नई दिल्ली: भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला आज (14 जुलाई 2025) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से धरती की ओर वापसी की शुरुआत कर रहे हैं. Axiom-4 मिशन के तहत 14 दिन अंतरिक्ष में बिताने के बाद वे प्रशांत महासागर में उतरेंगे. हालांकि पृथ्वी की सतह से सिर्फ 400 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ISS से पानी में लैंडिंग तक का सफर करीब 22.5 घंटे में पूरा होगा.
तो आखिर क्या वजह है कि इतनी कम दूरी तय करने में इतना ज्यादा समय लगता है? आइए समझते हैं अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की पूरी प्रक्रिया.
ड्रैगन यान से होगी सुरक्षित वापसी
शुभांशु शुक्ला की टीम की वापसी स्पेसX के क्रू ड्रैगन यान से होगी, जो ISS के 'हार्मनी मॉड्यूल' से जुड़ा हुआ है. शाम 4:30 बजे (IST) यान ISS से अलग हो जाएगा और अगले दिन दोपहर 3 बजे के करीब कैलिफोर्निया तट के पास समंदर में सॉफ्ट लैंडिंग करेगा.
वापसी से पहले पूरे यान की गहन जांच की जाती है—यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई रिसाव नहीं है और सभी सैंपल, उपकरण व यात्रियों का सामान सुरक्षित तरीके से व्यवस्थित किया गया है, ताकि वे माइक्रोग्रैविटी में तैरते हुए क्षतिग्रस्त न हों.
धीरे-धीरे पृथ्वी की ओर: रफ्तार पर नियंत्रण जरूरी
अब सवाल उठता है कि 400 किमी की दूरी के लिए 22 घंटे क्यों?
दरअसल, ISS धरती के चारों ओर लगभग 28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से चक्कर लगाता है. इतनी तेज़ गति को अचानक कम करना किसी भी यान के लिए खतरनाक हो सकता है. इसलिए पृथ्वी पर लौटने की प्रक्रिया धीरे-धीरे और चरणबद्ध ढंग से की जाती है, जिसे 'डी-ऑर्बिट' कहा जाता है.
इस प्रक्रिया में:
वायुमंडल में प्रवेश से लेकर समुद्र में उतरने तक
जब यान पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करता है, तब:
पानी में उतरने के बाद भी बचा है लंबा प्रोसेस
समुद्र में उतरने के बाद:
शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम को कम से कम 7 दिनों के लिए विशेष रिहैब सेंटर में रखा जाएगा, जहां फिजिकल थैरेपी और मेडिकल सुपरविजन के तहत वे सामान्य जीवन में लौटने की तैयारी करेंगे.
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