चुनावी अखाड़े में उतरने से पहले ही हार मान गए तेजस्वी? नीतीश कुमार से मदद मांगने की कही बात, जानें इनसाइड स्टोरी

    तेजस्वी यादव, जो कभी नीतीश कुमार को खारिज किया करते थे, अब उन्हें अपनी चुनावी सफलता के लिए मदद की उम्मीद लगाए बैठें हैं. यह स्थिति न केवल राजनीति के समीकरण को बदलने वाली है, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए भी अहम साबित हो सकती है.

    Tejashwi Yadav can seek support from Nitish Kumar bihar assembly elections 2025
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    पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है. इस बार चुनावी रणनीतियां कुछ अलग ही रंग में नजर आ रही हैं. जहां एक ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विरोधी दलों द्वारा मुफ्त रेवड़ियां बांटने के ख्याल को नकारते हुए अपनी नीति में बदलाव किया है, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव, जो कभी नीतीश कुमार को खारिज किया करते थे, अब उन्हें अपनी चुनावी सफलता के लिए मदद की उम्मीद लगाए बैठें हैं. यह स्थिति न केवल राजनीति के समीकरण को बदलने वाली है, बल्कि बिहार के भविष्य के लिए भी अहम साबित हो सकती है. आइए, जानते हैं क्यों नीतीश कुमार की भूमिका तेजस्वी यादव के लिए इतनी महत्वपूर्ण हो गई है.

    नीतीश कुमार की अहमियत क्यों बढ़ी?

    पिछले कई सालों से बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और लालू यादव का गठबंधन प्रमुख था. 2005 से 2020 तक, जब भी आरजेडी को सत्ता का स्वाद मिला, तब नीतीश कुमार का साथ जरुरी था. सबसे पहले 2015 में जब दोनों दलों ने एक साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, तो उनकी साझा रणनीति ने उन्हें सफलता दिलाई. इसी दौरान नीतीश कुमार को आरजेडी ने सीएम बना दिया और लालू यादव के दोनों बेटों को मंत्री पद की पेशकश की थी. लेकिन 2017 में नीतीश कुमार ने एनडीए से जुड़कर सत्ता से बाहर हुए लालू परिवार को झटका दिया. तब से लालू यादव की नजर इस बात पर रही कि कब नीतीश कुमार एनडीए से अलग हों और उनका परिवार सत्ता में वापसी कर सके.

    तेजस्वी की रणनीति और मदद की उम्मीद

    आज जब बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, तेजस्वी यादव को यह महसूस हो रहा है कि नीतीश कुमार के बिना उनकी जीत मुश्किल हो सकती है. साल 2020 के बाद से तेजस्वी ने कई बार यह दिखाया है कि वे नीतीश कुमार के बिना महागठबंधन में एक ठोस नेता के रूप में उभर सकते हैं. लेकिन हालिया बयान में उन्होंने स्वीकार किया कि अगर चुनावी परिणामों में दिक्कत आई, तो वे नीतीश कुमार से मदद मांग सकते हैं. यही नहीं, तेजस्वी ने यह भी कहा कि अगर ऐसा हुआ तो वे नीतीश से सीएम का पद छोड़ने की विनती करेंगे, ताकि महागठबंधन की सरकार बन सके.

    यह बदलती हुई स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि बिहार के राजनीतिक दृश्य में तेजस्वी यादव अब अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार का सहयोग चाहते हैं. हालांकि, इस सहयोग को लेकर संशय अभी भी बना हुआ है, क्योंकि नीतीश कुमार ने कई बार स्पष्ट किया है कि वे सीएम पद को तेजस्वी को नहीं देंगे.

    2024 चुनाव: नीतीश की भूमिका पर अनिश्चितता

    बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, इस सवाल पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. दिसंबर 2024 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह कहा था कि अगर एनडीए को बहुमत मिलता है, तो सीएम का निर्णय पार्टी के संसदीय बोर्ड द्वारा लिया जाएगा. लेकिन यह भी सच है कि भाजपा के बड़े नेता बार-बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही एनडीए को चुनावी मैदान में उतारने की बात कर रहे हैं. यह स्थिति महागठबंधन को उम्मीद दे रही है कि नीतीश अगर सीएम नहीं बने, तो वे एनडीए से अलग हो सकते हैं, और महागठबंधन के लिए फिर से रास्ते खुल सकते हैं.

    आरजेडी का समर्थन और नीतीश से उम्मीद

    आरजेडी के लिए यह कोई नई बात नहीं है कि वे अपनी सत्ता के लिए नीतीश कुमार पर निर्भर रहे हैं. इस साल के पहले दिन लालू यादव ने भी यह बयान दिया था कि नीतीश कुमार के लिए उनके घर का दरवाजा हमेशा खुला है. हालांकि, तेजस्वी यादव की स्थिति इसके उलट रही है. वे पहले कहते थे कि नीतीश के साथ मिलकर कोई भविष्य नहीं है, लेकिन अब उन्हें यह मानना पड़ रहा है कि चुनाव में सफलता के लिए नीतीश कुमार की मदद अहम हो सकती है. यह पहली बार है जब तेजस्वी ने नीतीश कुमार से मदद की बात कही है. अब यह देखना होगा कि क्या नीतीश कुमार इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं, या फिर वे अपने फैसले पर कायम रहते हैं.

    तेजस्वी की चाल: भाजपा को निशाने पर लेना

    तेजस्वी यादव की ओर से एक और दिलचस्प कदम उठाया गया है. उन्होंने भाजपा को यह संदेश देने के लिए कहा कि भाजपा कभी भी नीतीश कुमार को सीएम नहीं बनाएगी. उनका कहना है कि अगर भाजपा ने नीतीश को सीएम नहीं बनाया, तो वह अपने किसी उम्मीदवार को सीएम बना सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के पास अपनी पसंद के उम्मीदवार के रूप में मंगल पांडेय हो सकते हैं. इस बयान से तेजस्वी ने यह संदेश दिया कि भाजपा सवर्णों की पार्टी है, और अगर उन्हें यह संदेश सही से जनता तक पहुंचाया गया, तो महागठबंधन के पक्ष में दलित और पिछड़ा वोट बटोरने में मदद मिल सकती है. यह रणनीति भी बिहार के चुनावी समीकरण को पूरी तरह बदल सकती है. तेजस्वी की यह चाल महागठबंधन को सवर्ण विरोधी की छवि देने की कोशिश कर सकती है, जिससे भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को सहारा मिल सकता है.   

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