Bangkok: थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैटोंगटार्न शिनावात्रा एक लीक फोन कॉल के बाद सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती से जूझ रही हैं. इस कॉल में उन्होंने कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन को चाचा कहकर संबोधित किया, साथ ही थाई सैन्य कमांडरों पर टिप्पणी की कि वे केवल दिखावा कर रहे हैं. इस खुलासे के बाद बैंकॉक की सड़कों पर हजारों नागरिक विरोध में उतर आए, जिनकी मांग साफ़ कि पैटोंगटार्न इस्तीफा दें.
माफी भी न थाम सकी गुस्से की आग
लीक कॉल के तुरंत बाद पैटोंगटार्न ने मीडिया में आवाज़ देकर सार्वजनिक माफी पेश की. लेकिन इसने प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका—वक्त लगे, समय नाम बदल सकता है, लेकिन लोगों का भरोसा नहीं. विक्ट्री मॉन्यूमेंट वॉर मेमोरियल में यूनाइटेड फोर्स ऑफ द लैंड के बैनर तले विरोध प्रदर्शनों की भीड़ ‘हमारी पीएम देश की दुश्मन’ जैसे नारे लगा रही है.
सहयोगी पार्टी ने वापस लिया समर्थन
लीक कॉल विवाद का असर तत्काल सरकार में भी दिखा—शिनावात्र्न के प्रधानमंत्री सहयोगी गठबंधन की एक प्रमुख पार्टी ने विरोध के दबाव में समर्थन वापस ले लिया. यह कदम सरकार की साधारण बहुमत और स्थिरता पर बड़ा सवाल छोड़ रहा है. हालाँकि, अब तक कोई संसदीय कार्रवाई नहीं हुई है, लेकिन संवैधानिक अदालत में प्रधानमंत्री को हटाने के लिए याचिका भी दायर की गई है.
लीक वार्ता ने खोली सेना पर सवालों की झड़ी
उन कॉल्स में कंबोडिया में लिमिटेड सेना की आलोचना की गई थी, जिसमें पैटोंगटार्न ने कहा कि उनका ‘वॉर स्ट्रक्चर सिर्फ मीडिया दिखावे के लिए है’. यह टिप्पणी राष्ट्रीय सुरक्षा को आघात प्रतीत हो रही है, खासकर सीमावर्ती देशों के साथ रिश्तों में सरगर्मी को लेकर. इससे सेना और सरकार के बीच भरोसे की दीवार भी ढीली पड़ सकती है.
शिनावात्र्न परिस्थिति में कहीं अकेली
38 वर्षीय पैटोंगटार्न शिनावात्रा प्रधानमंत्री बनने वाली थाईलैंड की सबसे युवा और एकमात्र दूसरी महिला नेता हैं. वे शिनावात्रा परिवार की तीसरी पीढ़ी की नेता हैं—अपने चाचा और पिता के बाद. उनकी युवा पीढ़ी की राजनीति अब देश की पुरानी शक्ति संरचनाओं पर आशा का केंद्र बनी थी, लेकिन यह विवाद उनकी राजनीतिक छवि और पारिवारिक विरासत पर गहरा असर डाल रहा है.
अब विरोध और अटकलों ने एक नया मोड़ ले लिया है—क्या पैटोंगटार्न इस्तीफा देंगी या वे अपने समर्थकों और शिनावात्रा परिवार के प्रभाव के दम पर संसदीय लड़ाई चुनेंगी? ऐसा है कि यह राजनीतिक दंगल अब केवल उनकी ही नहीं, पूरे थाई राजनीति के भविष्य का फैसला तय करेगा.