड मूव. 

    सवाल: सर एशिया कप के विजेता टीम के कप्तान सूर्य कुमार यादव ने ये कहा कि हमारे देश का नेता फ्रंट फुट पर खेल रहा है. इसको आप क्या कुछ कहना चाहेंगे? 

    जवाब: ही इज़ राइट. ही इस टॉल दैट ट्रुथ ओनली. नहीं वही तो फ्रंट फुट पे है. आप देखते होंगे हर चीज में सबसे आगे हैं. हर चीज को कंसर्न उनको उनके पास हर चीज का समय है. ही प्रूव्ड दैट ओनली बिजी पीपल हैव टाइम बिकॉज़ दे आर प्लंड नरेंद्र मोदी इस प्लंड जिसे कहते हैं. तो सही कहा उसने फ्रंट फुट पे खेलते हैं. आप देखिए ऑपरेशन सिंदूर हो या फिर कोई और दूसरा इशू हो. आप देखते हो ना सबसे आगे मोर्चे पे खड़े मिलते हैं. तो फैक्ट है ही टोल द ट्रुथ ओनली. और ऐसी आशा की जानी चाहिए कि और भी जो बड़े लोग हैं जिनके पास जिम्मेदारियां है राज्यों की औरों की दे शुड आल्सो प्ले ऑन द फ्रंट. 

    सवाल: सर जैसा आपने बताया कि लगातार तारीफ करते हैं सभी लोग वैसे ही ट्रंप भी भले ही अनप्रिडिक्टबल हो पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ लगातार करते हैं. 

    जवाब: ही इज़ माय फ्रेंड, माय डियर फ्रेंड. अभी कहा कि ही इज़ द नाइससेस्ट गाय. कैसे देखते हैं सर आप इसे? बट मोदी डजंट ट्रस्ट हिम. नोबडी मोदी हार्ट. क्या नहीं किया उसके लिए नरेंद्र मोदी ने? एंड ट्रंप प्रूव टू बी अनग्रेटफुल अनरिलायबल फ्रेंड. सारे इंडिया को शर्म आई कि हमने इस ट्रंप को इतना मान सम्मान क्यों दिया? जज पाकिस्तान को प्रमोट कर रहा है. बताइए आप जो है और ये फैक्ट है कि मन ही मन नरेंद्र मोदी के मुरीद हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है. इस बात के अंदर जब भी ऐसे उद्गार एकदम से हर बार नहीं आते. इस एक साल में पांच बार मैं सुन चुका हूं मोदी की तारीफ उनके मुंह से. मोदी इज अ ग्रेट फ्रेंड. वो सब कुछ है. बट दैट इज वन वे व्हेन इट कम्स टू इंप्लीमेंटेशन ही इज़ अ डिफरेंट पर्सन. ही बैक ट्रैक्स दैट हर्ट्स द पीपल. सो मोदी आल्सो मस्ट बी हर्ट विथ दिस बिहेवियर. इसलिए आपने देखा ना उन्होंने थोड़ा सा आजकल बैक टैग कर लिया है. वो ज्यादा तवज्जो नहीं देते उस तरह से जो है. बाकी अच्छा सुनने में अच्छा लगता है. इट मींस ट्रंप इस कमिंग टू सेंसेस. अगर वो कह रहे हैं बहुत नाइसेस गाई है तो अच्छी बात है. हमें भी अच्छा लगता है इंडियन होने के नाते. 

    सवाल: सर आखिर कैसा चल रहा है खुद को समस्त संसार का राष्ट्रपति मानने वाले अब मूड ही ट्रंप का मूड इस वक्त? 

    जवाब: वेल सेड ट्रंप अपने आप को सारे संसार का राष्ट्रपति मानते हैं और सबसे हैरानी की बात है कि संसार भी मानने लग गया उसको हमारा भी राष्ट्रपति है ये आज छोटे-छोटे कस्बे में चाय की दुकान पे अखबार लोग पढ़ते हैं ट्रंप का नाम पूरे संसार में याद हो गया अफ्रीका गांव से लेकर के राजस्थान के मध्य प्रदेश छोटे से गांव तक लोग ट्रंप का नाम जानने लगे अखबार के अंदर उसे इतने चमत्कार गैर चमत् कार की है दैट वे जो है बाकी ही इस बींग कंसीडर्ड एस ए एस अ साइन ऑफ़ फेलियर आप देखिए ना कि वो समझौता करा यूक्रेन रूस का फेल हो गया दैट वे फिर उसके बाद में वो चुनाव था न्यूयॉर्क का वो हार गए वहां पे गवर्नमेंट शट डाउन रहा इतने कभी आज तक नहीं रहा वो गवर्नमेंट बंद रही वहां पे ही इज़ नॉट बोदर्ड तो कुल मिला के क्या है कि ही इज़ इमर्जिंग एज एन इरिस्पांसिबल अनरिलायबल अनप्रिडिक्टेबल पर्सन इन पॉलिटिकल सिनेरियो और सारा संसार उससे परेशान है क्योंकि पावर उसके पास है. हथियार उसके पास है. और अब तो एक और सवाल हो गया दिमाग में कि परमाणु परीक्षण करने हैं. परमाणु परीक्षण करने लग गया है. बहुत दिनों बाद संसार में किसी ने बहुत गैर जिम्मेदार तरीके से ही ओपन द फ्लड गेट्स ऑफ न्यूक्लियर टेस्ट. अल्टीमेटली कहां होंगे? एक दिन रियल टेस्ट हो जाएगा और क्या होगा? टेस्ट करते-करते दैट विल जो है तो बहुत ही अनफॉर्चूनेट और ऐसा है तो बहुत से लोग संसार में प्रतीक्षा कर रहे हैं कि व्हेन स्टेप डाउन लेट्स सी..