पाकिस्तान में दिखने लगा सिंधु जल समझौता तोड़ने का असर, सूखने लगी नदियां, सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा

    भारत द्वारा सिंधु जल संधि की समीक्षा और कुछ प्रावधानों के अस्थायी निलंबन ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. जहां पाकिस्तान इस फैसले को लेकर चिंतित है, वहीं उपग्रह चित्रों और विशेषज्ञ आकलनों से संकेत मिल रहे हैं कि इससे देश में जल संकट की शुरुआत हो सकती है, विशेषकर कृषि और ऊर्जा क्षेत्र में.

    The effect of breaking the Indus Water Treaty is visible in Pakistan rivers are drying up revealed by satellite images
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- X

    इस्लामाबाद/नई दिल्ली: भारत द्वारा सिंधु जल संधि की समीक्षा और कुछ प्रावधानों के अस्थायी निलंबन ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. जहां पाकिस्तान इस फैसले को लेकर चिंतित है, वहीं उपग्रह चित्रों और विशेषज्ञ आकलनों से संकेत मिल रहे हैं कि इससे देश में जल संकट की शुरुआत हो सकती है, विशेषकर कृषि और ऊर्जा क्षेत्र में.

    हाल ही में सार्वजनिक हुई Marala Headworks की सैटेलाइट इमेज में पाकिस्तान के कई हिस्सों में जल प्रवाह में गिरावट दर्ज की गई है. इससे सिंधु बेसिन पर निर्भर फसलों को लेकर जोखिम की आशंका बढ़ गई है.

    भारत ने उठाए तीन रणनीतिक कदम

    पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ तीन अहम फैसले लिए हैं:

    • सिंधु जल संधि की समीक्षा और पश्चिमी नदियों पर प्रवाह नियंत्रित करने की योजना
    • द्विपक्षीय व्यापारिक गतिविधियों का स्थगन
    • दवा और चिकित्सकीय आपूर्ति के निर्यात पर अस्थायी रोक

    इन तीनों उपायों का उद्देश्य न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना है, बल्कि रणनीतिक दबाव के जरिए पाकिस्तान को आतंकी ढांचे के खिलाफ कड़े कदम उठाने को विवश करना भी है.

    जल संसाधनों पर पाकिस्तान की निर्भरता

    सिंधु जल संधि (1960) के तहत पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब का प्राथमिक अधिकार प्राप्त है. ये नदियां भारत से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं और वहां की 80% कृषि और एक तिहाई जलविद्युत उत्पादन इन्हीं पर निर्भर करता है.

    अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, केवल पंजाब प्रांत पाकिस्तान के 77% गेहूं उत्पादन के लिए जिम्मेदार है. इस क्षेत्र की सिंचाई पूरी तरह से सिंधु बेसिन की नदियों से होती है. यदि जल प्रवाह में व्यवधान आता है, तो खाद्य उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों पर गंभीर असर पड़ सकता है.

    कृषि और अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव

    गंभीर जल संकट की स्थिति में पाकिस्तान को निम्नलिखित क्षेत्रों में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है:

    • गेहूं, चावल, गन्ना और कपास जैसी प्रमुख फसलें उत्पादन संकट में आ सकती हैं
    • मुद्रास्फीति में तेजी और खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल
    • ग्रामीण बेरोजगारी और पलायन में वृद्धि
    • विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ, क्योंकि अनाज आयात की आवश्यकता हो सकती है

    नर्म कूटनीति बनाम रणनीतिक दबाव

    जेएनयू के कूटनीति विशेषज्ञ हैप्पीमॉन जैकब ने न्यूयॉर्क टाइम्स में अपने लेख में लिखा है, “यह कदम भले ही प्रतीकात्मक लगे, लेकिन यह पाकिस्तान को रणनीतिक तौर पर असहज करने के लिए एक गहराई से सोच-समझ कर उठाया गया निर्णय है.”

    भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह स्पष्ट करता आया है कि वह संधि के तहत मिलने वाले जल अधिकारों के भीतर रहकर ही कदम उठा रहा है. हालांकि, जल प्रवाह में मामूली परिवर्तन भी पाकिस्तान के संवेदनशील जल-आधारित कृषि ढांचे को प्रभावित कर सकता है.

    कूटनीतिक संतुलन की आवश्यकता

    सिंधु जल संधि अब केवल एक पारंपरिक जल संधि नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक उपकरण बन गई है, जिसके माध्यम से भारत अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को रेखांकित कर सकता है. हालांकि, दीर्घकालीन स्थिरता के लिए इस मुद्दे पर संवाद और संतुलन जरूरी होगा.

    भारत की इस रणनीति से यह स्पष्ट होता है कि सुरक्षा और रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए भी वह अंतरराष्ट्रीय नियमों और संधियों के दायरे में रहकर कार्रवाई कर रहा है.

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