नई दिल्ली/लंदन: एक समय भारत पर दो सदियों तक शासन करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी आज एक भारतीय उद्यमी के स्वामित्व में है. यह तथ्य जितना प्रतीकात्मक रूप से शक्तिशाली है, उतना ही व्यावसायिक दृष्टिकोण से रोचक भी है. इस कंपनी का पुनर्जन्म एक लग्ज़री ब्रांड के रूप में हुआ है, और इसके पीछे हैं भारत में जन्मे, अब ब्रिटेन में बसे बिजनेसमैन संजीव मेहता.
ब्रिटिश साम्राज्य की सबसे प्रभावशाली कंपनी थी
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड में की गई थी. प्रारंभ में इसका उद्देश्य भारत जैसे देशों से मसाले, कपड़े और अन्य व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात करना था. लेकिन समय के साथ कंपनी ने व्यापारिक हितों से आगे बढ़ते हुए राजनीतिक हस्तक्षेप शुरू कर दिया और अंततः भारत में प्रभावशाली औपनिवेशिक शासन की नींव रखी.
1757 की प्लासी की लड़ाई के बाद कंपनी ने बंगाल पर नियंत्रण स्थापित किया और इसके बाद धीरे-धीरे पूरे भारत में अपना प्रभुत्व फैलाया. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात ब्रिटिश क्राउन ने सीधे भारत का शासन अपने हाथों में ले लिया और 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त कर दिया गया. 1874 में इसे औपचारिक रूप से पूरी तरह भंग कर दिया गया.
संजीव मेहता और कंपनी के अधिकारों का अधिग्रहण
संजीव मेहता, जो ऐतिहासिक संस्थाओं और विरासती ब्रांड्स में नई जान फूंकने के लिए जाने जाते हैं, को जब यह जानकारी मिली कि The East India Company का नाम और ट्रेडमार्क अब भी कानूनी रूप से सुरक्षित है, तो उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में देखा.
2005 से उन्होंने इस कंपनी से जुड़े सभी अधिकार खरीदने शुरू किए. कुछ वर्षों में उन्होंने इसके ट्रेडमार्क, नाम, ऐतिहासिक दस्तावेज और संबंधित संपत्तियों को अधिग्रहित कर लिया. 2010 तक वे इस ऐतिहासिक कंपनी के पूर्ण स्वामी बन चुके थे.
ईस्ट इंडिया कंपनी का आधुनिक रूप
आज ईस्ट इंडिया कंपनी राजनीति या प्रशासन से नहीं, बल्कि एक प्रीमियम लग्जरी रिटेल ब्रांड के रूप में कार्यरत है. कंपनी चाय, कॉफी, मसाले, चॉकलेट, बिस्किट, ड्राय फ्रूट्स और फाइन ज्वेलरी जैसे उत्पादों की पेशकश करती है.
लंदन में स्थित इसका फ्लैगशिप स्टोर शाही अंदाज़ और ऐतिहासिक विरासत को आधुनिक ब्रांडिंग से जोड़ता है. ई-कॉमर्स के माध्यम से इसके उत्पाद दुनियाभर में उपलब्ध हैं, और इसकी पैकेजिंग में ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की डिजाइन झलकती है, जो इसे एक नियो-क्लासिकल पहचान देती है.
इतिहास के साथ न्याय या प्रतीकात्मक पुनर्परिभाषा?
संजीव मेहता मानते हैं कि यह केवल एक कारोबारी पहल नहीं थी, बल्कि इतिहास के साथ एक सांस्कृतिक पुनर्संतुलन भी है.
उन्होंने कहा, "एक भारतीय द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक बनना, इतिहास का सबसे शांतिपूर्ण और गहन उत्तर है."
उनका यह प्रयास न केवल उद्यमिता का उदाहरण है, बल्कि इस बात का प्रतीक भी है कि किस प्रकार पूर्व औपनिवेशिक सत्ता की पहचान आज एक भारतीय द्वारा वैश्विक मंच पर नए अर्थों में परिभाषित की जा रही है.
आज की स्थिति और प्रभाव
वर्तमान में ईस्ट इंडिया कंपनी यूके, मिडल ईस्ट, भारत और अन्य देशों में अपने उत्पादों की बिक्री कर रही है. इसे ऐसे ब्रांड के रूप में देखा जाता है जो इतिहास, संस्कृति और गुणवत्ता को जोड़ता है.
इसका स्वामित्व अब उस देश के नागरिक के पास है, जिस देश की भूमि से यह कंपनी कभी अपने व्यापार और सत्ता का विस्तार करती थी. यह बदलाव आधुनिक भारत की वैश्विक आर्थिक उपस्थिति और सामर्थ्य का एक प्रतीक बन गया है.
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