इस्लामाबाद: भारत की सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइलों के सामने पाकिस्तानी एयरबेस की सुरक्षा लगभग असंभव मानी जा रही है. मई 2025 की सैन्य झड़पों के बाद पाकिस्तानी रणनीतिक विश्लेषकों में चिंता गहराती जा रही है. इस चुनौती से निपटने के लिए अब पाकिस्तान के सैन्य विश्लेषक पारंपरिक लड़ाकू विमानों के बजाय अत्याधुनिक लड़ाकू ड्रोन (UCAVs) की ओर रुख करने की सलाह दे रहे हैं.
हाल ही में पाकिस्तान एयरफोर्स प्रमुख एयर चीफ मार्शल बाबर सिद्दू की अमेरिका यात्रा के दौरान F-16 जैसे आधुनिक विमानों की खरीद पर चर्चा की खबरें आई थीं. लेकिन सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा समय में महंगे फाइटर जेट्स से ज्यादा प्रभावी विकल्प UCAVs हो सकते हैं.
बिना पायलट के युद्ध- कम खर्च, ज्यादा लचीलापन
पाकिस्तानी डिफेंस वेबसाइट Quwa की रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य की लड़ाइयों में बिना पायलट वाले लड़ाकू ड्रोन "फोर्स मल्टीप्लायर" की भूमिका निभा सकते हैं. यानी ये ऐसे संसाधन हैं जो सीमित मानव हस्तक्षेप के साथ बड़े पैमाने पर प्रभावी हमले कर सकते हैं.
UCAVs न केवल दुश्मन की एयर डिफेंस को चकमा देने में सक्षम होते हैं, बल्कि ये खतरे के क्षेत्रों में बिना किसी मानव जीवन के नुकसान के प्रवेश कर सकते हैं. इन ड्रोन को रेडार भेदने, लक्ष्य ट्रिगर करने और प्रारंभिक हमलों में दुश्मन की क्षमता को नष्ट करने में कारगर माना जा रहा है.
ब्रह्मोस से एयरबेस नहीं बच सकते: रणनीतिक खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की ब्रह्मोस जैसी तेज रफ्तार सुपरसोनिक मिसाइलों से बचाव पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है. पाकिस्तान के पास सीमित एयरबेस हैं, और अगर इनपर हमले होते हैं तो वहां से लड़ाकू विमान उड़ाना असंभव हो जाएगा.
ऐसी स्थिति में UCAVs को हाईवे, अस्थायी रनवे या मोबाइल लॉन्च प्लेटफॉर्म से भी तैनात किया जा सकता है. अमेरिकी XQ-58 Valkyrie ड्रोन इसका सटीक उदाहरण है, जो पारंपरिक एयरबेस पर निर्भर नहीं है.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद ड्रोन की जरूरत
मई 2025 में भारत द्वारा किए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना ने तुरंत कुछ विमान तैनात किए, लेकिन उसके बाद उनकी कोई आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं दिखी. विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों के सामने फाइटर जेट भेजना आत्मघाती कदम हो सकता है. ऐसे में ड्रोन ही एकमात्र तार्किक विकल्प बनते हैं.
पाकिस्तान पहले ही सही दिशा में है?
रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तान UCAV तकनीक के मामले में शुरुआत कर चुका है. Shahpar और Burraq ड्रोन, Ra’ad और Taimur जैसी क्रूज मिसाइलें, और NESCOM व AWC जैसी संस्थाएं पहले से इस दिशा में काम कर रही हैं. इससे पाकिस्तान को गाइडेंस सिस्टम, एयरोडायनामिक्स और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर में अनुभव मिल रहा है.
हालांकि फाइटर प्रोग्राम Project AZM ठप पड़ा हुआ है, लेकिन मौजूदा टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाते हुए पाकिस्तान अपने रक्षा तंत्र को आधुनिक दिशा दे सकता है. तुर्की और चीन जैसे देशों के साथ साझेदारी को और मज़बूत बनाना इस दिशा में अहम साबित होगा.
डिफेंस सेक्टर में संरचनात्मक बदलाव की जरूरत
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि अगर पाकिस्तान को ड्रोन तकनीक में वाकई बढ़त बनानी है, तो रक्षा ढांचे में बदलाव जरूरी होगा:
NESCOM को ड्रोन डिजाइन और प्रोटोटाइप निर्माण का जिम्मा सौंपा जाए.
NASTP को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित “AI-पायलट” सिस्टम और ऑटोनोमस कंट्रोल विकसित करने पर फोकस करना चाहिए.
निर्माण कार्यों में प्राइवेट सेक्टर को शामिल किया जाए ताकि सरकारी संसाधन मुख्य रूप से अनुसंधान और नवाचार में लगाए जा सकें.
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