पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण एशिया की राजनीतिक स्थिति में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं. खासकर अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी और तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से यह क्षेत्र लगातार भू-राजनीतिक हलचलों का केंद्र बना हुआ है. पाकिस्तान, चीन के साथ मिलकर अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटा है, वहीं भारत अब अफगानिस्तान को लेकर अपनी रणनीति को नए सिरे से आकार दे रहा है.
हाल ही में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी का भारत दौरा इसी कूटनीतिक बदलाव का हिस्सा माना जा रहा है. यह दौरा न सिर्फ भारत-अफगान संबंधों में एक नई शुरुआत की ओर संकेत करता है, बल्कि इससे दक्षिण एशिया की राजनीति में भी बड़ा संदेश गया है.
क्यों मिली भारत आने की अनुमति?
अमीर खान मुत्तकी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवादियों की सूची में शामिल हैं, ऐसे में उनका भारत दौरा आसान नहीं था. इसके लिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र से विशेष अनुमति ली, जिससे यह साफ होता है कि भारत इस बैठक को औपचारिक कूटनीति के तहत बेहद गंभीरता से ले रहा है.
भारत और तालिबान: अब तक के रिश्ते
भारत ने 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद काबुल स्थित अपना दूतावास बंद कर दिया था और तब से किसी भी तरह का औपचारिक राजनयिक रिश्ता नहीं रहा है. हालांकि, बीते कुछ वर्षों में बैकडोर डिप्लोमेसी के ज़रिए भारत और तालिबान के बीच संवाद जारी रहा. भारत ने कई मौकों पर अफगानिस्तान को मानवीय सहायता भी भेजी है, जैसे हाल ही में आए भूकंप के दौरान.
अब मुत्तकी का भारत दौरा पहली बार तालिबान सरकार के किसी वरिष्ठ मंत्री की औपचारिक भारत यात्रा है, जो संकेत देता है कि भारत अब तालिबान के साथ खुलकर संवाद करने को तैयार है, भले ही अभी तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता न दी गई हो.
भारत दौरे का एजेंडा क्या है?
सूत्रों के अनुसार, मुत्तकी की भारत यात्रा के दौरान कई अहम मुद्दों पर चर्चा की संभावना है:
भारत के लिए यह दौरा क्यों है महत्वपूर्ण?
सुरक्षा के नजरिए से: भारत नहीं चाहता कि अफगानिस्तान की ज़मीन भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल हो. तालिबान से संवाद इसी दिशा में एक प्रयास है.
क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने के लिए: चीन, पाकिस्तान और रूस पहले ही तालिबान के संपर्क में हैं. ऐसे में भारत को लगने लगा है कि अगर वह अफगानिस्तान से दूरी बनाए रखता है, तो क्षेत्रीय राजनीति में उसका प्रभाव कम हो सकता है.
भविष्य के लिए निवेश और रणनीति: भारत ने अफगानिस्तान में स्कूल, अस्पताल, सड़कें और बांध जैसे कई बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट पहले से किए हैं. तालिबान के साथ रिश्ते सुधरने पर ये परियोजनाएं फिर से सक्रिय हो सकती हैं.
क्या भारत तालिबान सरकार को मान्यता देगा?
अब तक भारत ने तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है. लेकिन मुत्तकी की यात्रा और उच्च-स्तरीय बातचीत इस ओर इशारा करती है कि भारत अब तालिबान को एक वास्तविक सत्ता के रूप में स्वीकार करने को मजबूर हो रहा है. हालांकि यह मान्यता कब और कैसे दी जाएगी, यह वैश्विक और घरेलू राजनीति पर भी निर्भर करेगा.
पाकिस्तान क्यों चिंतित है?
भारत और तालिबान के बीच बढ़ती नजदीकी से पाकिस्तान में बेचैनी है. पाकिस्तान की नीति हमेशा से अफगानिस्तान में अपनी पकड़ बनाए रखने की रही है. तालिबान से उसके ऐतिहासिक संबंध भी रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों में तनाव देखा गया है, खासकर टीटीपी के मुद्दे को लेकर.
अगर तालिबान भारत के साथ रिश्ते सुधारता है, तो यह पाकिस्तान की "रणनीतिक गहराई" की नीति को झटका होगा और अफगानिस्तान पर उसका प्रभाव घट सकता है.
अंतरराष्ट्रीय दबाव और अमेरिकी नजरिया
अमेरिका ने पहले ही तालिबान सरकार को मान्यता देने में सतर्कता बरती है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में बगराम एयरबेस से सेना हटाने की नीति की आलोचना भारत ने की थी. अब भारत, रूस और चीन जैसे देशों के साथ तालिबान को बातचीत के जरिए एक "स्थिर सरकार" बनाने की दिशा में देख रहा है.
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